Tuesday, December 23, 2025
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नहीं रहे कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल

रायपुर । हिन्दी के शीर्ष कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है। वे पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और इसी अस्पताल में भर्ती थे। वह 88 साल के थे और पिछले कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। उन्हें सांस की समस्या के चलते एम्स, रायपुर के क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में भर्ती कराया गया था। विनोद कुमार शुक्ल के निधन (23 दिसंबर 2025) के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके सम्मान में रायपुर में होने वाले अपने सभी आधिकारिक कार्यक्रमों को रद्द (निरस्त) कर दिया है। बताया गया कि यह फैसला उनकी साहित्यिक विरासत और प्रदेश के लिए उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। पिछले ही महीने उन्हें हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च सम्मान, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 1 जनवरी 1937 को जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी साहित्य में ऐसे लेखक के रूप में प्रतिष्ठित थे जिनकी साहित्यिक आवाज़ दूर-दूर तक सुनाई देती थी। निराशा में आशा का संचार करने वाले कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल साहित्य के इस युग में काव्य धारा को नई दिशा देने वाले हैं। उनकी कविताएं सीधे परेशानियों की जड़ों पर कुठाराघात करती हैं। उन्हें कुरेदती हैं। उनकी कल्पना शक्ति का सीमांकन समीक्षकों के लिए हमेशा एक चुनौती रहा है। उनका पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जय हिन्द’ 1971 में प्रकाशित हुआ, जिसके साथ ही उनकी अपने तरह की भाषिक बनावट, चुप्पी और भीतर तक उतरती संवेदनाएँ हिन्दी कविता के परिदृश्य में दर्ज होने लगीं। इसके बाद ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’, ‘पचास कविताएँ’, ‘कभी के बाद अभी’, ‘कवि ने कहा’, ‘चुनी हुई कविताएँ’ और ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ जैसे संग्रहों ने उन्हें समकालीन हिन्दी कविता के एक अलग तरह के स्वरों में शामिल कर दिया, जो अपने आप में नयापन और मौलिकता लिए हुए था। कथा-साहित्य में उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’ ने 1979 में हिन्दी कहानी और उपन्यास की धारा को एक अलग मोड़ दिया। इस उपन्यास मणि कौल ने फ़िल्म भी बनाई है। आगे चलकर ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’, ‘यासि रासा त’ और ‘एक चुप्पी जगह’ के माध्यम से उन्होंने लोकआख्यान, स्वप्न, स्मृति, मध्यवर्गीय जीवन और मनुष्य की जटिल आकांक्षाओं को एक विशिष्ट कथा-शिल्प में रूपांतरित किया। उनके कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’, ‘महाविद्यालय’, ‘एक कहानी’ और ‘घोड़ा और अन्य कहानियाँ’ जैसे संग्रहों में दर्ज हैं, हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं। उनकी अनेक रचनाएँ भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई हैं। अपनी लंबी रचनात्मक यात्रा में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, हिन्दी गौरव सम्मान, मातृभूमि पुरस्कार, साहित्य अकादमी का महत्तर सदस्य सम्मान और 2023 का पैन-नाबोकोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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