बंगाल में बहुत से समाज सुधारक रहे हैं जो नवजागरण काल की आधारशिला हैं और आज तक हम उनको याद करते हैं तो कुछ नाम ऐसे भी हैं जिनके योगदान को इतिहास समुचित सम्मान नहीं दे सका। वे समाज सुधारक नहीं थे…उद्योगपति थे…व्यवसाय के क्षेत्र में पूरा नाम कमाया…धन कमाया लेकिन वह सब जनता को अर्पण कर दिया। आज बात करेंगे ऐसी ही विभूति की…
बंगाल में बहुत से समाज सुधारक रहे हैं जो नवजागरण काल की आधारशिला हैं और आज तक हम उनको याद करते हैं तो कुछ नाम ऐसे भी हैं जिनके योगदान को इतिहास समुचित सम्मान नहीं दे सका। वे समाज सुधारक नहीं थे…उद्योगपति थे…व्यवसाय के क्षेत्र में पूरा नाम कमाया…धन कमाया लेकिन वह सब जनता को अर्पण कर दिया। आज बात करेंगे ऐसी ही विभूति की…मतिलाल सील…उदार विचारधारा के धनी व्यवसायी, जिन्होंने धन तो खूब कमाया मगर सामाजिक एवं शैक्षणिक सुधारों के लिए दान भी उतना ही दिया।
शिक्षाविद्, सामाजिक सुधारक और ब्रह्म समाज के संस्थापकों में से एक थे। शिवनाथ शास्त्री ने मतिलाल सील की प्रशंसा करते हुए उनको ईमानदार, विनम्र और दयालु परोपकारी बताते हुए कहा है कि मतिलाल सील की समृद्धि द्वारकानाथ टैगोर और रुस्तमजी चौसी जैसी थी। सील का जन्म 20 मई 1792 को कोलकाता में सुवर्ण वणिक (स्वर्ण व्यवसाय से जुड़ा वर्ग) परिवार में हुआ था। उनके पिता चैतन्य चरण सील वस्त्र व्यवसायी थे और सील जब 5 वर्ष के थे तो उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी व्यावसायिक बुद्धि काफी तीक्ष्ण थी….कुछ समय के लिए मतिलाल सील ने एक ब्रिटिश फर्म में काम किया। इस बीच 1809 में 17 साल की उम्र में मतिलाल सील का विवाह सुरती बागान के मोहन चांद दे की बेटी नागरी दासी से हुआ।
1815 में सील ने फोर्ट विलियम में काम करना आरम्भ किया…काम करते हुए मतिलाल सील के श्वसुर ने उनको ब्रिटिश सेना को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने की सलाह दी जिससे सील की आय में वृद्धि हुई। बाद में उन्होंने इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया मगर व्यवसाय उनकी रगों में था। 1819 में सील ने अपना व्यवसाय शुरू किया। वे शराब के कारोबारी मिस्टर हडसन को बोतल और कॉर्क बेचा करते थे। ब्रिटिश कारोबारियों ने सील को नील, रेशम, चीनी, चावल, सॉल्टपीटर औऱ अन्य सामानों की आपूर्ति का जिम्मा भी दिया। वे प्रथम श्रेणी की एजेंसियों के 20 घरों के बनिया नियुक्त किये गये जिसमें से 50 से 60 ऐसे घर कलकत्ता में थे। मतिलाल सील ने खुद नील, रेशम, चीनी का निर्यात यूरोप को करना शुरू किया और इंग्लैंड से लोहा, सूती कपड़े के टुकड़ों का आयात करने लगे। अपनी समृद्धि से उन्होंने यूरोपियन लोगों को कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी। उन्होंने कार्गो नावें हासिल कीं जो उन दिनों नयी चीज थीं। सील ने पुरानी आटे की मिल में काम किया…ऑस्ट्रेलिया को बिस्कुटों से लदा पूरा जहाज भेजा। बाद में इनके पास व्यवसाय के लिए 13 जहाज थे और इसमें से एक स्टीम टग था जिसका नाम बनिया था।
मतिलाल सील जितने बड़े व्यवसायी थे, उतने ही उदारवादी भी थे। कई सामाजिक कार्य़ों के लिए उन्होंने दान किया। 1841 में बेलघरिया में एक भिक्षुकावास बनवाया जिसमें 500 लोगों को रोज खिलाया जाता था। उन्होंने मतिलाल घाट बनवाया। उन्होंने साहूकारी, बिल की गिनती जैसे कामों में हाथ लगाया और अपनी पद्धति तथा व्यावहारिक बुद्धि से काम करते है। मतिलाल सील बैंक ऑफ इंडिया के संस्थापकों में से एक थे। वे भारत में पहली जीवन बीमा कम्पनी न्यू ओरिएंटल इन्श्योरेंस की स्थापना में भी सक्रिय थे। वे एग्री हॉर्टिकल्चरल सोसायटी के महत्वपूर्ण सदस्य थे और असम टी कम्पनी के संस्थापक निदेशक भी थे।
मतिलाल सील्स फ्री कॉलेज (बाद में मतिलाल सील्स फ्री स्कूल एंड कॉलेज) औपचारिक तौर पर मार्च 1842 में उनके घर पर ही खोला गया था। यह संस्थान आरम्भ में सेंट एफ. जेवियर्स, चौरंगी के निदेशकों द्नारा प्रबंधित किया जाता था। जेसुएट पादरियों के लिए यह अनिवार्य था कि हिन्दू विद्यार्थियों पर इसाईयत न थोपें। इसके बावजूद जब पादरियों के विरुद्ध बहुत अधिक शिकायतें मिलने लगीं तो सील रेवरेंड कृष्णमोहन बनर्जी को संस्थान का संचालन करने के लिए कहा। उन दिनों इस कॉलेज का सालाना खर्च 12 हजार रुपये था जो मतिलाल सील ट्रस्ट से आता था। विद्यार्थियों से मात्र 1 रुपये लिये जाते थे। यहाँ पर अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, भूगोल, आवृत्ति, लेखन, गणित, बीजगणित, दर्शन विज्ञान, उच्च गणित और गणित का व्यावहारिक प्रयोग सिखाया जाता था। एक समय तक यहाँ 500 विद्यार्थी पढ़ते थे। कॉलेज के विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और सरकारी, मिशनरी और विश्वविद्यालय की परीक्षा में सफल हुए।
वे अपने व्यावसायिक जीवन के अंतिम दिनों में भी कलकत्ता के सबसे समृद्ध नागरिक थे। मतिलाल सील के दोनों बेटों हीरालाल सील और चुनीलाल सील ने भी अपने धन का एक हिस्सा जनहित से जुड़े कार्य़ों के लिए दिया। मतिलाल सील के समय में कलकत्ता का नागरिक समाज दो भागों में बँटा था। एक तरफ राजा राममोहन राय थे तो दूसरी तरफ रूढ़िवादी सोच वाले राधाकांत देव थे और अधिकतर धनी लोग ऐसे ही थे। राधाकांत देव ने सती प्रथा और विधवा विवाह को लेकर बने कानून का जमकर विरोध किया था। सील पारम्परिक विचारों के होते हुए भी राजा राममोहन राय के पक्षधर थे। स्त्रियों की शिक्षा को उन्होंने समर्थन दिया। इतना ही नहीं उन्होंने जाति की बाधाओं को तोड़कर विधवा से विवाह का साहस रखने वाले व्यक्ति को 1 हजार रुपये दहेज देने की सार्वजनिक घोषणा की थी। सील का निधन 20 मई 1854 को हुआ। उनके नाम पर कोलकाता में एक सड़क भी है।
(स्त्रोत साभार – गेट बंगाल, मतिलाल सील डॉट कॉम, विकिपीडिया)