प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है, जो उस देश के संप्रभुता होने का प्रतीक होता है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, जो तीन रंगों- केसरिया, सफेद और हरे रंग से बना है और इसके केंद्र में नीले रंग से बना अशोक चक्र है। तिरंगे के ऊपर की पट्टी जिसका रंग केसरिया है वह शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच का सफेद रंग शांति और सत्य का प्रतीक है। नीचे की हरी पट्टी भारत के खुशहाली हरियाली का प्रतीक है।
झंडे में मौजूद चक्र का अर्थ जीवन कि निरंतर गतिशीलता का परिचायक है। हमारे तिरंगे में खास बात यह है की इसका हरेक रंग अर्थपूर्ण है और इसके साथ ही अपने आप में आजादी के लड़ाई का इतिहास समेटे हुए है। हर देश के लिए उसका राष्ट्रीय ध्वज सर्वोपरि होता है और हमारा तिरंगा भी लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आत्मसम्मान का प्रतीक रहा है। यहां तक की हमारे तिरंगे के डिजाइन की कहानी ऐसे ही एक आजादी के मतवाले के आत्मसम्मान से जुड़ी हुई है।
कहानी कुछ इस तरह है कि तिरंगे को बनाने वाले पिंगली वेंकैया ने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सेना के लिए काम करते हुए एक घटना ने वेंकैया के मन पर छाप छोड़ी। सैनिकों को ब्रिटिश राष्ट्रीय ध्वज यूनियन जैक को सलामी देने के लिए कहा गया। हालांकि पिंगली ने उस समय झंडे को सलामी दी, लेकिन उनकी देशभक्ति की भावनाएं गंभीर रूप से आहत हुईं और उन्होंने फैसला किया कि कुछ करना होगा। इस घटना और भारत की आजादी के लिए गांधी की लड़ाई ने वेंकैया को एक स्वतंत्रता सेनानी में बदल दिया। वेंकैया ने ही भारत का राष्ट्रीय ध्वज बनाया था। बलिदान, समृद्धि और शांति के प्रतीक इस तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा दिलाने के लिए वेंकैया ने लंबी लड़ाई लड़ी थी। तो आइए जानते है देश को तिरंगे देने वाले पिंगली वेंकैया के बारे में जिनका जीवन देश को समर्पित था।
पिंगली वेंकैया का जीवन
पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के भाटलापेनुमरु गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम हनुमंतरायडु और माता का नाम वेंकटरतनमा था। पिंगली वेंकैया परिवार एक सम्मानित तेलुगु ब्राह्मण परिवार था। उन्होंने अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई तत्कालीन मद्रास (अब चेन्नई) से पूरी की और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। एक छात्र के रूप में उन्हें कई विधाओं का ज्ञान था। पिंगली वेंकैया को भूविज्ञान, शिक्षा, कृषि और भाषाओं में विशेष रुचि थी।
एंग्लो बोअर युद्ध के समय दक्षिण अफ्रीका में अपने प्रवास के दौरान, वेंकैया ने ब्रिटिश सेना के सिपाही के रूप में कार्य किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से पहली बार हुई और उनके साथ उनका ऐसा रिश्ता बना जो 50 साल से भी ज्यादा समय तक चला। वेंकैया गांधी के प्रति बहुत वफादार और अत्यधिक प्रतिबद्ध थे और गांधीवादी सिद्धांतों में दृढ़ विश्वास रखते थे।
वेंकैया ने अपने अंतिम दिन घोर गरीबी में बिताए और 4 जुलाई 1963 को उनकी मृत्यु हो गई। पिंगली वेंकैया के वसीयत के मुताबिक, उनकी आखिरी इच्छा थी कि उनके द्वारा डिजाइन किए गए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में उनको लपेटा जाए।
हमारे राष्ट्रीय ध्वज की कहानी
पिंगली वेंकैया के मन पर तब गहरा असर हुआ जब वह दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सेना में सेवा दे रहे थे। सैनिकों को ब्रिटिश राष्ट्रीय ध्वज यूनियन जैक को सलामी देने के लिए कहा गया था। हालांकि पिंगली ने उस समय झंडे को सलामी दी, लेकिन उनकी देशभक्ति की भावनाएं गंभीर रूप से आहत हुईं और उन्होंने फैसला किया कि कुछ करना होगा। इस घटना और भारत की आजादी के लिए गांधी की लड़ाई ने वेंकैया को एक स्वतंत्रता सेनानी में बदल दिया।
वह झंडों को लेकर उत्साहित थे और भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना समय ऐसे झंडे डिजाइन करने में लगाया जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सके और स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया जा सके। यह देश के लिए राष्ट्रीय ध्वज होगा।
पिंगली वेंकैया ने कई सालों तक तिरंगों को डिजाइन करने में समय लगाया। तब जाकर 1916 में उन्होंने झंडों पर एक पुस्तिका प्रकाशित की। पुस्तिका का शीर्षक था ‘भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज’। इसमें झंडों के चौबीस डिज़ाइन थे। बाद में, जब वे विजयवाड़ा में गांधीजी से मिले, तो उन्होंने वह पुस्तिका दिखाई। डिज़ाइन देखकर गांधी प्रसन्न हुए और उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता को स्वीकार किया, इसलिए उन्होंने 1921 में आयोजित राष्ट्रीय कांग्रेस बैठक में वेंकैया से एक नया ध्वज डिज़ाइन करने के लिए कहा।
पिंगली वेंकैया द्वारा सबसे पहले डिजाइन किए गए झंडे में केवल केसरिया और हरा रंग था। हालांकि, बाद में, इसे फिर से डिजाइन किया गया और केंद्र में चरखा (धर्म चक्र) के साथ तीसरा रंग, सफेद, जोड़ा गया। आखिरकार 1931 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर इस ध्वज को हमारे राष्ट्र के ध्वज के रूप में अपनाया।
पिंगली वेंकैया ब्रिटिश इंडियन आर्मी के थे सिपाही
पिंगली वेंकैया जापानी भाषा के काफी जानकार व्यक्ति थे। वह इस परिपक्वता से जापानी बोलते थे कि लोग उन्हें जापान वेंकैया के नाम से भी पुकारते थे।
हलांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि पिंगली एक जियोलॉजिस्ट थे और उन्होंने आंध्र प्रदेश नेशनल कॉलेज में लेक्चरर के तौर पर भी काम किया था।
अपनी युवा आयु में पिंगली ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सिपाही के तौर पर दक्षिण अफ्रीका में भी काम किया था। यहीं पिंगली गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित हुए।
(साभार – दैनिक जागरण)