प्रेमचंद की रचनाओं में हृदय परिवर्तन ज्यादा है”– मुक्तेश्वरनाथ तिवारी

आसनसोल । काज़ी नज़रुल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्वाधान में 4 अगस्त को ‘वर्तमान समय और प्रेमचंद’ को केंद्र में रखकर प्रेमचंद जयंती का आयोजन किया गया था। इस सभा में मुख्य अथिति के तौर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. देवाशीष बंदोपाध्याय,कला संकाध्यक्ष प्रो. सजल कुमार भट्टचार्य, अध्यक्ष प्रो. मुक्तेश्वरनाथ तिवारी एवं बीज वक्ता के रूप में प्रो. विजय कुमार भारती ने अपने महत्वपूर्ण भाषण से प्रेमचंद के रचनाशीलता और उनके जीवन शैली को सभा में उपस्थित शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों के समक्ष उजागर किया। कार्यक्रम की शुरुआत कुलपति प्रो. देवाशीष बंदोपाध्याय के भाषण से हुई,कुलपति महोदय ने कहा-“प्रेमचंद हमारे मानव हृदय के सबसे बड़े चितेरे है। प्रेमचंद,रवींद्रनाथ,काज़ी नजरुल इस्लाम जैसे मनीषी साहित्यकारों ने मनुष्य की मनुष्यता को बचाने की बात की है।प्रेमचंद सूरज की तरह है और उनका साहित्य उसके प्रकाश की तरह है।”
विशिष्ट वक्ता प्रो. सजल कुमार भट्टचार्य ने इतिहास का अर्थ प्रस्तुत करते हुए प्रेमचंद के साहित्य पर कहा-“रवींद्रनाथ के साथ उनका संबंध जोड़ते हैं और साहित्य में प्रेमचंद की प्रासंगिकता पर बात करते है; साथ ही वर्तमान संदर्भ में प्रेमचंद की जरूरत को रेखांकित करते हैं। बीज वक्तव्य के रूप में प्रो.विजय कुमार भारती ने प्रेमचंद के भाषा सम्बन्धी पहलुओं पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा-“प्रेमचंद जनता की आम-फ़हम भाषा की वकालत करते है।त्रैमासिक, त्रिमासिक की जगह तिमाही क्यों न कहा जाय ?जो भाषा आम व्यक्ति को आसानी से समझ में आ जाये,उसे ही साहित्य की भाषा होनी चाहिए।अध्यक्ष मुक्तेश्वरनाथ तिवारी ने कहा-“प्रेमचंद लोक अर्थात सामान्य व्यक्ति को साहित्य के केंद्र में रखते हैं।वे इतने सहज सरल सामान्य थे कि एकबार लखनऊ स्टेशन पर उन्हें लेने जाने व्यक्ति तक उन्हें पहचान नहीं पाए क्योंकि उनकी वेशभूषा सामान्य व्यक्ति की थी। तिवारी जी ने आगे बढ़कर महादेवी वर्मा और प्रेमचंद का वह ऐतिहासिक संस्मरण भी सुनाया जिसमें फर्श गंदे हो जाने की वजह से महादेवी वर्मा की परिचारिका भक्तिन उन्हें घर में घुसने तक नहीं देती।उसे लगता है कोई जरूरत मन्द किसान महीयसी महादेवी वर्मा जी से मिलने आ गया है। इतना ही नहीं प्रेमचंद सबकी तरफ से लिखे।उस समय के भारत के हर एक नागरिक की कहानी प्रेमचंद ने लिख दी है। कभी इतिहास मिट जाए तो प्रेमचंद के साहित्य से उसे फिर से प्राप्त किया जा सकता है।”धन्यवाद ज्ञापन विभाग की प्राध्यापिका डॉ.काजु कुमारी साव ने एव संचालन विभाग के संयोजक डॉ. बिजय कुमार साव ने किया। शोध छात्र-छात्राओं ने भी अपने विचार रखे।डॉ.एकता कुमारी एव डॉ. प्रतिमा प्रसाद ने भी प्रेमचंद को याद किया।

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