पुरुषों की आर्थिक बराबरी करने में महिलाओं को लगेंगे 257 साल

72 देशों में औरतें नहीं खोल सकतीं बैंक खाता
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट बताती है कि आज भी दुनियाभर में जेंडर इक्वालिटी यानी लैंगिक समानता 68.6% ही है। बीते 50 सालों में 85 देश ऐसे हैं जहां की राष्ट्रप्रमुख कभी महिला बन ही नहीं सकी। रिपोर्ट के मुताबिक, आर्थिक सहयोग के मामले में लैंगिक अंतर को खत्म करने में अभी भी 257 साल लग जाएंगे। 2020 ग्लोबल जेंडर गेप इंडेक्स में भारत 66 प्रतिशत के साथ रैंकिंग में 112 नंबर पर है। जबकि साउथ एशिया में देश बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका के बाद चौथे नंबर पर है।
नेतृत्व
राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की हालत बदतर है। रिपोर्ट बताती है कि, 35 हजार 127 पॉलीटिकल सीट्स में से महिलाओं के पास महज 25% है। 153 में 45 देश ऐसे हैं जहां महिलाओं के पास उपलब्ध सीट्स का केवल 20% है। दो देश वनौटू और पपुआ न्यू गिनी में एक भी महिला राजनेता नहीं है। हमारे देश में ही लोकसभा में महिलाओं की संख्या 14% और राज्यसभा में 10% के आसपास ही है। रिपोर्ट के मुताबिक पॉलिटिक्स के मामले में हर साल 0.75% की दर से सुधार हो रहा है। अगर इसी दर से सुधार होता रहा तो लैंगिक भेद की खाई पाटने में 95 साल लग जाएंगे।

आर्थिक-अवसर
आर्थिक सहयोग और अवसरों के मामले में फिलहाल 42% का फर्क अब भी है। रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 64 की उम्र वाले औसतन 78% पुरुष लेबर फोर्स में हैं। महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 55% है। दुनियाभर में महिलाओं के नेतृत्व में सिर्फ 18.2% कंपनियां ही चल रहीं हैं। भारत में कंपनियों के बोर्ड में 13.8% महिलाएं शामिल हैं। चीन में यह आंकड़ा 9.7 फीसदी है। रिपोर्ट बताती है कि, ऐसे कई देश हैं जहां महिलाओं को संपत्ति खरीदने या नई कंपनी शुरू करने के लिए क्रेडिट, भूमि और अन्य आर्थिक लाभों का फायदा नहीं मिल पाता है। उदाहरण के तौर पर 153 में से 72 देश ऐसे हैं जहां पर विशेष सामाजिक समूह की महिलाओं के पास बैंक अकाउंट खोलने का भी हक नहीं है। वहीं, 25 देशों में औरतों को विरासत की प्रॉपर्टी के संबंध में पूरे अधिकार नहीं है।
शिक्षा
रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा और पढ़ाई के मामले में 4% का फर्क अब भी है। 35 देशों में शिक्षा के मामले में 100% समानता आ चुकी है। दुनिया में 15-24 साल की उम्र के 90.4% लड़कियां और 92.9% लड़के साक्षर हैं। रिपोर्ट बताती है कि, मौजूदा स्थिति के बाद भी करीब 10% लड़के और लड़कियां शिक्षा के मामले में पिछड़ रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि अगर जरूरी संस्थागत और सांस्कृतिक बदलाव होते हैं तो भी इस लैंगिक भेद को खत्म करने में कम से कम 12 साल का समय लगेगा।
स्वास्थ्य
दुनिया ने स्वास्थ्य के मामले में 95.7 फीसदी महिलाओं और पुरुषों के बीच फर्क खत्म करने में सफलता हासिल कर ली है। 71 देशों ने जहां कम से कम 97 प्रतिशत गैप खत्म किया है, वहीं 42 देश भेद को पूरी तरह से खत्म करने के करीब हैं। भारत में हेल्थ और सर्वाइवल का आंकड़ा 94.4 प्रतिशत है।
सम्पत्ति
आर्थिक मोर्चे पर दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। 2010 में अरबपति महिलाओं की संख्या 91 थी, जो 2019 में बढ़कर 244 हो गई। इनमें अपने दम पर अमीर बनीं महिलाओं का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा। फोर्ब्स की वर्ल्ड रिचेस्ट रैंकिंग के अनुसार भारत में सबसे अमीर महिला जिंदल ग्रुप की सावित्री जिंदल हैं। सावित्री ग्लोबल रैंकिंग में 290 नंबर पर हैं। दुनिया की सबसे अमीर महिला फ्रैंकोइस बैटनकोर्ट मेयर्स हैं।
शोषण
वर्ल्ड बैंक की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 35% महिलाएं शारीरिक और यौन शोषण का शिकार हुईं हैं। 38% महिलाओं की हत्या उनके ही पार्टनर ने कर दी। एनसीआरबी के मुताबिक, 2018 के अंत तक देश की अदालतों में दुष्कर्म के 1 लाख 38 हजार 342 मामले पेंडिंग थे। इनमें से 17 हजार 313 मामलों का ही ट्रायल पूरा हो सका, जबकि सिर्फ 4 हजार 708 मामलों में ही सजा सुनाई गई। 2018 में सजा देने की दर यानी कन्विक्शन रेट सिर्फ 27.2% रहा जो 2017 की तुलना में 5% कम है। 2017 में कन्विक्शन रेट 32.2% था।
विश्व में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं-पुरुषों के नौकरियों के आँकड़े
क्षेत्र पुरुष महिला
क्लाउड कम्प्यूटिंग 88% 12%
इंजीनियरिंग 85% 15%
डेटा और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस 74% 26%
प्रोडक्ट डेवलपमेंट 65% 35%
सेल्स 63% 37%
मार्केटिंग 60% 40%
कंटेंट प्रोडक्शन 43% 57%
अन्य 61% 39%
भारत में महिलाओं की स्थिति

रिपोर्ट के मुताबिक स्टडी में शामिल किए गए 153 देशों में भारत एकमात्र देश है जहां, महिलाओं की स्थिति राजनीतिक से ज्यादा आर्थिक तौर पर खराब है। भारत में 82 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले केवल एक चौथाई महिलाएं लेबर मार्केट में सक्रिय हैं। महिलाओं की अनुमानित आय पुरुष की कमाई का महज पांचवा हिस्सा है। स्वास्थ्य और जीवन रक्षा में भारत की रैंक 150वीं है। प्रति 100 लड़कों पर 91 लड़कियां जन्म लेती हैं। भारत में 82 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले केवल दो-तिहाई महिलाएं पढ़ी-लिखीं हैं। राजनीति में महिलाओं का दखल बेहद कम है। संसद में जहां महिलाओं की 14.4% हिस्सेदारी है, वहीं कैबिनेट में यह आंकड़ा 23% है।
(साभार – दैनिक भास्कर)

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