तिरुचिरापल्ली : दक्षिण भारत के ज्यादातर मंदिर प्राचीन काल में बने हुए हैं। इनमें तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले के तिरुवनैकवल स्थित जम्बूकेश्वर अखिलंदेश्वरी मंदिर भी है। इसका निर्माण चोल वंश के राजा कोचेन्गनन चोल ने करवाया था। इस शिव मंदिर में चल रही खुदाई के दौरान 504 छोटे सोने के सिक्कों और 1 बड़े सिक्के से भरा कलश निकला। मंदिर प्रशासन ने इन सिक्कों को पुलिस के हवाले कर दिया है।
पुलिस के अनुसार, कलश में मिले सोने के सिक्कों का वजन 1.716 किलो है। अनुमान है कि ये सिक्के करीब 10वीं-12वीं शताब्दी तक के हो सकते हैं। मंदिर के अधिकारियों के अनुसार सिक्कों पर अरबी लिपि के अक्षर हैं।
शिलालेख में मंदिर से जुड़े धन की जानकारी
मंदिर प्रशासन के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण करीब 1800 साल पहले चोल राजवंश के शासनकाल में हुआ था। मंदिर से जुड़े 156 शिलालेख मिले थे, जिनमें चोल राजवंश के शासक परांतक प्रथम के समय का शिलालेख सबसे पुराना है, जो कि नौवीं शताब्दी का है। इसमें ही मंदिर के जीर्णोद्धार और धन के बारे में जानकारी मिलती है। चोल राजाओं के बाद भी समय-समय पर इस मंदिर की देखरेख और पुननिर्माण का कार्य करवाया गया।
वर्तमान के तिरुवनैकवल में जहां मंदिर है, वहां प्राचीनकाल में जामुन के पेड़ों का जंगल था। मंदिर के पीछे एक चबूतरा बना है, जिस पर जामुन का प्राचीन पेड़ अभी भी है। मंदिर को प्राप्त शिलालेख के अनुसार, प्राचीनकाल में जामुन के पेड़ के नीचे ही भगवान शिव ने उनके दो भक्तों को दर्शन दिए थे। तब से वहां शिवलिंग स्थापित है। इसलिए, इस मंदिर का नाम जम्बूकेश्वर पड़ा। जम्बू का हिंदी अर्थ जामुन होता है।
शिव-पार्वती के मंदिरों के कारण कहा जाता है जम्बूकेश्वर अखिलंदेश्वरी मंदिर
तिरुवनैकवल में स्थित जम्बूकेश्वर अखिलंदेश्वरी मंदिर भगवान शिव-पार्वती का प्रमुख मंदिर है। इस शिवलिंग को पंचतत्व लिंगों में से एक जलतत्व लिंग के रूप में जाना जाता है। करीब सौ बीघा क्षेत्र में फैले इस मंदिर के तीन आंगन हैं। मंदिर प्रवेश करते ही जो आंगन है, वहां लगभग 400 स्तम्भ बने हैं। आंगन में दाहिनी ओर एक सरोवर है, जिसके मध्य में मंडप बना है।
श्री जम्बूकेश्वर मंदिर पांचवें घेरे में है। इस जगह श्री जंबूकेश्वर लिंग बहते हुए पानी के ऊपर स्थापित है और लिंगमूर्ति के नीचे से लगातार जल ऊपर आता रहता है। आदि शंकराचार्य ने यहां पर श्री जम्बूकेश्वर लिंग मूर्ति की पूजा अर्चना की थी। यहां शंकराचार्य की मूर्ति भी है। जम्बूकेश्वर मंदिर की तीसरी परिक्रमा में सुब्रह्मण्यम मंदिर है। यहां भगवान शिव का पंचमुखी लिंग भी स्थापित है।
जम्बूकेश्वर मंदिर के प्रांगण में देवी पार्वती का विशाल मंदिर है। यहां पर देवी की पूजा जगदम्बा रूप में की जाती है। इसलिए, इन्हें अखिलंदेश्वरी कहते हैं। इस मंदिर के पास ही गणेशजी का भी मंदिर है, जिसकी स्थापना आदिशंकराचार्य द्वारा की गई है। मंदिर प्रशासन द्वारा बताया जाता है कि पहले देवी की मूर्ति में बहुत तेज था, इस वजह से कोई दर्शन नहीं कर पाता था। लेकिन, आदिशंकराचार्य ने मूर्ति के कानों में हीरे से जड़े हुए श्रीयंत्र के कुंडल पहना दिए, जिससे देवी का तेज कम हुआ। इस मंदिर के आसपास मरिअम्मन और लक्ष्मी मंदिर के साथ अन्य मंदिर भी बने हुए हैं।
(साभार – दैनिक भास्कर)