धर्म के शोर में भक्ति काव्य मानवता का महान संदेश है

कोलकाता : भक्ति साहित्य धार्मिक सुधार की आवाज है और यह उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना करता है। 21वीं सदी में भक्त कवियों सूर, कबीर, तुलसी, जायसी और मीरा को अखंडता में देखना चाहिए, साथ ही हर भक्त कवि की विशिष्टता को भी समझने की जरूरत है। भारतीय भाषा परिषद और श्री शिक्षायतन कॉलेज द्वारा सम्मिलित रूप से भक्ति काव्य पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वान वक्ताओं ने वर्तमान युग में भक्ति काव्य की महत्ता पर चर्चा की। बीज भाषण देते हुए बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि भक्ति काव्य मनुष्य के आत्म जगत का विकास कर विश्‍वात्मा से जोड़ता है और संकीर्णता की हर दीवार तोड़ देता है। भक्त कवियों ने लोक भाषाओं में अपनी रचना लिखी तभी यह जन मानस को छू सकी। प्रेसिडेंसी विश्‍वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद रमण ने कहा कि भक्त कवियों की दृष्टि में प्रेम सबसे ऊपर है। उन्होंने जायसी के पद्मावत के आधार पर बताया कि ईश्‍वर तक पहुंचने उतने रास्ते हो सकते हैं जितने आकाश के नक्षत्र और शरीर के रोएं हैं। जालान गर्ल्स कॉलेज के प्रो.विवेक सिंह ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं में भक्ति साहित्य को नए दृष्टिकोण से पढ़ाने की जरूरत है। डॉ.ॠषिकेश राय ने कहा कि हिंदी के भक्त कवियों ने जातीय अखंडता पैदा करने में अहम भूमिका निभाई है। प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ.शंभुनाथ ने कहा कि भक्ति और धार्मिक कर्मकांड दो चीजें हैं। भक्ति का संबंध है उच्चतर मूल्यों से है जबकि धार्मिक कर्मकांड कई बार दिखावा होते हैं। सभी भक्त कवियों के तीन मुख्य उद्देश्य थे- घृणा और वैर से मुक्त समाज बनाना, भय मुक्त समाज बनाना और लोभ मुक्त समाज की स्थापना करना।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र में भक्ति साहित्य और वंचित समुदाय पर बोलते हुए बनारस से आए प्रो. आशीष त्रिपाठी ने कहा कि चाहे कृष्ण भक्त कवि हों या निर्गुण कवि हम दोनों की परंपरा में दलित और स्त्री कवियों की पूरी भागीदारी पाते हैं। इन सभी कवियों ने एक ऐसे समाज का स्वप्न देखा था जो पाखंड और सामंती भेदभाव से मुक्त हो। कलकत्ता विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने कहा कि भक्ति काव्य हर युग में उच्च आदर्शों की प्रेरणा देता रहेगा। कल्याणी विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो.विभा कुमारी ने भक्ति काव्य में स्त्रियों के स्थान पर चर्चा की। दूसरे सत्र का अध्यक्षीय भाषण देते हुए मेघालय से आए प्रो.माधवेंद्र पांडेय ने कहा कि आज की उपभोक्तावादी युग में भक्ति काव्य उच्च मानवता का संदेश है। आरंभ में डॉ.कुसुम खेमानी ने सभी का स्वागत करते हुए यह कहा कि श्री शिक्षायतन और भारतीय भाषा परिषद दोनों संस्थाओं की स्थापना सीताराम सेकसरिया जी ने की थी। ये एक माँ की ही दो संतानें हैं। श्री शिक्षायतन कॉलेज की प्राचार्या डॉ.अदिति दे ने सभी का स्वागत करते हुए ये कहा कि विद्यार्थियों के लिए इस तरह की संगोष्ठी की बहुत अधिक उपयोगिता है। हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.प्रीति सिंघी ने संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत की। राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन प्रो.सिंधु मेहता, प्रो.अल्पना नायक और श्री पीयूषकांत राय ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो.रचना पांडेय ने किया। इस संगोष्ठी में शिक्षकों और विद्यार्थियों की भारी उपस्थिति थी।
प्रेषक – सुशील कान्ति

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