राज्यसभा में कुल 12 सदस्य राष्ट्रपति की तरफ से मनोनीत होते हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों की हस्तियां होती हैं
नयी दिल्ली : देश के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई राज्यसभा जाएंगे। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने रंजन गोगोई का नाम राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। यहां बता दें कि राज्यसभा में 12 सदस्य राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किए जाते हैं। ये सदस्य अलग-अलग क्षेत्रों की जानी मानी हस्तियां होती हैं। गोगोई से पहले मोहम्मद हिदायतुल्लाह और रंगनाथ मिश्रा भी चीफ जस्टिस के पद से रिटायर होने के बाद राज्यसभा के लिए मनोनीत हो चुके हैं। गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (तीन) के साथ पठित खंड (एक) के उपखंड (क) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए राष्ट्रपति, एक मनोनीत सदस्य की सेवानिवृत्ति के कारण हुई रिक्ति को भरने के लिए रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत करते हैं।’
न्यायमूर्ति गोगोई देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश रहे। उन्होंने देश के प्रधान न्यायाधीश का पद तीन अक्टूबर 2018 से 17 नंवबर 2019 तक संभाला। 18 नवंबर, 1954 को असम में जन्मे रंजन गोगोई ने डिब्रूगढ़ के डॉन बोस्को स्कूल और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढ़ाई की। उनके पिता केशव चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री थे।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने 1978 में वकालत के लिए पंजीकरण कराया था। 28 फरवरी, 2001 को रंजन गोगोई को गुवाहाटी हाईकोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। न्यायमूर्ति गोगोई 23 अप्रैल, 2012 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने थे और बाद में मुख्य न्यायाधीश भी बने।
रंजन गोगोई 17 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद से रिटायर हुए थे। वह पूर्वोत्तर से सर्वोच्च न्यायिक पद पर पहुंचने वाले इकलौते शख्स हैं। रिटायर होने से पहले इन्हीं की अध्यक्षता में बनी बेंच ने अयोध्या के विवादित स्थल पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
बतौर सीजेआई सुनाए थे कई अहम फैसले
जस्टिस और चीफ जस्टिस के तौर पर न्यायमूर्ति गोगोई का कार्यकाल कुछ विवादों और व्यक्तिगत आरोपों से अछूता नहीं रहा, लेकिन यह कभी भी उनके न्यायिक कार्य में आड़े नहीं आया और इसकी झलक बीते कुछ दिनों में देखने को मिली जब उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने कुछ ऐतिहासिक फैसले दिए। अयोध्या के अलावा उन्होंने जिन प्रमुख मुद्दों पर फैसले दिए हैं, उनमें असम एनआरसी, राफेल, सीजेआई ऑफिस आरटीआई के दायरे में आदि शामिल हैं।
विवादों में भी रहा था कार्यकाल
गोगोई अपने साढ़े 13 महीनों के कार्यकाल के दौरान कई विवादों में भी रहे और उन पर यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप भी लगे लेकिन उन्होंने उन्हें कभी भी अपने काम पर उसे हावी नहीं होने दिया। वह बाद में आरोपों से मुक्त भी हुए। इसके अलावा, वह उन 4 जजों में भी शामिल थे जिन्होंने रोस्टर विवाद को लेकर ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। उनकी अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 9 नवंबर को अयोध्या भूमि विवाद में फैसला सुनाकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया। यह मामला 1950 में सुप्रीम कोर्ट के अस्तित्व में आने के दशकों पहले से चला आ रहा था।