देश भर में मनाए जाने वाले प्रख्यात दशहरा उत्सव

दशहरा भारत के बड़े त्योहारों में से एक है । दशहरे के दिन अधिकतर जगहों पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन, कुछ स्थान ऐसे हैं, जो इस पर्व की भव्यता व आकर्षण के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं –
मैसूर में होता है राज्य त्योहार का आयोजन – मैसूर में इस पर्व को स्टेट फेस्टिवल यानी राज्य त्योहार के रूप में मनाया जाता है। दशहरे के दिन मैसूर का राज दरबार सभी लोगों के लिए खोल दिया जाता है। नृत्य, संगीत और प्रदर्शनी के साथ दस दिनों तक यहां दशहरा मेला लगता है। दसवें दिन जम्बू की सवारी नामक भव्य जुलूस निकाला जाता है। 21 तोपों की सलामी के साथ महल से हाथियों के जुलूस की शुरुआत होती है। इस जुलूस का नेतृत्व सजे-धजे हाथी करते हैं। इसमें से एक हाथी पर 750 किलो सोने का हौदा लगा होता है, जिस पर देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा रखी होती है। इस जुलूस में ड्रम बजानेवाले, विशाल कठपुतलियां, एनसीसी कैडेट स्काउट और गाइड, लोक नर्तक और संगीतज्ञ और झांकी शामिल होती है। मैसूर का दशहरा देखने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं।
बस्तर में 75 दिनों तक चलता है यह पर्व – छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है। बस्तर के दशहरे का संबंध रावण वध से नहीं, बल्कि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा से जुड़ा है। यहां दशहरे के पर्व में मां दंतेश्वरी का रथ खींचा जाता है। बड़े पैमानै पर आदिवासी इस आयोजन में शामिल होते हैं। प्रत्येक वर्ष हरियाली अमावस को इस पर्व की पहली रस्म के तौर पर पाट जात्रा का विधान पूरा किया जाता है। पाट जात्रा अनुष्ठान के अंतर्गत स्थानीय निवासियों द्वारा जंगल से लकड़ियां एकत्रित की जाती हैं जिसका उपयोग विशालकाय रथ बनाने में होता है। बस्तर के तहसीलदार द्वारा समस्त ग्रामों के देवी देवताओं को दशहरा में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा जाता है जिसमें 6166 ग्रामीण प्रतिनिधि बस्तर दशहरे की पूजा विधान को संपन्न कराने के लिए विशेष तौर पर शामिल होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है कुल्लू का दशहरा – हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है, उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव की रौनक बढ़नी शुरू होती है। इस पर्व की शुरुआत मनाली के हिडिंबा मंदिर की आराधना से होती है, फिर पूरे कुल्लू में रथ यात्रा आयोजित की जाती है। रथ यात्रा में रघुनाथ, सीता और हिडिंबा मां की प्रतिमाओं को मुख्य स्थान दिया जाता है। इस रथ को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाते हैं और छह दिनों तक रथ को यहां रोक कर रखा जाता है। उत्सव के 7वें दिन रथ को ब्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंकादहन का आयोजन होता है। सात दिनों तक चलनेवाले इस पर्व में नाच-गाने के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
कृष्णा नदी में स्नान का है विशेष महत्व – आंध्र प्रदेश, विजयवाड़ा में कृष्णा नदी के किनारे बने श्री कनका दुर्गा मंदिर से दशहरा के आयोजन की शुरूआत होती है। यहां कनक दुर्गा देवी को दस दिनों तक अलग-अलग अवतारों में सजाया जाता है। वहीं विजयवाड़ा कनक दुर्गा मंदिर की भी खास आभा देखते ही बनती है। यहां दशहरा के समय कई तरह की पूजा होती है, जिसमें सरस्वती पूजा की खास मान्यता है। इस पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु कृष्णा नदी में स्नान करते हैं।
कोटा में लगता है दर्शकों का तांता – राजस्थान के कोटा शहर मे भी दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। कोटा में मेले का आयोजन महाराव भीमसिंह द्वितीय ने किया था। तब से यह परंपरा आज तक निभायी जा रही है। इस दिन यहां पर मेले का आयोजन होता है। भजन कीर्तन के साथ-साथ कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है. इसलिए यह मेला प्रसिद्ध मेलों में से एक माना जाता है।
(साभार – प्रभात खबर)

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