अपराजिता की ओर से
अपराजिता की कोशिश रही है कि नयी प्रतिभाओं को सामने लाया जाए और ऐसे लोगों की कहानी कही जाए जिन्होंने अपना एक मुकाम बनाया है और प्रेरक रहे हैं। आज के बदलते दौर में जहाँ सफलता की पूजा होती है, वहीं जरूरी है कि हम उन लोगों की भी बात करें जिन्होंने सफलता की इमारत की बुनियाद रखी। समय कुछ ऐसा है कि आज नींव की ईंट ही गुम हो जाती है। ऐसी स्थिति में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन लोगों को सामने लायें क्योंकि अगर नींव ही न हो तो महलों को ढहते देर नहीं लगेगी। इसी सोच के साथ नववर्ष पर अपराजिता एक नयी पहल करने जा रही है जिसका नाम नींव की ईंट है। हम मुलाकात के तहत जहाँ नयी और स्थापित प्रतिभाओं को हमेशा की तरह सामने लाएंगे, वहीं समय – समय पर नींव की ईंट स्तम्भ के तहत ऐसे लोगों से भी आपकी मुलाकात करवाएंँगे या उनकी कहानी बताएंगे जिन्होंने एक बड़े परिवर्तन की शुरुआत की। आज नींव की ईंट के तहत हम आपकी मुलाकात राजन – साजन मिश्र के पं. राजन मिश्र से करवाने जा रहे हैं जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के माधुर्य को प्रसारित करने के लिए जाने जाते हैं
शास्त्रीय संगीत की दुनिया में पंडित राजन-साजन मिश्र का नाम बेहद आदर से लिया जाने वाला नाम है। बनारस घराने की गूँज को विश्‍व तक ले जाने में इन भाइयों का महत्वपूर्ण योगदान है। संगीत को विश्‍व शांति का माध्यम मानने वाले राजन – साजन मिश्र ने भैरव से भैरवी तक’ की यात्रा आरम्भ की है। इसकी शुरुआत कला की समृद्ध भूमि बनारस से 18 नवंबर 2017 से हुई है जो अहमदाबाद और कोलकाता से होते हुए ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूरोपीय देशों तक जारी रहेगी। 7 जनवरी को कोलकाता के जोड़ासांको में होने वाले इस कार्यक्रम के सिलसिले में पद्मभूषण पंडित राजन मिश्र महानगर आए जहाँ हमने उनसे संगीत की दुनिया को लेकर बात की, पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश
संगीतमय बचपन बीता
हमारी तो आँखें ही संगीत के बीच खुली। हम बनारस के कबीर चौरा मोहल्ले में रहते हैं जहाँ कबीर का स्थान है। वहीं बड़े – बड़े कलाकार रहते हैं। जब आँख खुली तो हर जगह स्वर लहरियाँ गूँज रही थीं। कहीं तबले, तो कहीं नृत्य, कहीं सितार की आवाज, कहीं सारंगी की आवाज, संगीतमय बचपन जीता। 4 -5 साल की उम्र से गंडाबंधन पंडित बड़े रामदास जी से हो गया और तब से शिक्षा शुरू हो गयी और अब तक चल ही रही है।
बनारस से रिश्ता मजबूत है
समय के साथ तो बदलाव आता ही है। बहुत से लोग इधर – उधर चले गये। हम भी स्थायी तौर पर दिल्ली रहने लगे मगर बनारस से नाता टूटा नहीं है। हर एक -दो महीने पर बनारस जाते हैं, वहाँ हमारा अपना निवास स्थान है। गुरु लोगों का स्थान है, वहाँ जाकर माथा टेकते हैं।
बॉलीवुड गीत बाजार के दबाव में बनते हैं
80 और 90 के दशक तक जो फिल्मी गाने बने….उसे हम 50 बार भी सुनें तब भी अच्छे लगते हैं क्योंकि उस जमाने के संगीत निर्देशक पार्श्‍व गायक होते थे। वो सब शास्त्रीय संगीत सीखे हुए होते हैं। अब बैजू बावरा के गाने, झनक – झनक पायल बाजे के गाने और मुगले आजम के गाने सालों बाद आज भी कर्णप्रिय लगते हैं। बाजार का दबाव है कि लोगों को वैसे गीत बनाने पड़ते हैं। एक बार कविता कृष्णमूर्ति के साथ यात्रा कर रहे थे हम, तब उन्होंने ये बात बतायी कि संगीत निर्देशक अगर अच्छे और कर्णप्रिय गाने बनाना चाहते हैं मगर निर्माताओं का नजरिया कुछ अलग होता है और वे हर किसी की पसन्द को ध्यान में रखकर ऐसे गीत बनवाना चाहते हैं जिन पर लोग थिरक सकें।
नाना पाटेकर निभा सकते हैं हमारा किरदार
हमने एक फिल्म की थी सुर संगम, जो तमिल फिल्म की रीमेक थी। इस फिल्म में 11 गाने हमने गाए। उसमें हमारा लता जी, अनुराधा पौंडवाल जी और कविता जी के साथ गाना है। बहुत अच्छी फिल्म बनी थी। वह फिल्म गुरु शिष्य परम्परा पर बनी थी और एक शास्त्रीय संगीतज्ञ के व्यक्तित्व पर फिल्म बनी है। तब बॉलीवुड का अनुभव लेने का मौका मिला। बीच में माटी नाम की फिल्म में संगीत दिया था। एक फिल्म निर्माता -निर्देशक के मतभेद में बंद पड़ी है, उसमें सोनू निगम, श्रेया घोषाल और आकृति कक्कड़ के साथ गाने हैं और वे रिकॉर्ड हो चुके हैं। नाना पाटेकर हमारा किरदार निभा सकते हैं।
युवाओं को संदेश
धैर्य, श्रद्धा और विनम्रता से युवा अपने सपने पूरे कर सकते हैं।