तिरुअनन्तपुरम : केरल में बुनकरों की मदद के लिए बाढ़ में खराब हुई साड़ियों से गुड़िया बनाई गईं हैं। इसे चेकुट्टी नाम दिया गया। इन गुड़ियों को दुनियाभर में बेचने के लिए अमेरिका की सिलिकॉन वैली में एक ऐप भी बनाई गई। 2 अक्टूबर से गुड़ियों की बिक्री शुरू हो जाएगी। जिस साड़ी को बेचकर 1500 तक बुनकर कमाते थे, उसी से बनी करीब साढ़े तीन सौ गुड़ियों की बिक्री पर 9 हजार रुपए मिलेंगे। पिछले महीने केरल में आई बाढ़ में 290 लोगों की मौत हुई थी और राज्य को करीब 20 हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।
एर्नाकुलम जिले के चेंडामंगलम गांव को हैंडलूम गांव कहा जाता है। बाढ़ के चलते इस गांव का साड़ियों समेत काफी हैंडलूम मटेरियल खराब हो गया। चेकुट्टी गुड़िया को बुनकरों को त्रासदी से उबारने की उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है। हैंडलूम व्यवसाय से जुड़े लोगों की मदद के लिए केरल के दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बीड़ा उठाया। इन लोगों ने चेंडामंगलम से बाढ़ में खराब हुई साड़ी इकट्ठी की ताकि उनका दोबारा इस्तेमाल किया जा सके।
डॉल बनाने की मुहिम से जुड़ीं लक्ष्मी मेनन के मुताबिक- इन साड़ियों को क्लोरीन से साफ करने के बाद उबाला जाता है ताकि सारे कीटाणु मर जाएं। इसके बाद ही चेकुट्टी बनाने का काम शुरू होता है। लक्ष्मी कहती हैं- जुलाहों के पास खराब साड़ियों को जलाने के अलावा कोई चारा नहीं था, लेकिन अब वे उम्मीद कर सकते हैं। लोग हमें इन डॉल्स के लिए वेबसाइट, फेसबुक और वॉट्सऐप पर बड़े ऑर्डर बुक कर रहे हैं।
चेकुट्टी यानी मिट्टी में खेलने वाला बच्चा
मलयालम में चेरु का मतलब मिट्टी और कुट्टी यानी बच्चा होता है। चेकुट्टी को मिट्टी में खेलने वाला बच्चा भी कह सकते हैं। लक्ष्मी कहती हैं कि चेकुट्टी में दाग-धब्बे जरूर हैं, लेकिन यह बाढ़ से जूझने वाले हर व्यक्ति की कहानी बयां करती है।
प्योर लिविंग नामक संगठन चलाने वाली लक्ष्मी ने बताया- एक हैंडलूम साड़ी की कीमत 1300-1500 रुपए होती है। एक साड़ी से 360 डॉल्स बनाई गईं। एक डॉल 25 रुपए में बेचने की योजना है। लिहाजा एक साड़ी से 9 हजार रुपए कमाए जा सकेंगे।
बाढ़ के वक्त लक्ष्मी ने अपने टूरिज्म आंत्रप्रेन्योर दोस्त गोपीनाथ परयिल के साथ बचाव और राहत अभियान में हिस्सा लिया था। ओणम त्योहार के लिए साड़ियां तैयार की गई थीं, लेकिन सभी बाढ़ में समा गईं।
दुख में डूबे गाँव में खुशी बनकर आई चेकुट्टी
लक्ष्मी के मुताबिक- बाढ़ पूरा गाँव दुख में डूबा था। हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा था। तभी हमें खराब साड़ियों से डॉल बनाने का आइडिया आया। जुलाहे भी इस बात से खुश हुए कि उनकी मेहनत खराब नहीं होगी। लक्ष्मी और गोपीनाथ ने आइडिया को सोशल मीडिया पर शेयर किया। उन्होंने इसके लिए काम करने वाले वॉलंटियर्स को बुलाया। चेकुट्टी के लिए वेबसाइट बनाई। लक्ष्मी ने खुद जुलाहों को पास जाकर साड़ियां जुटाईं और वॉलंटियर्स को प्रशिक्षण दिया। चेकुट्टी के सपोर्ट के लिए मुख्यमंत्री पिनरई विजयन आगे आए। कोच्चि के आईटी हब इन्फोपार्क ने भी चेकुट्टी की बिक्री के लिए समर्थन दिया है। इन डॉल्स को चाबी के छल्ले, घरों में सजावट, हेंडबैग और गिफ्ट के तौर पर भी दिया जा सकता है।