बनारस ! भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी नगरी ! ज्ञान की नगरी, मंदिरो की नगरी, दीपों का शहर, घाटों का शहर …. चाहे किसी भी नाम से इस शहर को बुलाओ … इसकी हर बात अनोखी है, निराली है ।ये सिर्फ एक शहर नहीं ,एक अहसास है जो बनारसियों की ही नही हर भारतीय की दिल की धडकन है ।भक्ति, विश्वास और आस्था की पराकाष्ठा यहाँ दिखायी देती है।भोले बाबा की नगरी ,चंद्राकार बहती हुई माँ गंगा की प्रवाहधानी , अद्भुत है इसकी बनावट ! आधा जल में , आधा मंत्र में , आधा फूल में , आधा शव में , आधा नींद में , आधा शंख में ! कहीं जन्म का उत्सव मना रहा कोई , कहीं किसी की चिता जल रही है , यहाँ जीवन और मृत्यु का अजीब मेल देखा जा सकता है ।यहाँ मृत्यु सौभाग्य से ही प्राप्त होती है।इस घाट पर अग्नि कभी नहीं बुझती । बनारस को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। यहाँ जन्म सत्य है , मृत्यु शिव है , मुक्ति सुन्दर है ।यहाँ कण– कण शंकर है — इसलिए बनारस युगों युगों से ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम’ है ! इसकी हर गली में एक कहानी है । इसकी हवा में एक कहानी है । गंगाजी के बहते पानी में भी कहानी है ।हिंदू तथा जैन धर्म में इसे सात पवित्र नगरों (सप्तपुरी) में से सबसे पवित्रतम नगरी कहा गया है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख यहाँ वाराणसी में स्थापित है। प्रजापति दक्ष के द्वारा शिव की उपेक्षा किए जाने पर बनारस के मणिकर्णिका घाट पर ही माता सती ने अपने शरीर को अग्नि को अर्पित कर दिया था और यहीं उनके कान का गहना भी गिरा था।गोस्वामी तुलसीदास जी ने बनारस के तुलसी घाट पर ही बैठ कर रामचरितमानस की रचना की थी।आज भी उनकी खड़ाऊँ वहाँ रखी है । ब्रह्म मुर्हूत में मंगलाआरती ! एक स्वर्गिक अनुभूती ! काशी विश्वनाथ दर्शन ।फिर अस्सी घाट ! भगवान रूद्र ने एक बार अस्सी असुरों का वध करवा दिया था बनारस के एक घाट पर, तभी से उस घाट को अस्सी घाट कहा जाता हैं।यहां की धरती में ही शक्ति है, यहां की बोली में अपनापन हैं।यहा की बात ही कुछ और है ! सब कुछ अपनी ओर खींचता है।एक बनारस चौक पे भी बसता है जनाब ! हैरान कर देने वाली संकरी गलियों में आनंद लीजिये मीठे से लेकर तीखे, हर तरह के स्वादिष्ट पकवानो का , राज बंधु की मिठाइयाँ , लाल पेड़े, गरम गरम जलेबी , लस्सी, दीनानाथ केसरी की लाजवाब टमाटर चाट ,गुलाब जामुन ,बनारसी पान की तो ,या फिर यहां की बनारसी साड़ी ।सब कुछ अतुनलीय ! संस्कारधानी माँ गंगा की गोद पर नाव की सवारी । देव दीपावली का अकल्पनीय दृश्य , अनुपम छटा ! घाट पर जलते हुए लाखों दियों की रोशनी में झिलमिलाती माँ गंगा ! अनवरत शंखध्वनि से संपूर्ण वातावरण में प्रणव ध्वनि गुंजायमान रही है । काशी का प्रभाव ही कुछ ऐसा है, जो देखने को मिलता है:- भक्तों की भक्ति में, देवों की शक्ति में , गंगा की धार में, घाटों की पुकार में , दीपों की ज्योत में, फूलों के हार में , हर मुमुक्षु ह्रदय की पुकार में !’हर हर महादेव शंभु काशी विश्वनाथ गंगे’।।