भोपाल : भील जनजाति की संस्कृति को दीवारों और कैनवास पर उकरने वाली एमपी की भूरी बाईको पद्मश्री पुरस्कार मिला है। राष्ट्रपति ने नई दिल्ली में उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया है। इसके बाद भूरी बाई काफी खुश नजर आई हैं। भुरी बाई का बचपन काफी गरीबी में गुजरा है। वह भोपाल स्थित भारत भवन में कभी मजदूरी करती थीं। साथ ही साथ पेटिंग भी करती थीं।
पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद भूरी बाई ने कहा कि ये पुरस्कार मुझे आदिवासी भील पेंटिंग करने के लिए मिला है, मैंने मिट्टी से पेंटिंग की शुरुआत की थी। मैं भोपाल के भारत भवन में मजदूरी करती थी और उसके साथ पेंटिंग भी बनाती थी। मेरी पेंटिंग आज देश विदेश में जाती है। मैं बहुत खुश हूँ।
ठीक से हिंदी नहीं बोल पाती भूरी बाई
गौरतलब है कि पिछड़े इलाके से आने वाली भूरी बाई आज भी सही से हिंदी नहीं बोल पाती हैं। लेकिन इस पुरस्कार के मिलने के बाद वह अभिभूत हैं। भूरी बाई अभी जनजातीय संग्रहालय भोपाल में कलाकार के पद पर पदस्थ हैं।
गरीबी में बीता बचपन
भूरी बाई बरिया का जीवन गरीबी में बीता है। अवॉर्ड की घोषणा होने के बाद उन्होंने कहा था कि मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी चित्रकारी का शौक ही मेरी पहचान बन जाएगी। उन्होंने कहा था कि मेरे लिए बाहर जाना तो दूर की बात है, मुझे तो ठीक से हिंदी भी बोलनी नहीं आती है। मेरा बचपन गरीबी में बीता है, लेकिन अब खुशी है कि मैं अपने बच्चों के लिए कुछ पाई हूं।
अमेरिका तक पेटिंग की माँग
भूरी बाई जनजातीय संग्रहालय के बगल में स्थित भारत भवन में कभी मजदूरी करती थीं। वहीं, अब प्रदेश की मशहूर चित्रकार बन गयी हैं। उनकी बनाई पेंटिंग्स मध्यप्रदेश संग्रहालय से लेकर अमेरिका तक अपनी छाप छोड़ चुकी है। कला के क्षेत्र में एमपी का सर्वोच्च सम्मान उनके नाम दर्ज है। आज की तारीख में वह अलग-अलग जिलों में जाकर भील आर्ट और पिथोरा आर्ट पर कार्यशाला करवाती हैं।