बांग्लादेश / भबानीपुर शक्तिपीठ में मां का अपर्णा रूप, नवरात्र में होता है सिर्फ कलश पूजन

देवी के 51 शक्तिपीठों में से चार बांग्लादेश में हैं। इनमें से एक है, बगोरा जिले के शेरपुर कस्बे से 28 किलोमीटर दूर करतोय नदी के तट पर भबानीपुर शक्तिपीठ। यहां नवरात्र में कलश पूजा होती है, प्रतिमा की नहीं। पुजारी रवींद्र नाथ भादुड़ी बताते हैं, रोज 300 से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं, लेकिन नवरात्र में आने वालों की संख्या हजारों में होती है। भारत से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

पाँच एकड़ में फैला है मंदिर परिसर

मंदिर प्रबंध समिति के शिवाशीष पोद्दार के अनुसार राजा रामकिशन ने 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच यहां 11 मंदिर बनवाए थे। तब उन्होंने इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाया था। यह शक्तिपीठ लगभग पांच एकड़ क्षेत्र में फैला है। यहां देवी के अपर्णा रूप की पूजा होती है। अपर्णा का अर्थ है- जो भगवान शिव को अर्पित है। हर शक्तिपीठ पर देवी के साथ भैरव भी होते हैं। यहां के भैरव का नाम वामन हैं।

दिन में 3 बार भोग के साथ होती है आरती

यहां दिन में तीन बार आरती की परपंरा है। सुबह की आरती को बाल्य भोग कहा जाता है। दोपहर की आरती में अन्न भोग और शाम को महाभोग कहा जाता है। यहां स्थापित भैरव का नाम वामन है। आम दिनों में यहां काली की पूजा होती है। लेकिन नवरात्र में कलश पूजा की परंपरा है। मान्यता है कि यहां देवी के बाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी पर पशु बलि भी होती है। मंदिर के पास ही तालाब है, जिसे शक तालाब कहा जाता है। इसमें स्नान के बाद दर्शन किया जाता है। मुस्लिम भी यहां नियमित आते हैं। लॉ की पढ़ाई कर रहीं हुमा इस्लाम बताती हैं कि उनका परिवार रामनवमी सहित बड़े उत्सवों के मौके पर शक्तिपीठ मेले में जाता है। भारत, श्रीलंका, नेपाल से यहां हजारों भक्त आते हैं। बांग्लादेश में भबानीपुर के अलावा खुलना में सुगंध नदी के तट पर सुगंध शक्तिपीठ, चटगांव में चट्टल शक्तिपीठ और जैसाेर खुलना में यशोर शक्तिपीठ भी है।

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