परिचित हूँ मैं

नीलम सिंह

परिचित हूँ मैं,
स्वयं की क्षमता से,
परिचित हूँ मैं,
स्वयं की शक्ति से,

मुझे फर्क नहीं पड़ता तुम्हारे प्रोत्साहन का,
जब तुम कहते हो ,
मैं अग्नि हूँ,
मैं दुर्गा हूँ,
कि,मैं शक्ति स्वरूपा हूँ,
कि ,मैं जन्मदात्री हूँ,
ऐसे अनेको अलंकरण,
जिसे तुम स्वयं तार-तार कर देते हो,
अवसर पाकर,
कभी चहारदीवारी में,
तो कभी सुनसान एकांत में।

एहसास है मुझे,
कि ,मैं अभिन्न अंग हूँ
इस सृष्टि की,
कि मेरे बिना अधूरे हो तुम,
जैसे ,मुझे अधूरा समझते हो अपने बिना।

एहसानों के बोझ से मत दबाओ मुझे ,
यह नीला अम्बर मेरा भी उतना है,
जितना तुम्हारा है,
एक टुकडा़ मेरा ही मुझे देकर,
एहसान का मुलम्मा मत चढा़ओ तुम।

परिचित हूँ मैं……

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