97 साल तक गुमनाम रही ‘वीरगाथा’
लंदन : पहले विश्व युद्ध में लड़ने वाले पंजाब के 320,000 सैनिकों के रेकॉर्ड 97 सालों तक एक तहखाने में गुमनामी के अंधेरे में खोए रहे। अब ब्रिटेन के इतिहासकारों ने युद्ध में भारतीय सैनिकों के योगदान को लेकर इनका खुलासा किया है। ये फाइलें पाकिस्तान के लाहौर म्यूजियम की गहराइयों में मिली हैं। इन्हें अब डिजिटल रूप में बदलकर Armistice Day के लिए एक वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। अभी तक ब्रिटिश और आयरिश सैनिकों के वंशजों और इतिहासकारों के पास सर्विस रेकॉर्ड के सार्वजनिक डेटाबेस मौजूद थे। लेकिन भारतीय सैनिकों के परिवारों के पास ऐसी कोई सुविधा मौजूद नहीं थी। पंजाबी मूल के कुछ ब्रिटिश नागरिकों को डेटाबेस में अपने पूर्वजों की खोज के लिए पहले ही आमंत्रित किया जा चुका है। परिवारों ने पाया कि उनके गांव के सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस, मध्य पूर्व, गैलीपोली, अदन और पूर्वी अफ्रीका के साथ-साथ ब्रिटिश इंडिया के अन्य हिस्सों के लिए अपनी सेवा दी थी।
युद्ध में शामिल हुए ब्रिटिश सिख मंत्री के परदादा
पंजाब 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच दो हिस्सों में विभाजित हो गया था। ब्रिटिश मंत्री तनमनजीत ढेसी ने फाइलों से सबूतों को उजागर करते हुए बताया कि उनके परदादा ने इराक में सेवा की थी। इस कार्रवाई में वह घायल हो गए थे और अपना एक पैर खो दिया था। यह आशा की जाती है कि ये रेकॉर्ड भारतीय सैनिकों के योगदान के बारे में मिथकों को दूर करने में मदद करेंगे।
सैनिकों की भर्ती का ‘प्रमुख मैदान’ था पंजाब
यूके पंजाब हेरिटेज एसोसिएशन के अध्यक्ष अमनदीप मदरा ने फाइलों को डिजिटाइज़ करने के लिए ग्रीनविच विश्वविद्यालय के साथ काम किया है। उन्होंने बताया कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना की भर्ती के लिए पंजाब प्रमुख ‘भर्ती मैदान’ था। इसके बाद भी ज्यादातर लोगों का योगदान गुमनाम ही रहा। ज्यादातर मामलों में हम उनके नाम तक नहीं जानते हैं। सभी धर्मों के पंजाबी, जिनमें हिंदू, मुस्लिम और सिख शामिल थे, भारतीय सेना का लगभग एक तिहाई हिस्सा और साम्राज्य की संपूर्ण विदेशी सेना का करीब छठा हिस्सा थे।
(साभार – नवभारत टाइम्स)