नहीं रहे हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार कुंवर नारायण

 

फैजाबाद  : हिंदी के प्रसिद्ध कवि कुंवर नारायणका निधन हो गया। वह 90 वर्ष के थे। मूलरूप से फैजाबाद के रहने वाले कुंवर पिछले 51 साल से साहित्य से जुड़े थे। उन्होंने दिल्ली के सीआर पार्क स्थित अपने घर में अंतिम सांसे लीं। वह सीआर पार्क में अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते थे।  पिछले कई महीनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी। साहित्य सिनेमा और संगीत में लगभग समान दखल रखने वाले कुंवर नारायण की मूल प्रतिष्ठा कवि की थी। ‘चक्रव्यूह’, ‘परिवेशः हम तुम, ‘इन दिनों’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘आत्मजयी’, वाजश्रवा के बहाने और कुमारजीव जैसी अविस्मरणीय अनेक कृतियों के साथ उन्होंने हिंदी के साहित्य और समाज को एक बड़ी विरासत सौंपी है।

वह अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तीसरा सप्तक’ के कवियों में रहे। कुंवर नारायण को अनेक महत्वपूर्ण सम्मान भी मिले। 1995 में उन्हें कविता संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ के लिए साहित्य अकादमी सम्मान मिला। 2005 में ज्ञानपीठ सम्मान मिला।
उन्हें 2009 में पद्मभूषण से विभूषित किया गया। इसके अलावा कुमार आशान सम्मान, प्रेमचंद पुरस्कार और व्यास सम्मान भी मिले। उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिले थे। कुंवरनारायण की रचनाशीलता के कई आयाम रहे। एक तरह की उजली मनुष्यता उनकी कविता का मुख्य स्वर बनाती रही।
लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य से परास्नातक की पढ़ाई की थी। हालांकि, पढ़ाई के तुरंत बाद उन्होंने पुश्तैनी ऑटोमोबाइल बिजनेस में काम करना शुरू कर दिया था। बाद में आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव और सत्यजीत रे से प्रभावित होकर साहित्य में उनकी गहरी रुचि हो गई।

आधुनिक समय के तनावों-दबावों के बीच यह कविता बड़ी सहजता से प्रेम और सहिष्णुता का एक पाठ बनाती रही। इसके अलावा उन्होंने कई पौराणिक आख्यानों को आधुनिक और समकालीन अर्थों और संदर्भों के साथ पुनर्परिभाषित भी किया। आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने जैसी रचनाएं इस सामर्थ्य का प्रमाण हैं।

 

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