पुणे : पुणे के रहने वाले योगेश शिंदे एक आईटी बेस्ड मल्टीनेशनल कंपनी में एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट थे। 14 साल के करियर में 5 साल लंदन-जर्मनी समेत तमाम देशों में पोस्टिंग रही। एक दिन उन्होंने सोचा कि आखिर वो अपने देश के लिए क्या कर रहे हैं? इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ अपने देश में ही कारोबार करने का निर्णय लिया।
साल 2016 में उन्होंने बैंबू इंडिया की शुरुआत की, आज उनकी कम्पनी बांस से ऐसे तमाम प्रोडक्ट बनाती है जो प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने में सहयोग देते हैं। योगेश कहते हैं ‘साल 2016 में जब हमने कम्पनी शुरू की थी तो पहले साल हमारा टर्नओवर 52 लाख रुपए का था। वहीं पिछले फाइनेंशियल ईयर में हमारा टर्नओवर 3.8 करोड़ रुपये रहा।’
वो कहते हैं ‘मैं जानता हूं कि 3.8 करोड़ रुपए टर्नओवर होना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन हमारा विजन अलग है। हमने अपने बैंबू प्रोडक्ट के जरिए 13 दिसम्बर तक 13.5 लाख किलोग्राम प्लास्टिक वेस्ट होने से बचाया है। हमारे पास देश के 2500 किसानों की टीम है और 200 से ज्यादा सपोर्ट स्टाफ है। सही मायने में यही हमारा टर्नओवर है।’ योगेश कहते हैं कि मेरी कहानी बिल्कुल एक मध्यमवर्गीय युवाओं जैसी ही है। मैंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की, फिर पुणे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और जिस तरह एक आईटी इंजीनियर की जर्नी होती है, वैसी ही रही।
मैंने 14 साल की आईटी सेक्टर की नौकरी की। अपने 14 साल के उस करियर में योगेश ने कभी भी भारतीय कंपनी में नौकरी नहीं की। इसके चलते उनके दिल में एक मलाल भी था कि वो अपने देश के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। साल 2013 में जब वो भारत वापस आए तो तमाम विषयों पर रिसर्च करना शुरू कर दिया।
इसमें जीरो वेस्ट फार्मिंग, मेडिसिनल प्लांट की खेती के बारे में भी पता किया। लेकिन इन सेक्टर्स में कोई न कोई काम कर रहा था। इसके बाद योगेश ने बांस के बारे में रिसर्च करना और पढ़ना शुरू किया, तो पता चला कि भारत बांस उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश है। बांस ट्री नहीं ग्रास है और ये विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाला ग्रास है। फिर पता चला कि बांस उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश होने के बाद भी हम सिर्फ चार प्रतिशत ही एक्सपोर्ट कर रहे हैं। इससे योगेश को बैंबू फॉर प्लास्टिक का आइडिया आया। और उन्होंने तय किया कि वो बांस से ऐसे प्रोडक्ट बनाएंगे जो प्लास्टिक को रिप्लेस कर सकेंगे। धीरे-धीरे उन्होंने गिफ्टिंग आइटम, बैंबू स्पीकर, डेस्क आर्गनाइजर तैयार किया। योगेश कहते हैं ‘मैं जानता था कि लोगों की प्लास्टिक की आदत बदलने और ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली चीजों का विकल्प तैयार करना होगा। इसके बाद हमने बैंबू टूथब्रश पर काम शुरू किया। इस दौरान पता चला कि ये पॉलीथीन के बाद टूथब्रश विश्व का दूसरा सबसे बड़ा प्लास्टिक पोल्यूटेड कंटेंट है और इसकी रिसाइकलिंग आसान नहीं है। भारत में ही हर महीने 20 करोड़ टूथब्रश का इस्तेमाल होता है। तब मुझे समझ में आया कि इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। इसके बाद हमने इस पर रिसर्च की और बैंबू से एक टूथब्रश बनाकर मार्केट में उतारा।’
योगेश कहते हैं ‘हमने ‘बैंबू फॉर प्लास्टिक’ थीम पर काम किया। हमारी टैगलाइन भी ‘टू मेक इनोवेटिव प्रोडक्ट्स, टू रिप्लेस प्लास्टिक प्रोडक्ट’ थी। अप्रैल 2016 में जब हम कम्पनी का नाम रखने, उसे मार्केट में लाने के बारे में प्लानिंग कर रहे थे तो हमने सोचा कि देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी और अब उसे प्लास्टिक से आजादी दिलानी थी। इसलिए हमने साल 2016 में 15 अगस्त के दिन को ही चुना। वहीं 18 सितम्बर को इंटरनेशनल बैंबू डे के दिन हम कई जागरुकता कार्यक्रम करते हैं।’
योगेश का मानना है कि प्लास्टिक हमारी आदत बन चुका है इसलिए अपनी आदत बदलना लोगों के लिए काफी मुश्किल है। वो कहते हैं ‘प्लास्टिक खराब नहीं, वो हमारे लिए वरदान है लेकिन ये शुगर की तरह है। अगर सही मात्रा में लेंगे तो उर्जा देगा लेकिन ज्यादा मात्रा में लेने पर डायबिटीज हो जाती है। हमें प्लास्टिक का ऐसी जगहों पर ही इस्तेमाल करना है, जहाँ कोई और विकल्प नहीं हो सकता।’ योगेश के मुताबिक दीया मिर्जा, जूही चावला, श्रद्धा कपूर और रणदीप हुड्डा… ये ऐसे नाम हैं, जो खुद उनकी कम्पनी के बनाए बैंबू उत्पाद ऑर्डर करके इस्तेमाल कर रहे हैं और अपने दोस्तों को भी बांट रहे हैं। योगेश कहते हैं ‘इन सेलेब्स ने आज तक हमसे एक पैसा नहीं लिया और ना ही कभी फ्री में प्रोडक्ट मंगाया और अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर हमारे प्रोडक्ट के बारे में पोस्ट किया। इन सेलेब्स ने ‘वोकल फॉर लोकल’ को सही साबित किया।
योगेश बताते हैं ‘मेरे परिवार में अभी मेरे अभिभावक हैं, दोनों रिटायर्ड टीचर हैं, अब अपनी रिटायरमेंट लाइफ एंज्वाय कर रहे हैं। मेरी वाइफ मेरी कंपनी के सभी ई-कॉमर्स और फाइनेंस सेक्शन को हैंडल करती हैं। मेरे दो बच्चे हैं। बेटा कॉलेज में है बेटी स्कूल में है। मेरी बेटी कम्पनी के लिए मॉडलिंग का काम करती है। हमारे सभी पोस्टर्स में मेरी बेटी ही दिखेगी। क्योंकि हमें कम बजट में ही सब चीजें करनी होती हैं तो कभी कर्मचारियों के बच्चे, कभी अपने बच्चों को ही हम बतौर मॉडल इस्तेमाल करते हैं।’वो बताते हैं ‘जब मैंने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया तब बच्चों की पढ़ाई चल रही थी, घर की ईएमआई भी चल रही थी। लेकिन परिवार को मुझ पर भरोसा था, हमने तय किया था कि एक साल काम करेंगे और अगर कुछ अच्छा नहीं हुआ तो वापस अपनी जॉब में लौट जाऊंगा। हमें अपने काम के लिए बैंक से लोन नहीं मिला तो हमने अपना घर गिरवी रखकर काम शुरू किया।
जब व्यवसाय शुरू किया तो बैंबू स्पीकर बनाने वाली पहली मशीन साढ़े 8 हजार रुपए की ली थी। इसके बाद जैसे-जैसे आमदनी हुई तो वही पैसा कारोबार में लगाया, आज हमारी कम्पनी की नेटवर्थ 2.5 करोड़ रुपये है। अभी हमारी कम्पनी में 32 लोगों को सीधे रोजगार मिला है और 100 से ज्यादा लोग हमारे लिए कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं।’ योगेश के मुताबिक, बैंबू इंडस्ट्री में चार स्टेज हाेती हैं। पहली स्टेज बैंबू नर्सरी और प्लांटेशन है, इसमें किसान अपने खेत में नर्सरी या बांस लगाकर उसकी खेती करते हैं। दूसरी स्टेज प्री-प्रोसेसिंग यूनिट होती है, इसमें मार्केट की डिमांड के मुताबिक रॉ मटीरियल उपलब्ध कराया जाता है।
तीसरी स्टेज प्रोडक्ट डिजायन, डेवलपमेंट एंड प्रोडक्शन है, इसमें रॉ मटीरियल से लेकर हाईएंड प्रोडक्ट तब बनाए जाते हैं। वहीं चौथी स्टेज अवेयरनेस, सेल्स एंड मार्केटिंग है, इसमें बैंबू प्रोडक्ट्स के अवेयरनेस से लेकर उसकी मार्केटिंग तक पर काम किया जाता है।
योगेश कहते हैं कि मौजूदा सरकार ने बैंबू को ट्री कैटेगरी से हटाकर ग्रास कैटेगरी में रखा है, जिससे अब इसे काटने और इसके ट्रांसपोर्टेशन के लिए किसी भी तरह की अनुमति नहीं लेनी होती है। यह बैंबू इंडस्ट्री के लिए काफी फायदेमंद है। लेकिन बैंबू इंडस्ट्री में आते समय इन चार स्टेज में से आपको तय करना है कि आप क्या करना चाहते हैं। इसमें चारों काम एक साथ करना काफी मुश्किल होता है।
(साभार – दैनिक भास्कर)