इन दिनों प्लास्टिक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है। यह धरती और समंदर को प्रदूषित करने के साथ ही समुद्री जीवों और मानव स्वास्थ्य + के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। अब तक इसका कोई ठोस विकल्प ढूंढा नहीं जा सका है। यही वजह है कि इस बार 5 जून यानी विश्व पर्यावरण दिवस 2018 को ‘बीट प्लास्टिक पलूशन’ थीम पर मनाने का फैसला किया गया। इसके जरिए सरकारों, उद्योगों, विभिन्न समुदायों और आम जनता से मिलकर प्लास्टिक से निपटने का अनुरोध किया जा रहा है जिससे विकल्प तलाश कर प्लास्टिक उत्पादन में कमी लाई जा सके। भारत इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का ग्लोबल होस्ट भी है।
प्लास्टिक के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि हर साल दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग्स + का इस्तेमाल होता है। बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण इसका निपटारा कर पाना गंभीर चुनौती है। दरअसल, प्लास्टिक न तो नष्ट होता है और न ही सड़ता है। आपको जानकर शायद हैरानी हो कि प्लास्टिक 500 से 700 साल बाद नष्ट होना शुरू होता है और पूरी तरह से डिग्रेड होने में उसे 1000 साल लग जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ जितना भी प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है वह अब तक नष्ट नहीं हुआ है।
प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटता है पर नष्ट नहीं होता है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। दुनियाभर में केवल 1 से 3% प्लास्टिक ही रीसाइकल हो पाता है। अक्सर लोग इसे जलाकर सोचते हैं कि उन्होंने प्लास्टिक को नष्ट कर दिया है जबकि प्लास्टिक को जलाना और भी खतरनाक है। प्लास्टिक के कचरे को जलाने से ऐसी गैसें निकलती हैं, जो फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकती हैं। पेट्रोलियम, नैचरल गैस और दूसरे केमिकल्स के इस्तेमाल से प्लास्टिक बैग्स बनाए जाते हैं। 1950 के दशक में अमेरिका और यूरोप में प्लास्टिक के उत्पादन की जानकारी मिलती है। सुपरमार्केट्स में पहली बार प्लास्टिक बैग्स का इस्तेमाल 1977 में शुरू हुआ था।
… तो समुद्र में मछलियों से ज्यादा होगा प्लास्टिक
वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि प्लास्टिक का विकल्प न खोजा गया तो अगले 30 वर्षों यानी करीब 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक भर जाएगा। हर साल करीब एक करोड़ टन प्लास्टिक समंदर में जमा हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हर मिनट कूड़े से भरे एक ट्रक के बराबर प्लास्टिक समुद्र के पानी में मिल रहा है। पिछले दशक में दुनियाभर में प्लास्टिक का इतना उत्पादन किया गया था, जितना पिछली पूरी शताब्दी में नहीं हुआ था। UN Environment के मुताबिक हम जो प्लास्टिक इस्तेमाल में लाते हैं उसका 50 फीसदी सिंगल-यूज या डिस्पोजेबल होता है। हर मिनट दुनिया में करीब 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं। दुनियाभर में जो भी कूड़ा-कचरा पैदा होता है, उसका 10 से 20 फीसदी हिस्सा प्लास्टिक का ही होता है।
समुद्री जीवों का ‘यमराज’
समुद्र में प्लास्टिक बढ़ने से समुद्री जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। यह खतरा कितना गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2008 में कैलिफॉर्निया में बीच पर एक व्हेल मृत पाई गई। उसके पेट में 22 किलो प्लास्टिक पाया गया, जो उसकी मौत की वजह बना। प्लास्टिक के कारण हर साल करीब एक लाख समुद्री जीव-जंतु मर रहे हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)