कोलकाता । बागुईआटी रेल पुकुर यूनाइटेड क्लब के सदस्य इस वर्ष 2025 में 72वें वर्ष में विचारोत्तेजक थीम – “शब्दो” (ध्वनि) के साथ आगंतुकों को मंत्रमुग्ध करने की तैयारी में जुटे हैं। यह थीम प्रकृति और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की उन लुप्त होती ध्वनियों को मंडप में पेश करेगी, जो कभी हमारे अस्तित्व को परिभाषित करती थीं, लेकिन अब शहरी अराजकता में यह ध्वनि लुप्त होती जा रही हैं। इस वर्ष क्लब के सदस्य 72वें वर्ष में दुर्गापूजा के उत्सव को और भी यादगार बनाने की तैयारियों में जुटे है। एक जमाने में, पक्षियों की आवाज़ें हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग हुआ करती थीं। भोर होते ही, पक्षियों की चहचहाहट, उगते सूरज का स्वागत करती थी, और शाम ढलते ही, उनकी आवाज़ें घर वापसी का संकेत देती थीं। रात के सन्नाटे में भी, उल्लू और निशाचर पक्षी अपनी आवाज़ों से सन्नाटे को चीरते थे। हालाँकि, आजकल ऐसी आवाज़ें हमारे आसपास बेहद कम सुनाई देती हैं। इस थीम के माध्यम से क्लब के अधिकारी इस बात पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहे है कि, कैसे तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण ने, पेड़ों की बेतहाशा कटाई और कंक्रीट की ऊँची इमारतों के निर्माण ने प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर दिया है। पक्षी, जो आश्रय के लिए पेड़ों पर निर्भर थे, धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं – और उनके साथ उनकी आवाज़ें भी अब हमसे दूर हो रही है। क्लब हमें याद दिलाता है कि प्रकृति पर मानवता का अनियंत्रित प्रभुत्व हमें अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति की ओर धकेल रहा है, यह एक ऐसी कीमत है, जो आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी। इस अवसर पर बोलते हुए, बागुईहाटीं रेलपुकुर यूनाइटेड क्लब के समिति सदस्य गौरव बिश्वास ने कहा, हमारा थीम ‘शब्दो’ केवल एक कलात्मक रचना नहीं है, बल्कि यह हमारी सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है। पक्षियों और प्रकृति की ध्वनियाँ, जो कभी हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग थीं, वे अब अनियंत्रित शहरीकरण के कारण लुप्त होती जा रही हैं। इस थीम के माध्यम से, हम समाज को यह याद दिलाना चाहते हैं कि, ये आवाज़ें केवल पृष्ठभूमि संगीत नहीं हैं, बल्कि यह हमारे पर्यावरण की धड़कन हैं। अगर हम आज इस गंभीर होती जा रही समस्या को लेकर नहीं जागे तो कल की दुनिया खामोश हो जाएगी। दुर्गा पूजा केवल उत्सव का ही नहीं, बल्कि जागरूकता, ज़िम्मेदारी और मानवता के जागरण का भी प्रतीक है।