नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार और यौन हिंसा पीड़ितों के नाम और पहचान उजागर नहीं करने का निर्देश देते हुए कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे समाज में बलात्कार पीड़ितों के साथ ‘अछूत’ जैसा व्यवहार किया जाता है।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिया कि बलात्कार और यौन हिंसा पीड़ितों की पहचान किसी भी रूप में उजागर नहीं की जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों, ऐसे मामले भी जिनमें आरोपी नाबालिग हों, की प्राथमिकी सार्वजनिक नहीं करे।
इस मामले में पिछले दिनों सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत से कहा गया था कि महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में निष्पक्ष सुनवाई के लिये प्रेस की आजादी और पीड़ित के अधिकार के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने न्यायालय में दलील दी थी कि अदालत के विचाराधीन मामलों में मीडिया ‘समानान्तर सुनवाई’ कर रहा होता है और इसलिए शीर्ष अदालत को महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों की रिपोर्टिंग के लिये दिशानिर्देश निर्धारित करने चाहिए।
जयसिंह का यह भी दावा था कि सक्षम अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने से पहले ही पुलिस मीडिया को सूचनाएं लीक करती है जो न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप के समान है। उन्होंने कठुआ सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले का जिक्र करते हुये दावा किया था कि इसमें अदालत में आरोप पत्र दाखिल होने से पहले ही मीडिया ने कुछ आरोपियों के निर्दोष होने का फैसला भी सुना दिया था।
जयसिंह ने भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए (यौन अपराध पीड़ित की पहचान उजागर करने से संबंधित) और पॉक्सो कानून की धारा 23 की व्याख्या करने का न्यायालय से अनुरोध किया था। निर्भया कांड के बाद देश में महिलाओं की सुरक्षा की दिशा में पहल के समर्थन में दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठा था।