निर्भया से लेकर बिलकिस….सजा से जुड़े सवाल और बँधी उम्मीद

सुषमा त्रिपाठी

16 दिसम्बर 2012, भारत के इतिहास का वह काला दिन जिसे हम कभी नहीं भूल सकेंगे। 17 दिसम्बर की हताशा भरी वह भयावह सुबह और इसके बाद एक आग….जो ऐसी फैली कि इस देश में कानून बदला मगर बलात्कार की घटनाएं नहीं रुकीं। दरिंदगी बदस्तूर जारी है और तब तक जारी रहेगी जब तक हम नहीं बदलते, हमारे घरों में परवरिश का तरीका नहीं बदलता। इस घटना के बाद 5 साल बीत गए मगर हमारे राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक पुरोधा औरतों को उनकी औकात बताने का एक भी मौका नहीं छोड़ते। पिछले साल 16 दिसम्बर को एक टीवी चैनल पर निर्भया की बरसी पर आयोजित एक कवरेज देख रही थी और कैमरा वह तमाम खाली जगहें दिखा रहा था जहाँ से उम्मीद की रोशनी निकली मगर बीच रास्ते में खो गयी। हमारी याददाश्त बहुत कमजोर है…..हमें बलात्कार और तेजाब से जले चेहरों के बीच रहने की आदत हो गयी है, जलती हुई औरतें अच्छी लगने लगी हैं और हम सभ्य होते जा रहे हैं। जब निर्भया कांड के आरोपी पवन गुप्ता की बहन अपने भाई की दरिंदगी को भुलाकर उसे एक मौका देने की बात कहती है और जब वह यह कहती है कि लड़के हमेशा गलत नहीं होती….लड़की हँसी तो फँसी तो लगता है कि लड़कियों को समाज की थोपी हुई सोच से निकालना कितना मुश्किल मगर जरूरी काम है। जब लेज्ली उडविन की इंडियाज डॉटर में मुकेश सिंह अच्छी लड़कियों की परिभाषा तय करता है और यह कहता है कि निर्भया को विरोध नहीं कर बलात्कार होने देना चाहिए था और अब बलात्कारी लड़कियों को मार ही डालेंगे तो उस सड़ांध का एहसास होता है और उस पर भी हैरत होती है जब ब्रिटेन की यह महिला एक बलात्कारी को हीरो बनाने की कोशिश करती है। हैरत होती है जब ए.पी. सिंह सा कथित तौर पर शिक्षित (?????) वकील लड़कियों को फार्म हाउस में जलाने की बात करता है और एक बलात्कारी के मानवाधिकारों की बात करता है। जिस बाल अपराधी ने सबसे अधिक क्रूरता दिखायी, उसे उम्र के कारण छोड़ दिया जाना भी सवाल उठाता है, जब अपराध करते समय उम्र नहीं देखी तो सजा के समय उम्र को बहाना क्यों बनाया जाना चाहिए? जो भी हो, निर्भया कांड के अपराधियों की फाँसी से बहुत कुछ न भी बदले मगर एक संदेश जाएगा और इसकी बहुत जरुरत है। अब ऐसे ही एक अन्य मामले में अपराधियों को उम्रकैद सुनायी गयी। बिलकिस बानो केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 12 आरोपियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। 12 आरोपियों को ट्रायल कोर्ट की ओर से उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की थी।

कोर्ट ने इस मामले में 5 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया। बता दें कि गोधरा दंगों के बाद बिलकिस बानो पर हमला किया गया था। हमले के दौरान अहमदाबाद के रंधिकपुर में रहनेवाली बिलकिस बानो के परिवार में 8 लोगों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस बानो उस समय मात्र 19 साल की थी, और 5 माह की गर्भवती थी। उनके साथ गैंगरेप किया गया था।
बिलकिस के साथ जब 2002 में बलात्कार हुआ तो उस समय वो गर्भवती थीं। उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की भी बेहरमी से हत्या कर दी गई। आज बिलकिस के बच्चों में बड़ी बेटी हाजरा, दूसरी फातिमा और बेटा यासीन है। लेकीन उनकी सबसे छोटी बेटी उनके लिए खास है क्योंकि उसका नाम उन्होंने सालेहा रखा है, अपनी उस बेटी की याद में जिसकी हत्या उनकी नज़रों के सामने हुई थी। इस फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं मगर हमें याद ऱखना होगा कि ये फैसले अदालत के फैसले हैं। निर्भया कांड में भी फाँसी की सजा पर मुहर लगने में 2 साल गए और बिलकिस के सामने अब भी सर्वोच्च अदालत जाने का रास्ता खुला हुआ है। अच्छा होगा कि फिलहाल हम इस बात पर संतोष करें कि कम से कम फैसला हुआ मगर कोशिश करनी होगी कि इतने साल न लगें।

 

उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार और हत्या मामले के चार दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखते हुये कहा कि इस अपराध ने चारों ओर सदमे की सुनामी ला दी थी और यह बिरले में बिरलतम अपराध की श्रेणी में आता है जिसमें बहुत ही निर्दयीता और बर्बरता के साथ 23 वर्षीय छात्रा पर हमला किया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषियों ने पीड़ित की अस्मिता लूटने के इरादे से उसे सिर्फ मनोरंजन का साधन समझा और यही सच भी है कि इस देश में औरत अब भी उपभोग, मनोरंजन और परिवार चलाने की मशीन से अलग एक अदद इंसान अब भी नहीं समझी जा रही है।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खडपीठ ने दो अलग अलग लेकिन परस्पर सहमति व्यक्त करते हुये सर्वसम्मति के निर्णय में दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला बरकरार रखा जिसने चारों दोषियों को मौत की सजा देने के निचली अदालत के निर्णय की पुष्टि की थी। इस निर्णय के बाद अब मुकेश, पवन, विनय शर्मा आरै अक्षय कुमार सिंह को मौत की सजा दी जायेगी।

इस सनसनीखेज वारदात के छह अभियुक्तों में से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी जबकि छठा अभियुक्त किशोर था। उसे तीन साल तक सुधार गृह में रखने की सजा सुनायी गयी थी।

पीठ ने अपने फैसले में दोषियों के हाथों सामूहिक बलात्कार की शिकार हुयी इस छात्रा के साथ इस अपराध के बाद उसके गुप्तांग में लोहे की राड डालने, चलती बस से उसे और उसके पुरूष मित्र को फेंकने और फिर उन पर बस चढाने का प्रयास करने जैसे दिल दहलाने वाले अत्याचारों के विवरण का जिक्र किया है।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की तीन सदस्यीय खंडापीठ ने 27 मार्च को इस मामले में दोषियों की अपील पर सुनवाई पूरी की थी। इस मामले में न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति भानुमति ने अलग अलग परंतु सहमति के फैसले सुनाये।

न्यायालय ने कहा कि इस अपराध की किस्म और इसके तरीके ने सामाजिक भरोसे को नष्ट कर दिया और यह बिरले में विरलतम की श्रेणी में आता है जिसमें मौत की सजा दी जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ित ने संकेतों के सहारे मृत्यु से पूर्व अपना बयान दिया क्योंकि उसकी हालत बहुत ही खराब थी परंतु उसके इस बयान में तारतम्यता थी जो संदेह से परे सिद्ध हुयी। पीठ ने यह भी कहा कि पीडित और दोषियों की डीएनए प्रोफाइलिंग जैसे वैज्ञानिक साक्ष्य भी घटना स्थल पर उनके मौजूद होने के तथ्य को सिद्ध करते हैं।

पीठ ने कहा कि चारों दोषियों, राम सिंह और किशोर की आपराधिक साजिश साबित हो चुकी है। इस वारदात के बाद उन्होंने पीडित और उसके दोस्त को बस से बाहर फेंकने के बाद उनपर बस चढा कर सबूत नष्ट करने का प्रयास किया।।

न्यायालय ने यह भी कहा कि पीडित के साथ बस में यात्रा करने वाले उसके मित्र और अभियोजन के पहले गवाह की गवाही अकाट्य और भरोसेमंद रही। चारों दोषियों ने अपनी अपील में दिल्ली उच्च न्यायालय के 13 मार्च, 2014 के फैसले को चुनौती दी थी। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने चारों दोषियों को मौत की सजा सुनाने के निचली अदालत के निर्णय की पुष्टि की थी।

एक नजर निर्भया कांड के पूरे घटनाक्रम पर

16 दिसंबर, 2012: पैरामेडिकल छात्रा के साथ एक निजी बस में छह लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट की। इसके बाद उसे एवं उसके दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया। उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया।

17 दिसंबर: आरोपियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। 17 दिसंबर: पुलिस ने चार आरोपियों की पहचान की – बस चालक राम सिंह, उसका भाई मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता।

18 दिसंबर: राम सिंह और तीन अन्य गिरफ्तार।

20 दिसंबर: पीड़िता के दोस्त ने बयान दिया।

21 दिसंबर: मामले में आरोपी किशोर को दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल से पकड़ा गया। पीड़िता के दोस्त ने मुकेश नाम के एक दोषी की पहचान की। पुलिस ने छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को पकड़ने के लिए हरियाणा एवं बिहार में छापे मारे।

21-22 दिसंबर: ठाकुर को बिहार के औरंगाबाद से गिरफ्तार किया गया और दिल्ली लाया गया। पीड़िता ने अस्पताल में एसडीएम के सामने बयान दिया।

23 दिसंबर: विरोध प्रदर्शनकारियों ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया, सड़कों पर उतरे। विरोध प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए ड्यूटी पर तैनात दिल्ली पुलिस कांस्टेबल सुभाष तोमर को गंभीर रूप से घायल होने के बाद अस्पताल ले जाया गया।

25 दिसंबर: लड़की की हालत नाजुक। कांस्टेबल तोमर ने दम तोड़ा।

26 दिसंबर: दिल का दौरा पड़ने के बाद पीड़िता को सरकार ने एयर एंबुलेंस से सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल भेजा।

29 दिसंबर: पीड़िता ने देर रात दो बजकर 15 मिनट पर दम तोड़ा। पुलिस ने प्राथमिकी में हत्या का मामला जोड़ा।

दो जनवरी, 2013: तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने यौन अपराध मामले में त्वरित सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालत :एफटीसी: का उद्घाटन किया।

तीन जनवरी: पुलिस ने हत्या, सामूहिक बलात्कार, हत्या की कोशिश, अपहरण, अप्राकृतिक अपराध एवं डकैती सहित कई आरोपों को लेकर पांच वयस्क आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया।

पांच जनवरी: अदालत ने आरोपपत्र का संज्ञान किया।

सात जनवरी: अदालत ने बंद कमरे में कार्यवाही का आदेश दिया।

17 जनवरी: एफटीसी ने पांच वयस्क आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू की।

निर्भया कांड पर सुप्रीम कोर्ट की तल्‍ख टिप्पणी

1. जजों ने 2 बजकर 3 म‌िनट पर फैसला पढ़ना शुरु क‌िया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चारों आरोपियों ने निर्भया के साथ जिस तरह का बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया उससे ये साबित होता है कि अपने तरह का अनोखी घटना है।

2. यह मामला रेयरेस्ट आफ रेयर है। केस की मांग थी कि न्यायपालिका समाज के सामने एक मिसाल पेश करे।

3. निर्भया कांड में कोर्ट का फैसला आते ही अदालत कक्ष में तालियां बजीं।

4. अदालत ने कहा इस मामले में कोई रियायत नहीं दी जा सकती।

5. निर्भया कांड सदमे की सुनामी थी। जिस तरह से अपराध हुआ है वह एक अलग दुनिया की कहानी लगती है।

6.दोषियों ने हिंसा, सेक्स की भूख की वजह से अपराध किया।

7. वारदात को क्रूर और राक्षसी तरीके से अंजाम दिया गया।

8. उम्र, बच्चे, बूढ़े मां-बाप ये कारक राहत की कसौटी नहीं।

9. इस अपराध ने समाज की सामूहिक चेतना को हिला दिया।
10. पीडि़ता का मृत्यु पूर्व बयान संदेह से परे

अदालत ने विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि देश के विकास को मापने का सबसे अच्छा थर्मामीटर है कि हम महिलाओं के साथ कैसे पेश आते हैं।

तीन जजों की बेंच में से एक जज भानुमति का फैसला शेष दो जजों से अलग है। जस्ट‌िस भानुमत‌ि ज‌िनका फैसला अन्य जजों से अलग रहा उन्होंने कहा क‌ि हमारे यहां एजुकेशन स‌िस्टम ऐसा होना चाह‌िए ज‌िससे क‌ि बच्चे मह‌िलाओं के साथ कैसा व्यवहार करना है ये सीख सकें। जस्ट‌िस भानुमत‌ि ने स्वामी व‌िवेकानंद के एक कोट को रेफर करते हुए कहा क‌ि कैसे परंपराएं ज्ञान और श‌िक्षा के साथ म‌िलकर समाज में मह‌‌िलाओं के न्याय द‌िलाने का काम करती हैं।

निर्भया की मां बोलीं, ‘मेरी बेटी को ही नहीं देश को भी मिला इंसाफ

ऐतिहासिक फैसले पर निर्भया के परिजन काफी खुश हैं। पीड़िता की मां ने कहा कि ये मेरी बेटी निर्भया को ही नहीं, पूरे देश को इंसाफ मिला है। उन्होंने कहा कि भले ही फैसला आने में देरी हुई है, लेकिन हमारी बेटी को फैसला मिला है। निर्भया की मां ने मीडिया और लोगों का धन्यवाद किया और कहा कि ऐसी उम्मीद की जाती है कि देश की बाकी बच्चियों को भी ऐसे ही इंसाफ मिलेगा।
ये फैसला सिर्फ हमारा नहीं, पूरे देश का है, समाज का है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट, समाज और मीडिया का धन्यवाद देती हूं। हम सबको इंसाफ मिला। जो हादसा मेरी बेटी के साथ हुआ उसका मन में मलाल रहेगा, जब तक जीएंगे, तब तक रहेगा। कानूनी प्रक्रिया लचर जरूर है, लेकिन उसमें देर हैं, पर अंधेर नहीं। निर्भया के पिता ने भी कहा कि वे कोर्ट के फैसले से बेहद खुश हैं मगर सवाल यह भी है कि  कितने परिवारों और कितनी माँओं में अपनी बेटी को न्याय दिलाने का हौसला सालों बरकरार रहे। क्या हमारा परिवेश इतना संवेदनशील है कि ऐसी लड़कियों, परिवारों की लड़ाई का साथ दे। बंगाल के मध्यमग्राम में वातावरण और प्रताड़ना के कारण एक किशोरी को दोबारा बलात्कार की पीड़ा से गुजरना पड़ा, अंततः उसने खुद को आग लगा ली मगर हमारा राज्य मामले को रफा – दफा करने में जुटा रहा। किशोरी का टैैक्सी चालक पिता राज्य को हताशा के साथ छोड़ चुुका है और ऐसे कई अपराधी घूम रहे हैं।

आखिरकार निर्भया को न्याय मिला : सोशल मीडिया

पोस्ट और ट्वीट में आम तौर पर कहा गया, ‘‘आखिरकार निर्भया को न्याय मिला।’’ एक उपयोगकर्ता ने इस ट्वीट के साथ एक तस्वीर साझा करते हुए कहा, ‘‘करीब चार वषर्, चार माह, 18 दिन, विरोध, दर्द और संघर्ष के बाद अब भारत की बेटी और भारतीयों की बहन की आत्मा को शांति मिलेगी।’’ एक अन्य उपयोगकर्ता ने लिखा, ‘‘यह निर्भया के लिए न्याय है लेकिन असल मायने में ऐसा तभी हो पाएगा जब समाज दूसरी निर्भया नहीं होने दे। जय हो।’’ आज फैसला सुनाए जाने के दौरान खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में तालियों की गड़गड़ाहट सुनी जा सकती थी और न्यायाधीशों ने घटना को विरले से विरलतम करार दिया। सोशल मीडिया पर भी कमोबेश इसी तरह की भावनात्मक टिप्पणी देखने को मिली और लोगों ने ट्विटर और फेसबुक पर निर्णय की सराहना की।
इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले कुछ लोगों ने पीड़िता को उसके असली नाम से पुकारने की मांग की, जिस बात की चाह उसके माता-पिता जता चुके हैं। दूसरी ओर उपयोगकर्ताओं के एक धड़े ने पूछा कि वर्ष 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम विरोधी हिंसा के पीड़ितों बिलकिस बानो और एहसान जाफरी के मामले में भी ऐसा क्यों ना किया जाए। यह जीत जरूरी थी मगर हमारी लड़ाई लम्बी हैै और रास्ता पथरीला हैै….इस पथरीले समाज को सड़ांध भरी मानसिकता से निकालना ही आज युवाओं की जिम्मेदारी हैै, या यूँ कहें कि हम सबकी जिम्मेदारी है।

(इनपुट – विभिन्न समाचार पत्र तथा पीटीआई)

 

 

 

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