देवी का का अद्भुत रूप, दक्षिण का कन्याकुमारी

यह नारा नहीं वास्तविकता है, जिसका तीव्रता से आभास तब होता है जब हम भारत के दक्षिणी छोर पर देवी कन्या कुमारी के दर्शन करते हैं। अनायास ही उत्तर में हिमालय की पर्वत शृंखलाओं में बसी वैष्णो माता का ध्यान आता है। दोनों मां पार्वती के रूप हैं। एक ओर समुद्र तटवासिनी मां, तो दूसरी ओर बर्फीली पहाड़ियों पर बसी मां। कन्या कुमारी में देवी कुंवारी अर्थात अविवाहिता कन्या रूप में है और उधर वैष्णो माता के मंदिर में प्रतिदिन कन्याओं का पूजन होता है। एक अदृश्य बंधन उत्तर से दक्षिण तक बांधता है- देश को, संस्कृति को और हम सबको।
कन्या कुमारी तमिलनाडु का एक जिला है जो भारत के दक्षिणी छोर पर है। यहां की लुभावनी खासियत तीन समुद्रों का संगम है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और पश्चिम की ओर अरब सागर। यह संगम इसे तीर्थ स्थान की संज्ञा देता है। प्रकृति की दृष्टि से देखा जाए तो संगम के स्थान पर चट्टानों से टकराती लहरें और पानी का उफान मन में श्रद्धायुक्त भय पैदा करता है और इंसान नतमस्तक हो जाता है।
धार्मिक दृष्टि से माता का मंदिर और विवेकानंद स्मारक तीर्थस्थल हैं, तो तिरुवल्लावुर की प्रतिमा तमिल साहित्य के महान संत कवि की याद दिलाती है। भौगोलिक दृष्टि से यह जिला पश्चिमी घाट की पहाड़ियों और समुद्र के बीच भिंचा हुआ है। भू-वैज्ञानिकों के मतानुसार, भौगोलिक उथल-पुथल से बने इस भू-भाग की चट्टानें 25 लाख वर्षों से अधिक पुरानी नहीं हैं।
माना जाता है कि देवी कन्या कुमारी की मूर्ति की स्थापना ऋषि परशुराम ने की थी और यह मंदिर लगभग 3000 वर्ष पुराना है। परंतु इतिहास के अनुसार, शहर में स्थित वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में पांडया सम्राटों ने बनवाया था। चोल, चेरी, वेनाह और नायक राजवंशों के शासन के दौरान समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण हुआ।


यहां की मंदिर स्थापत्य कला इन्हीं शासकों की देन है। मंदिर समुद्र तट से कुछ ऊंचाई पर है तथा इसके चारों ओर लगभग 18-20 फुट ऊंची दीवार है। राजा मार्तंड वर्मा (1729 से 1758) के राज्य काल में कन्या कुमारी का इलाका त्रावणकोर राज्य का हिस्सा बन गया, जिसकी राजधानी पद्मनाभपुरम थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद त्रावणकोर राज्य का भारतीय संघ में विलय होने पर वर्ष 1956 में यह तलिमनाडु का एक जिला बन गया।
कन्या कुमारी मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है, जिसमें काले पत्थर के खम्भों पर गूढ़ और पेचीदा नक्काशी है। मंदिर में एक छोटा गुम्बद है जिसके चारों ओर अन्य गुम्बद हैं, जिनमें देवी- देवताओं की मूर्तियां हैं, जैसे गणेश, सूर्यदेव, अय्यपा स्वामी, काल भैरव, विजय सुंदरी और बाला सुंदरी मंदिर परिसर में मूल गंगा तीर्थ नामक कुआं है, जहां से देवी के अभिषेक का जल लाया जाता है।
वास्तव में मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है परंतु यह वर्ष में पांच बार विशेष त्यौहारों के समय ही खुलता है, अन्य समय बंद रहता है तथा प्रवेश उत्तरी द्वार से किया जाता है। पूर्व द्वार बंद होने के पीछे एक कारण है। कहते हैं कि देवी की नथ का हीरा इतना तेजस्वी है कि उसकी चमक दूर तक जाती थी और इस प्रकाश को दीपस्तंभ समझ कर जहाज इस दिशा में आ जाते और चट्टानों से टकरा जाते थे।
मंदिर से जुड़े 11 तीर्थस्थल, इसके भीतर के तीन गर्भ गृह, गलियारे और मुख्य नवरात्रि मंडप गहन हैं और यह कहना न होगा कि इन्हें एकदम से समझना किसी भूल-भुलैयां से कम नहीं। अन्य दर्शनीय स्थलों में पद्मनाभपुरम महल, थोलावलाई मंदिर, सुचिंद्रम मंदिर, देवी भगवती मंदिर और ओलाकावुरी जलप्रपात विशेष रूप से शामिल हैं।

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