मनोरंजन के तमाम साधनों के बीच रेडियो ऐसा साथी है जो हमेशा से साथ रहा है मगर आज उसका स्वरूप बदल गया है। पहले रेडियो पर उद्घोषक गीत सुनाया करते थे मगर आज उसका रिश्ता आस – पास की बदलती दुनिया से भी है। आर जे अब सिर्फ गीत या प्रशंसकों के नाम भर नहीं सुनाया करते बल्कि आस – पास के परिवेश में उसकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। वह अपनी बात कहता है मगर इस चुटीले अंदाज में कि सुई आर – पार हो जाती है और आप हँसने के सिवा ज्यादा कुछ नहीं कर सकते बल्कि यह काफी कुछ पत्रकारिता और मनोरंजन का मिला जुला रूप हो गया है। बात जब रेडियो की हो तो बजाते रहो यानि रेड एफ जरूर याद आता है और रेड एफ एम की याद आए तो रेडियो की रानी आर जे नीलम की याद न आए तो ऐसा तो हो नहीं सकता। अभी हाल तक वह सभी को मुर्गा बनाया करती थीं और अब कोलकाता कटिंग में व्यस्त हैं। गाहे – बगाहे डिमांड पर बेईज्जती भी करती हैं और वह भी कुछ इस अंदाज में कि बस कहिए मत। अपराजिता इस बार आपकी मुलाकात रेड एफ एम की लोकप्रिय आर जे नीलम से करवाने जा रही है –
आज का दौर सोशल नेटवर्किंग का दौर है
रेडियो की दुनिया में आज मुझे 10 साल से अधिक हो गए हैं और इस दौरान मैंने काफी कुछ सीखा है। एक व्यक्ति के तौर पर अब कहीं अधिक परिपक्व हो गयी हूँ। आज का दौर सोशल नेटवर्किंग का दौर है और उसके कारण जानकारी का भी दौर है मगर जितनी अधिक जानकारी होती है, दिमाग में हलचल उतनी ही अधिक हो जाती है। इसका असर हमारे संबंधों पर भी पड़ा है। सोशल मीडिया पर बहुत क्रांतिकारी विचार हो पाते हैं मगर हकीकत में उनको लागू कर पाना सम्भव नहीं हो पाता।
छवि बनाना बेहद जरूरी होता है
बतौर इंटरटेनर हर आर जे का अपना स्टाइल होता है और एक छवि होती है जो उसे दूसरों से अलग करती है। आपकी अपनी एक छवि हो, यह बेहद जरूरी है। जहाँ तक मेरी बात है तो मैंने जो सीखा है, अपने अनुभवों से सीखा है और उसी से मेरी छवि विकसित होती है। मेरी कोशिश रहती है कि मैं जो भी करूँ या कहूँ, श्रोता उससे खुद को जोड़ सकें। मैं हमेशा कोशिश करती हूँ कि मेरी प्रस्तुति में बनावटीपन न हो और वह प्राकृतिक रहे इसलिए मैं बातों को छोटी – छोटी चीजों से जोड़ने की कोशिश करती हूँ जो आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा होती है और श्रोता उससे एक सम्पर्क बना लें।
आज के बच्चे काफी समझदार हैं
कई बार होता है कि हम अपनी प्रोफेशनल जीवन की परेशानी से उबर नहीं पाते और घर जाते ही बच्चों पर सारा गुस्सा निकाल देते हैं मगर यह गलत है। हमारे भीतर इतना धैर्य नहीं रहता कि वक्त निकालकर हम बच्चों की बातें सुनें जबकि यह बेहद जरूरी है। मैं मिक्सड नेचर वाली मम्मी हूँ और मेरी बेटी काफी समझदार है। कई बार वह ऐसी बातें करती है कि उनकी बातों पर सोचना पड़ जाता है। बच्चों की बातों को सुनने और समझने की जरूरत है। मुझे लगता है कि माँ बनने के बाद मैं बेहतर इंसान भी बनी हूँ।
लगातार चलने वाली प्रक्रिया है महिला सशक्तीकरण
महिला सशक्तीकरण लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। आज महिलाएं पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं तो यह समानता सशक्तीकरण है मगर मुझे लगता है कि एक महिला अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीए, बंधी – बँधायी सोच से बाहर निकले और वो करे जो पुरुष ने नहीं किया हो तो वह सशक्तीकरण का दिन होगा।
तनाव का असर अपने काम पर न पड़ने दें
जीवन में तनाव होगा और इसे खत्म नहीं किया जा सकता मगर फिर भी मैं ये कहना चाहूँगी कि जीवन में तनाव न लें। हर समस्या का समाधान हो सकता है और इसके लिए जरूरी है कि तनाव का असर आपके काम पर नहीं पड़ना चाहिए।