हमें इस बात को समझना चाहिए की किसी भी प्रकार के नशे की लत आम तौर पर रातों रात नहीं होती अपितु यह एक क्रमिक प्रक्रिया है, जिसका असर कुछ वर्षों पूर्व दिखाई पडऩे लगती है।
हाल ही में एक ऑस्ट्रेलियाई युवा लडक़े द्वारा आइस ड्रग नामक नशीले द्रव्य के प्रभाव में अपनी ही आंखों को निकालकर खा जाने की भयंकर खबर ने समस्त जगत को हिलाकर रख दिया है और हमें गहराई से यह सोचने पर मजबूर कर दिया की इस तरह के प्रलोभन जो हमारे जीवन के लिए घातक हैं, उनके अंदर इस तरह फंसना, कहां की समझदारी है?
वर्ष 2012 में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किये गये सर्वेक्षण के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि 15-19 वर्ष की आयु के 28.6 प्रतिशत लडक़े तंबाकू का सेवन करते हैं और 15प्रतिशत लडक़े शराब के आदी है। इसी प्रकार से 15-19 वर्ष की आयु की 5.5प्रतिशत लड़कियां तबाकू का सेवन करती हैं और 4 प्रतिशत शराब की आदी हैं।
क्या यह चौंकाने वाली बात नहीं है। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात है हमारे समाज द्वारा इन बच्चों की मदद करने के बजाय उनका तिरस्कार कर उन्हें समाज से बाहर निकालना। समाज के एक अंग के रूप में हमें इस बात को समझना चाहिए की किसी भी प्रकार के नशे की लत आम तौर पर रातों रात नहीं होती अपितु यह एक क्रमिक प्रक्रिया है, जिसका असर कुछ वर्षों पूर्व दिखाई पडऩे लगती है।
ऐसे नशेड़ी शुरू-शुरू में जिज्ञासावश अपने मनोरंजन के लिए नशीली दवाओं का सेवन कर उसका आनंद उठाते हैं, परन्तु थोड़े ही समय में वह एक ऐसी कठिन आदत में तदील हो जाती है जो आगे चल कर उनके विनाश का कारण बनती है। सामाजिक वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे नशेडिय़ों की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हालत तो खराब होती ही हैं, किन्तु उसके साथ-साथ सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता है और उनके परिवार की सामाजिक स्थिति को भी भारी नुकसान पहुंचता है। ऐसे व्यक्ति फिर सभी के लिए बोझ स्वरुप बन जाते हैं और समाज में एवं राष्ट्र के लिए उनकी उपादेयता शून्य हो जाती है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ज्यादातर नशीली दवाओं के नशेड़ी काफी अपरिपक्व स्वभाव के होते हैं और असुरक्षित व्यक्तित्व से ग्रस्त होते हैं, परिणामस्वरूप उनके आत्मविश्वास का स्तर बिलकुल निम्न होता है। मनोचिकित्सा क्षेत्र में की गई शोध के अनुसार ऐसे लोगों को विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं, विशेषत: अपने करीबी परिवार से इन्हें काफी जूझना पड़ता है।
पिछले कुछ वर्षों में किए गए अनुसंधान में स्पष्ट रूप से यह साबित हुआ है कि मैडिटेशन (ध्यान धारणा) नशामुक्ति के लिए एक प्रभावी साधन है। शोधकर्ताओं ने नशामुक्ति केंद्र में रखे नशेडिय़ों के एक झुंड की जांच के दौरान यह पाया कि उनमें से जिन्हें मेडिटेशन की तालीम दी गई थी, उनके अंदर सकारात्मक परिणाम देखा गया, जबकि जिन्हें पारंपरिक उपचार दिया गया, वे काफी आक्रामक और फिर सुन्न बन गये।
इसलिए यह कहने में कोई मुश्किलात नहीं होनी चाहिए की ड्रग्स की लत के उन्मूलन के लिए मेडिटेशन यथोचित उपाय है। किन्तु कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है की मेडिटेशन ही क्यों? क्योंकि विज्ञान द्वारा यह सिद्ध किया गया है की यह मस्तिष्क की महत्वपूर्ण कोशिकाओं को सजीव कर व्यक्ति के भीतर आत्म जागरूकता बढ़ाने का कार्य करता है और उसे संयमी बनता है और किसी भी तरह के नशे से मुक्ति के लिए संयम आवश्यक है।
नशे से दूर रहना है तो अपने हितों के प्रति जागरूक रहें : संयम कई समस्याओं का समाधान है, लेकिन जहां तक नशामुक्ति का सवाल है संयम से बेहतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। वास्तव में यदि हम अपने हितों के प्रति जागरुक रहते हैं तो हम किसी भी नशे की चपेट में आ ही नहीं सकते, पर यदि आ भी जाए तो थोड़ा सा संयम और आत्म प्रेरणा द्वारा हम इस धीमे जहर से सहज ही मुक्त हो सकते हैं। तो आइए आज से यह पाठ पक्का करें कि नशा नाश की जड़ है, अत: इससे बचकर रहने में ही भलाई है। जो समझदार हैं वह नशे को नाश कहकर जीवन का चयन करेगा।
– (साभार)