अगर कारोबार की बात चले तो बड़ाबाजार एक ऐसी जगह है जहाँ सब आते हैं और यहीं पर है महात्मा गाँधी रोड जिसे कभी हैरिसन रोड कहा जाता था। आज इस जगह को हम शोर – गुल, भीड़ के लिए जानते हैं पर क्या आप जानते हैं कि बड़ाबाजार का यह इलाका कभी स्वदेशी आन्दोलन का गढ़ रहा। यहीं वह जगह है जहाँ विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी और यहीं से गाँधी जी के चरखे को बल मिला। बड़ाबाजार के कई व्यवसायी स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े थे, गाँधी के अनुयायी थे और उनके ही कहने पर खादी के प्रसार में उन्होंने अपना योगदान दिया।
आज भी बड़ाबाजार में खादी की ऐसी कई दुकानें हैं जो इस खादी आन्दोलन और स्वदेशी की साक्षी हैं, जिनका एक बड़ा इतिहास है। चाहे व 1942 में स्थापित सस्ता खादी भंडार हो या 1940 में स्थापित जनता खादी भंडार या फिर 1929 में स्थापित शुद्ध खादी भंडार, जिसका उद्धघाटन महात्मा गाँधी ने किया था। स्वदेशी की इसी भावना का प्रसार गोविन्द भवन भी करता आ रहा है। बड़ाबाजार के महात्मा गाँधी रोड आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को जीवन्त करती आ रही इतिहास की वही स्वदेशी धारा है जिसने चरखे को और तेज किया और आज भी रोजगार की धारा प्रवाहित कर रही है। हम यहाँ मुख्य रूप से ऐसी ही दो दुकानों तक आपको ले जा रहे हैं…जिन्हें आपने देखा तो है पर शायद इस तरीके से इनके बारे में सोचा न हो कि यह अनमोल विरासत बड़ाबाजार की पहचान को कैसे राष्ट्रीय बना रही है –
बात करते हैं गोविन्द भवन की जो 151, महात्मा गाँधी रोड पर है और 1928 में 1860 के सोसायटीज एक्ट के तहत इसे पंजीकृत किया गया था।
फिलहाल यह 1960 के वेस्ट बंगाल सोसायटीज एक्ट के तहत पश्चिम बंगाल सरकार के अधीन है। इसके विभाग हैं, गीता प्रेस, गीता भवन, वैदिक स्कूल, सेवा दल और औषधालय इत्यादि।
गोविन्द भवन से ही गीता प्रेस का संचालन होता है। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी के साथ ही आम जनता में सनातन धर्म और हिन्दू धर्म का प्रसार करना है।
गीता प्रेस को हम गीता, रामायण, उपनिषद, पुराण के अतिरिक्त विभिन्न संतों से जुड़े साहित्य, चरित्र निर्माण के लिए उपयोगी पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के प्रकाशन के लिए जानते हैं जो बहुत अधिक सस्ती कीमतों पर उपलब्ध करवाया जाता है। गोविन्द भवन की स्थापना सेठ जयदयाल गोयन्दका तथा भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा की गयी थी।
सेठ जयदयाल गोयन्दका व्यापार कार्य से कोलकाता जाते थे और वहाँ जाने पर सत्संग करवाते थे। सेठजी और सत्संग जीवन-पर्यन्त एक-दूसरेके पर्याय रहे। सेठजीको या सत्संगियों को जब भी समय मिलता सत्संग शुरू हो जाता। कई बार कोलकातासे सत्संग प्रेमी रात्रि में खड़गपुर आ जाते तथा सेठजी चक्रधरपुरसे खड़गपुर आ जाते जो कि दोनों नगरोंके मध्यमें पड़ता था। वहाँ स्टेशन के पास रातभर सत्संग होता, प्रात: सब अपने-अपने स्थानको लौट जाते। सत्संगके लिये आजकल की तरह न तो मंच बनता था न प्रचार होता था। कोलकाता में दुकान की गद्दियों पर ही सत्संग होने लगता। सत्संगी भाइयों की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी।
दुकान की गद्दियों में स्थान सीमित था। बड़े स्थान की खोज प्रारम्भ हुई। पहले तो कोलकाता के ईडन गार्डेन के पीछे किले के समीप वाला स्थल चुना गया लेकिन वहाँ सत्संग ठीक से नहीं हो पाता था। पुन: सन् 1920 के आसपास कोलकाता की बाँसतल्ला गली में बिड़ला परिवार का एक गोदाम किराये पर मिल गया और उसे ही गोविन्द भवन (भगवान् का घर) का नाम दिया गया।
वर्तमान में महात्मा गाँधी रोड पर वही भव्य भवन ‘गोविन्द-भवन’ के नाम से है जहाँ पर नित्य भजन-कीर्तन चलता है तथा समय-समय पर सन्त-महात्माओं द्वारा प्रवचनकी व्यवस्था होती है। हिन्दू धर्म की शिक्षा के प्रचार कार्य में गोविन्द भवन मुख्य रूप से सस्ती धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए जाना जाता है पर इसकी पहचान इतनी भर नहीं है।
यहाँ पर गीता कमेटी है जो गीता को लेकर कई कार्यक्रम आयोजित करती है, परम सेवा समिति है और गोविन्द भवन में आपको गंगा जल भी मिल जायेगा। यहाँ आयुर्वेदिक दवाओं से लेकर कपड़े, चादर, तौलिये, चूड़ियाँ, साबुन से लेकर घी तक सब कुछ मिल जायेगा। अगर गौर से देखा जाये तो मॉल संस्कृति जिस तरह से ‘एक छत के नीचे सब कुछ उपलब्ध होने’ की जो बात करती है, वह दशकों पहले गोविन्द भवन बहुत पहले कर चुका है।
मॉल संस्कृति को अभी भी नकारात्मक भाव से ही लिया जाता है मगर सकारात्मक होकर सोचा जाये तो गोविन्द भवन को ही इस शहर और सम्भवतः देश का पहला मॉल माना जाना चाहिए। एक ऐसी जगह जो आम जनता के लिए है…जहाँ जाने से पहले आपको यह नहीं सोचना पड़ता कि आप किस क्लास से हैं…या आपका बजट कितना है और सबसे अच्छी बात यह कि यहाँ सामान ही नहीं बल्कि वह किताबें भी मिलती हैं जो हमारे दिमाग की खुराक हैं जो सीधे हमारी संस्कृति से जोड़ती हैं।
हनुमान प्रसाद पोद्दार सिर्फ एक व्यवसायी ही नहीं थे बल्कि एक साहित्यकार और स्वाधाीनता सेनानी भी थे…मगर यह सोचने वाली बात है कि क्या हमने उनको समुचित सम्मान दिया? जिस पुरस्कार और सम्मान को पाने के लिए लोग अपनी विचारधारा को ताक पर रख देते हैं…वे सभी सम्मान उनको कभी नहीं लुभा सके तो ऐसे लोग हमारी पाठ्यपुस्तकों में क्यों नहीं हैं…यह भी सवाल बनता है। हनुमान प्रसाद पोद्दार ने आजीवन कल्याण पत्रिका का सम्पादन किया। गोविन्द भवन कार्यालय के मैनेजर आनन्द लडिया ने बताया कि सस्ती किताबों को बेचने के कारण जो घाटा होता था, उसी को पूरा करने के लिए गोविन्द भवन कार्यालय में ये अन्य सभी विभाग खोले गये और यह सब भी स्वदेशी हैं और जब बात गुणवत्ता की हो तो गोविन्द भवन एक विश्वसनीय नाम है। पुस्तकों की थोक व फुटकर बिक्री के साथ ही साथ हस्तनिर्मित वस्त्र, काँचकी चूडियाँ, आयुर्वेदिक ओषधियाँ आदिकी बिक्री उचित मूल्य पर होती है। गीता प्रेस और हनुमान प्रसाद पोद्दार, दोनों पर ही अलग से चर्चा करने और बात करने की जरूरत है…तो फिलहाल हम महात्मा गाँधी रोड की स्वदेशी विरासत की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए आपका परिचय एक ऐसी दुकान से करवाते हैं जो अपने आप में संस्थान है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि आज जहाँ प्रभात सिनेमाघर है, कभी वहाँ मैदान हुआ करता था और यहीं पर विदेशी वस्त्रों की होली भी जलायी गयी थी मगर आज जब हम बड़ाबाजार की बात करते हैं तो यह इतिहास कहीं से भी नजर नहीं आता और न ही नजर आने दिया जाता है। स्वदेशी के प्रसार और गाँधी जी के सपने को पूरा करने में व्यवसायी वर्ग का बड़ा योगदान है जिसे नजरअन्दाज किया गया है। उदाहरण के लिए घनश्याम दास बिड़ला गाँधी से कितने प्रभावित थे, ये हम सब जानते हैं, ये कितने बड़े व्यवसायी थे, य़ह भी सबको पता है पर क्या आप जानते हैं कि महात्मा गाँधी के कहने पर इन्होंने इसी बड़ाबाजार में खादी की एक दुकान भी खोली थी जिसका उद्घाटन घनश्याम दास बिड़ला के आग्रह पर खुद महात्मा गाँधी ने 1929 में किया था।
दुकान में अन्दर जाते ही आपको महात्मा गाँधी की तस्वीर मिलेगी। तब घनश्याम दास बिड़ला ने तब उस समय के कुछ और स्वाधीनता सेनानियों के साथ यह दुकान खोली थी। शुद्ध खादी भंडार के सचिव पंकज कुमार नेवटिया के अनुसार इनके पिता राधा किशन नेवटिया भी स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े थे और विदेशी वस्त्र आन्दोलन की होली जलाने में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी। कई स्वाधीनता सेनानियों पर राधा किशन नेवटिया ने ‘बड़ाबाजार के कार्यकर्ता’ के नाम से किताब लिखी है।नेवटिया बताते हैं कि खादी को पहले खद्दर समझ कर लोग कतराते थे पर खादी ने खुद को विकसित किया और आज खादी सबकी पसन्द बन चुकी है। सरकार ने भी खादी को प्रोत्साहन दिया है, प्रचार में सहयोग दिया है।
नदिया के कृष्णनगर स्टेशन से 8 किमी दूर चित्रशाली में इन्होंने स्कूल बनवाया। 1986 में गाँव की महिलाओं के लिए 100 चरखे के साथ निर्माण इकाई शुरू की। अब खादी क्लस्टर बनाया गया है जिसमें 200 चरखे हैं। यहाँ रेडिमेड कपड़े बनेंगे और फिलहाल इस परियोजना का 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। इस तरह शुद्ध खादी भंडार जैसी कई दुकानों के जरिए बड़ाबाजार का इतिहास न सिर्फ विदेशी वस्त्रों के त्याग का इतिहास है बल्कि यह स्वदेशी के निर्माण का गढ़ भी है। विडम्बना देखिए कि इस इतिहास पर उपेक्षा की ऐसी धूल चढ़ी है कि आज महात्मा गाँधी रोड को जल जमाव और जाम के कारण जाना जाता है…जरूरत है कि अब इस धूल को साफ करके हकीकत को सामने लाया जाये औऱ यही हमारी कोशिश है।