पूर्वजों को दिया शब्दों का तर्पण 

कोलकाता । अर्चना संस्था की ओर से आयोजित गोष्ठी में अर्चना के सदस्यों ने संस्था के संस्थापक पूर्वज सदस्यों साहित्य महोपाध्याय नथमल केडिया, महाकवि गुलाब खंडेलवाल, साहित्यकार डॉ वासुदेव पोद्दार, कवि श्यामसुंदर बगड़िया और दिवंगत रचनाकारों को शब्दों के द्वारा तर्पण अर्चना दी जो संभवतः पहला प्रयास किया गया। निशा कोठारी ने ये जीवन क्षण भंगुर है क्यूँ इसमे खोये हो *सासों की ये माला कब टूटे, क्यूँ सोये हो और उषा श्राफ ने आनंद लोके मंगला लोके विराजे सत्य सुंदरम सुना कर जीवन के दर्शन को रेखांकित किया।
संजु कोठारी ने राजस्थानी लोक गीत बिणजारी ए हँस हंँस बोल मीठी मीठी बोल बात्यां थारी रह ज्यासी।सुना कर सबका मन मोह लिया। सुशीला चनानी ने स्वरचित भजन जीवन तेरा बीता जाये रे! सांसों का घट हर पल हर छिन, रीता जाये रे !,सुनाया। और इंदू चांडक ने मुझसे रीझे न वो भक्त वत्सल प्रभो तो मेरी साधना में कमी रह गई कैसे कह दूँ है उनकी कृपा में कमी खुद मेरी अर्चना में कमी रह गई ईश्वर को समर्पित भावपूर्ण गीत सुनाया, शशि कंकानी ने ज़िन्दगी, कुछ पल रुको संग मेरे गायें कोई प्रीत का गाना जिसे याद रखें जमाना फिर चाहो तो चली जाना सुना कर जिंदगी को रोकने का आग्रह किया और चंद्रकांता सुराणा ने लोकप्रिय गीत इतनी शक्ति हमें देना दाता सुनाया। वहीं उनकी नानी सा कवयित्री मृदुला कोठारी ने हमें प्रेम का सुधा रस गुरूवर जरा पिला दो जीवन पड़ा है मूर्छित हमें चाक पर चढ़ा दो सुनाकर गुरु की वंदना की और कार्यक्रम का संचालन भी किया ।बहे गुरु ज्ञान रसधार मनवा गट गट पी चल जनम मरण तू सुधार मनवा गट गट पी संगीता चौधरी ने गीत की प्रस्तुति दी। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि शब्दों का तर्पण करना सृजनात्मकता का आह्वान है और अपना गीत वसंत आया सबने देखा पतझड़ रोया किसने देखा सुनाया। भारत में मृत्यु को भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पितर पक्ष में सभी पितरों की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।

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