तेलंगाना का दूसरा किसान विद्रोह: निजामाबाद में 179 किसान लड़ रहे चुनाव

हैदराबाद : मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी कल्वकुंतला कविता ने कुछ दिनों पहले एक चुनावी सभा में कहा था कि तेलंगाना के एक हजार किसानों को बनारस और अमेठी जाकर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहिए ताकि प्रधानमंत्री को और कांग्रेस अध्यक्ष को मालूम पड़े कि खेती-किसानी करने वालों की हालत कितनी खराब है। कविता निजामाबाद क्षेत्र से लोकसभा सदस्य हैं और इस दफा फिर से अपने पिता की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। लगता है, किसानों ने उनके आह्वान को गंभीरता से लिया। पर 1100 किलोमीटर दूर जाने की बजाय उन्होंने अपने घर निजामाबाद से ही नामांकन भर दिया। नतीजा यह है कि अब यहां से 179 किसान खड़े हुए हैं, जबकि कुल उम्मीदवार 185 हैं। वे केवल अपनी समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने चुनाव लड़ रहे हैं। उम्मीदवारों में से एक ताहेर बिन हमदान कहते हैं, ‘हल्दी का दाम इतना कम हो गया है कि एक एकड़ पर हमको 40 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है।’
तेलंगाना के किसान अपने विद्रोही और सत्ता विरोधी तेवर के लिए मशहूर हैं। जमींदारों और निजाम के खिलाफ 1946-48 के हथियारबंद किसान विद्रोह की याद अभी भी लोगों के जहन में है। पर अब विद्रोह ऐसी सरकार के खिलाफ है जो दावा करती है कि वह किसानों को इतनी सुविधाएं दे रही है जो दूसरे राज्यों में सपना ही है। खेतों के लिए मुफ्त बिजली के अलावा हर किसान को साल में 8000 रुपए प्रति एकड़ मिल रहे हैं। 59 की उम्र के पहले मृत्यु होने पर उनके परिवार को 5 लाख रु. का बीमा मिलता है।
तेलंगाना में देश की 13% हल्दी पैदा होती है। ये किसान लंबे अरसे से मांग कर रहे थे कि राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड का गठन किया जाए और हल्दी तथा लाल ज्वार का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए। हमदान के मुताबिक एक क्विंटल हल्दी उपजाने की लागत 7000 रुपए है, पर मंडी में 5000 का भावमिलता है। ‘किसान खेत कांग्रेस’ के अन्वेष चुनाव लड़ने की वजह बताते हैं: ‘ट्रेडर कार्टेल बनाते हैं, दाम गिराते हैं, सरकार कुछ नहीं करती। किसान को पैसे नहीं मिलते। हम लोग सड़क पर आ गए हैं, इसलिए चुनाव लड़ रहे हैं।’ जमानत के 25-25 हजार रुपए किसानों ने आपस में चंदा करके इकठ्ठा किए हैं।

निजामाबाद से भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार भी मैदान में हैं। कविता कहती हैं कि ऐसा नहीं कि उन्होंने पांच सालों में कुछ नहीं किया: ‘हमने पार्लियामेंट में कई दफा यह मामला उठाया।’ हल्दी किसानों के हमले ने उनका रंग पीला कर दिया है। हमदान कहते हैं कि नामांकन वापस लेने के लिए टीआरएस ने किसानों पर दबाव बनाया था पर उन्होंने झुकने से इंकार कर दिया। तेलंगाना के लोगों ने इसके पहले भी समस्या की तरफ ध्यान खींचने थोक में नामांकन दाखिल किए थे। फ्लोराइड की समस्या से जूझ रहे नलगोंडा में 1996 के लोकसभा चुनाव में 480 कैंडिडेट मैदान में उतरे थे, जिनके लिए 50 पेज की बैलट पुस्तिका छपवानी पड़ी थी। लगभग सबकी जमानत जब्त हुई, पर डेमोक्रेसी का जमीर बचा रहा। कविता बोलीं- चुनाव लड़ रहे किसान भाजपा-कांग्रेस के के. कविता ने रविवार को कहा कि मुझे किसानों पर पूरा भरोसा है। जो किसान मेरे खिलाफ चुनाव में खड़े हुए हैं वे भाजपा और कांग्रेस के समर्थक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे बिल्कुल भी परेशान नहीं हैं और नतीजों से पता चल जाएगा कि कौन सही है और कौन गलत।

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