बायो फ्लॉक विधि से किया मछली पालन, कमाए लाखों

बगैर तालाब के होता है मछली पालन

चाईबासा । झारखंड राज्य का पश्चिम सिंहभूम जिला वन, पर्यावरण, खनिज संपदा से भरापूरा हैं। फिर भी युवा वर्ग का पलायन करना एक विकट समस्या है। प्रायः देखा जाता है, कि शिक्षित बेरोजगार युवक-युवती जिला छोड़कर किसी और राज्य में रोजगार के लिए पलायन कर जाते हैं। बेरोजगारों के लिए सरकार की ओर से अनेकों योजनाएं चलाई जाती है, परंतु जमीन की कमी और पैसों की कमी होने के कारण लोग अपना रोजगार नहीं ले पा रहे हैं। इसी को देखते हुए बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करना रोजगार का एक अच्छा जरिया माना जाने लगा है। बायोफ्लॉक तकनीक से कम भूमि, कम लागत, कम जल से भी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसलिए आज के दौर में बायोफ्लॉक तकनीक का प्रयोग तेजी से किया जा रहा है।
नौकरी छूटने के बाद मछली पालन, अब 5 लाख की आमदनी
पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर के रहने वाले बालवीर सेन पहले किसी कंपनी में राज्य के बाहर काम करते थे। परंतु नौकरी चले जाने के बाद रोजगार की तलाश में जिला मत्स्य कार्यालय पहुंचे। वहां उन्हें चल रही योजनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई। जिसमें उन्होंने बायोफ्लॉक तकनीक पर विशेष रुचि दिखाई। फिर उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की मदद से मछली पालन की शुरुआत की। अभी वे कवई, कोमोनकार और अमुरकार मछलियों का कारोबार कर रहे हैं। वर्तमान में वे सलाना 04 से 05 लाख का आमदनी कमा रहे हैं।
कोरोना काल में स्थिति दयनीय हुई, अब 6 क्विंटल मछली उत्पादन
चाईबासा सदर निवासी राजकुमार मुंडा एक शिक्षित कृषक हैं। काफी समय से ये खेती कर रहे हैं, परंतु उम्मीद के अनुसार मुनाफा नहीं मिला। ज्यादातर उन्हें घाटा का सामना करना पड़ा है। जिसके कारण कोरोना काल में पूरे पूरे परिवार की दयनीय स्थिति हो गई। जिसके बाद उन्होंने जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क किया। उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा के तहत बायोफ्लॉक तकनीक का लाभ दिया गया। इस तकनीक से उन्होंने कोमोनकार, मोनोसेल्स, तेलपिया और देसी मांगुर जैसे प्रजाति का पालन किया। प्रत्येक टैंक से वे 05 से 06 क्विंटल मछली का उत्पादन करते है। इससे उनके जीवनशैली में काफी सुधार आया हैं। क्योंकि इससे ज्यादा मुनाफा कमा रहे है। उन्होंने बताया कि आज वह अच्छी आमदनी के कारण अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया करा रहे हैं और अच्छी जीवन निर्वाह कर रहे हैं।
खेती-किसानी के साथ मछली पालन से आमदनी में बढ़ोतरी हुई
हाटगम्हरिया प्रखंड के सिलदौरी गांव निवासी ज्योति बिरुवा भी कम मेहनत और कम लागत से ज्यादा मुनाफा कमाकर सुकून की जिंदगी जीना चाहते थे। इसी क्रम में रोजगार की खोज में उन्हे जिला मत्स्य कार्यालय की ओर से बायोफ्लॉक तकनीक योजना अपनाने का सुझाव दिया गया। इस योजना को अपनाकर ज्योति बिरूवा अब एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं और अपने बाकी के समय में अन्य कार्य भी कर रहे हैं।
जमीन की कमी और जल स्तर नीचे जाने के कारण बायोफ्लॉक तकनीक कारगर
मछली पालन क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण लोगों के पास अब पर्याप्त जमीन नहीं है, जिससे वे तालाब बनवा कर मछली पालन कर सके। साथ ही साथ वर्षा भी दिनों-दिन कम होने के कारण भूमिगत जल का स्तर भी नीचे जा रहा है। ऐसे में बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करना भविष्य में रोजगार के एक अच्छा स्रोत साबित होगा।

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