पुस्तक मेला – किताबों की खुमारी में घुली संस्कृति की मिठास

पुस्तक मेला बंगाल की संस्कृति ही नहीं एक वैश्विक उत्सव है। लाखों पुस्तक प्रेमी मिलन मेला प्राँगण में उमड़ पड़ते हैं। जब उत्सव होता है तो उसका विस्तार भी होता है, कुछ ऐसा ही विस्तार पुस्तक मेले का भी हुआ है। अब यहाँ सिर्फ साहित्य ही नहीं बल्कि कला, संस्कृति और बाजार पूरी शिद्दत के साथ मौजूद है। नलेन गुड़ का संदेश है तो टैटू भी है और टी शर्ट पर रंग बिखेरती महिलाएं भी हैं। पुस्तक मेले में घूमते हुए एहसास होता है कि कोलकाता को इसकी कितनी सख्त जरूरत है, वैसे ही या कुछ ऑक्सीजन की तरह।

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पुस्तक मेले में जगह – जगह लगे कियोस्क आपको एहसास दिलाएंगे कि यह शहर अपनी जडें अब भी जूट की संस्कृति में तलाश रहा है। नेशनल जूट बोर्ड में जिस तरह से जूट के थैले और गहने तक बिक रहे हैं, उसे देखकर तो यही एहसास होता है। यहाँ मौजूद दक्षिणापन्न के गौतम दत्त जब पूरे आत्मविश्वास के साथ उम्मीद जताते हैं कि इस साल बिक्री 15 लाख रुपए का आँकड़ा पार कर लेगी तो अच्छा ही लगता है।

IMG_20160130_155045नलेन चंद्र दास एंड सन्स के स्टॉल पर चॉकलेट संदेश, मौसमी और जलभरा जैसी मिठाइयों के लिए लगी भीड़ एहसास दिलाती है कि जहाँ मीठा है, बँगाल वहीं है। अब आते हैं हिन्दी पुस्तकों की तलाश में गलियारे में, इस बार उदासी नहीं है, एक साथ सारे स्टॉल कतार में और इनमें हिन्दी के पाठक, बुद्धिजीवी और लेखकों का जमावड़ा मानो मेला शब्द की साथर्कता साबित कर देता है। फेसबुक लेखन, इस बार एक नयी विधा दिखी और दिखीं इश्क पर लिखीं कई सारी किताबें। हमेशा की तरह आनंद प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन, राजकमल प्रकाशन, पूजा बुक हाउस से लेकर साहित्य अकादमी के स्टॉल। अभी और पाठक उमड़ेंगे, व्यवस्था भी अच्छी है, कहते हैं आनंद प्रकाशन के दिनेश त्रिपाठी, फिर भी एक कसक रह जाती है, कभी जन्म लेगी हिन्दी प्रदेश में किताबों से इश्क की संस्कृति, यह भी उम्मीद है, शायद पूरी हो ही जाए, पुस्तक मेला तो साँस लेने की जगह है, भागती जिंदगी में खुद को तलाशने की कोशिश।

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