चित्रकूट । सूखा, ओलावृष्टि जैसी दैवीय आपदाओं और दस्यु समस्या के लिए सुर्खियों में रहने वाले बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले के किसानों की अब तस्वीर बदल रही है। ये किसान परम्परागत खेती को छोड़कर गुलाब और गेंदा जैसे फूलों की खेती कर रहे हैं और इस तरह ये किसान अपनी आय दोगुनी कर रहे हैं। खेती में हुए इस बदलाव से बदहाली का रोना रोने वाले किसान अब आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं।
भगवान श्रीराम की तपोभूमि होने के कारण धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध होने के बावजूद बुंदेलखंड के अति पिछड़े जिले चित्रकूट का नाम आते ही लोगों के दिमाग में भुखमरी, बेरोजगारी, पेयजल संकट और दस्यु समस्या की तस्वीर उभरने लगती है। सूखा, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि और आगजनी जैसी दैवीय आपदाओं से परेशान होकर बुंदेलखंड के किसानों की आत्महत्या की घटनाएं भी काफी समय तक राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनती रही हैं।
दुर्दांत डकैतों के आतंक के चलते कई दशकों तक पाठा के बीहड़ों से सटे सैकड़ों गांव में विकास की किरण नहीं पहुंच सकी थी। रोजगार की तलाश में क्षेत्र के हजारों युवाओं को गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली आदि प्रदेशों को पलायन करना पड़ता रहा है। सिंचाई वगैरह का पर्याप्त इंतजाम न होने के कारण चित्रकूट में खेती हमेशा घाटे का सौदा मानी जाती रही है। भगवान भरासे हो रही खेती में किसानों को लागत के बराबर भी आमदनी नहीं हो पा रही थी।
लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों से चित्रकूट जिले की तस्वीर बदलने लगी है। क्षेत्र के किसानों ने परम्परागत गेंहू, चना और धान आदि फसलों की खेत को छोड़कर उद्यानीकरण को अपना कर गुलाब, गेंदा वगैरह फूलों की खेती शुरू कर अपनी आय को दोगुना कर खुशहाल जीवन बिता रहे हैं। ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर बुंदेलखंड के अन्य जिलों में बड़ी संख्या में किसानों का रुझान फूलों और सब्जियों की खेती की ओर बढ़ रहा है।
चित्रकूट जिले के तरौंहा, डिलौरा, सीतापुर, गढ़वा, पूरबपताई, हनुवा, घुरेहटा, हटवा और मनोहरगंज आदि गांवों के दर्जनों किसानों ने परम्परागत गेंहू, चना, धान आदि की खेती को छोड़ दिया है। उन्होंने अब गुलाब, गेंदा आदि फूलों की खेती कर आत्मनिर्भता की ओर मजबूत कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। किसानों के घर में आर्थिक समृद्धि ने बसेरा बना लिया है। डिलौरा-तरौंहा, रामबाग, सीतापुर, पहाड़ी के किसान महज उदाहरण हैं। इनसे सीख लेकर बुंदेलखंड के कई जिलों के अन्नदाताओं की जिंदगी भी फूल की खेती ने महका दी है।
चित्रकूट जिले के कर्वी ब्लॉक के डिलौरा गांव निवासी विनोद कुशवाहा, जगन्नाथ कुशवाहा, गोबरिया के हरी, मनोहरगंज के सत्येंद्र पटेल हनुवां के हेमराज और घुरेहटा केवेट आदि ने परंपरागत गेहूं-धान से इतर गुलाब के फूलों की खेती शुरू की है। पहले जहां फसल उगाने के लिए तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता था वहीं अब चार से पांच सौ रुपये प्रतिदिन की आमदनी करते हैं।
तरौंहा गांव निवासी छोटेलाल पिछले चार सालों से गेंदा के फूल की खेती कर रहे हैं। खाद-बीज के लिए धनराशि को लेकर दिक्कत में फंसे रहने वाले छोटेलाल अब हर दिन दो से पांच सौ रुपये तक कमाई कर लेते हैं। उनकी आर्थिक हालत सुधर गई है। उनके फूलों की खासी डिमांड रहती है। शादी-विवाह के सीजन में पड़ोसी जिले सतना, प्रयागराज, बांदा आदि तक के लोग उनके फूल खरीदने आते हैं।
जिला उद्यान अधिकारी आशीष कटियार ने बताया कि फूलों की फसल महज दो-तीन माह में तैयार हो जाती है। इसके बाद पांच माह तक कमाई का जरिया बनती है। एक एकड़ में साल भर में डेढ़ से दो लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं, जबकि सामान्य परम्परागत फसल में महज 50 से 70 हजार रुपये तक की आय हो पाती है क्योंकि उसमें खर्चे अधिक होते हैं।
वर्तमान में करीब 90 एकड़ जमीन पर फूलों की खेती हो रही है।आशीष कटियार ने बताया कि फूल बिक्री का प्रमुख बाजार कर्वी, सीतापुर, चित्रकूट में लगता है। सुप्रसिद्ध कामतानाथ मंदिर, मंदाकिनी के रामघाट से लेकर प्राचीन मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिदिन हजारों क्विंटल फूल की खपत से बिक्री में आसानी रहती है। दुकानदार सुदामा प्रसाद कहते हैं कि आसपास के किसान सीधे फूल लाकर बिक्री करते हैं। मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को भी चढाने के लिए ताजे फूल मिल जाते हैं।
जिलाधिकारी अभिषेक आनंद का कहना है कि उद्यान विभाग लगातार परंपरागत खेती से हटकर फूलों और सब्जियों की खेती के लिए प्रोत्साहन दे रहा है। इसका खासा असर जिले के किसानों पर दिखाई पड़ रहा है। कई ब्लॉकों में किसान फूलों की खेती से आय बढ़ाने में कामयाब हुए हैं। धीरे-धीरे दूसरे किसानों को भी उद्यान विभाग प्रोत्साहन दे रहा है।
साभार – नवभारत टाइम्स