कोविड -19 के कारण काफी चीजें बदल गयी हैं। मुलाकात का तरीका, बातचीत का तरीका, काम का तरीका, सही है कि दूरी तो बढ़ी है और इसका असर भी बहुत ज्यादा पड़ा है। न्यू नॉर्मल को अपनाना इतना आसान भी नहीं है। तीसरी लहर की चेतावनी के बीच कोविड -19 को लेकर जागरुकता की बात की जाये, तो उंगली सरकार पर ही नहीं, जनता पर भी उठेगी। आखिर हम कब बदलने जा रहे हैं। कई राज्यों में लॉकडाउन लगा, बढ़ाया गया, पाबंदियाँ लगीं…सड़कें सूनी रहीं। ऐसा लगा कि अब लोग सजग होंगे, मास्क पहनेंगे, सामाजिक दूरी रखेंगे मगर जैसे ही लॉकडाउन में छूट मिली, पिंजरे के पंछी, पिंजरे से बाहर। कई तो आँख बचाकर छुट्टी मनाने लगे, कहने की जरूरत नहीं कि छुट्टी में मास्क जैसी कोई चीज कौन पहनता है? लापरवाही के कारण एक बार फिर कोविड -19 के मामले बढ़े. कोरोना के साथ ब्लैक, व्हाइट और यलो फंगस का खतरा बढ़ा, बहुतों को हमने खो दिया मगर इतने पर भी लोगों को फर्क नहीं पड़ता, वह लड़ेंगे, भले ही बेवजह लड़ें पर लड़ेंगे जरूर। सवाल यह है कि यही चलता रहा तो कोविड -19 का खतरा कम तो होगा नहीं, बल्कि बढ़ेगा जरूर। याद कीजिए कैसे पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े हमारे पूर्वजों ने अनुशासन का साथ नहीं छोड़ा. कठिनाईयाँ सहीं, अत्याचार सहे पर अपने नेतृत्वकर्ताओं की एक आवाज पर वे सब कुछ लुटाते रहे। यह स्वतन्त्रता इसी आत्मत्याग का परिणाम है। आज नेता भी ऐसे नहीं हैं…उनका समय एक दूसरे को कोसने में जाता है। चुनाव के दौरान जो हुआ, हम सबने देखा और इसके बाद जो कुछ हुआ, वह भी हमने देखा, क्या हम खुद को अनुशासित नहीं कर सकते? इस देश की बागडोर सही दिशा में तभी जायेगी जब जनता जागेगी, अनुशासित होगी, आँख बन्द करके न तो समर्थन देगी और न बात मानेगी….सवाल यह है कि क्या ऐसा होगा… और होगा तो कब होगा ? देश तभी जागेगा जब जनता जागेगी, हम और आप जगेंगे।