पिंजरा

प्रो. प्रेम शर्मा

लघु नाटिका (एकांकी)

पात्र परिचय_
मेंढक ,मेंढकी।
गिलहरी।
बिल्ली मौसी।
डॉक्टर नेवला।
कोविड के समय जानवरों का संवाद–

“क्या बात है मेंढक भैया! रोज तो बहुत फुदकते थे ,आज बड़े शांत और उदास हो।”
पेड़ की डाल पर बैठे बैठे ही गिलहरी ने मेंढकसे पूछा।
मेंढक_ “हूॅं”।” मेंढकी कोरोना
से चल बसी।”
गिलहरी_”ओ–हो—”
मेंढक_”डॉक्टर नेवला जी ₹200000 मांग रहे हैं मेढकी का शव ले जाने से पहले।”
गिलहरी_”दवाइयां बहुत महॅंगी होंगी।”
मेंढक_”बिल्कुल नहीं कोई दवाई नहीं दी। धूप में बिठाया और गर्म पानी पिलाया”
गिलहरी_”डॉक्टर नेवला जी ईतना पैसा फिर क्यों मांग रहे हैं?”
मेंढक_”मजबूरों का फायदा कौन नहीं उठाता! मेंढकी के शव को देखने भी नहीं दे रहे ना जाने कौन से पिंजरे में कैद किया है शव को”
गिलहरी_”अब क्या करोगे?”
मेढक_”बिल्ली मौसी से सहायता मांगी है। उनका एन.जी.ओ है ना!
वह देखो, आ गई।
बिल्ली मौसी_”मेंढक बेटा! निराश मत हो। डॉक्टर नेवला जी को यह पैसा दे दो और मेंढकी का अंतिम संस्कार करो।”
मेंढक_””यह तो बहुत ज्यादा पैसा लगता है।”
बिल्ली मौसी_”रख लो काम आएगा।”
मेंढक_(कुछ सोच कर) “अच्छा–
हम इस पैसे से एक अस्पताल खोल सकते हैं जहाॅं कोरोना रोगियों की मुफ्त चिकित्सा हो।
“बहुत अच्छा विचार –बहुत अच्छा विचार–“एक स्वर में बिल्ली मौसी और गिलहरी ने समर्थन किया।”
मेंढक(गंभीर स्वर में)”कम से कम डॉक्टर नेवला जी जैसे डॉक्टरों के बनाए पिंजरे में मजबूरन कैद होने से तो रोगी बच पाएंगे”

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