अफ्रीका के घाना में रह रही भारती सिंह याद कर रही हैं देस की दिवाली…त्योहार में बसा बचपन, आस – पास का वातावरण…सब कुछ उमंग में हैं और मन लौट चला है पीछे की ओर..आप भी शामिल हो जाइए स्मृतियों की झिलमिलाती रोशनी के साथ –
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दीवाली के घरौंदे तो बनकर सूख ही जाते थे।अब बारी थी खिलोने और ग्वालिन की। मिट्टी के हाथी ,घोड़े ,बाघ हाथी तोता सब मिलता है अभी भी ,साथ मे मिट्टी के गुल्लक भी। ग्वालिनें दो,चार आठ दस दिए लिए। अब दीवाली तक किसे इन्तजार हो।मिट्टी की पूरी रसोई मिलती थी।चूल्हे बर्तन सील लोढ़ा सुप सारी ग्रहस्थी। सब बनठन कर तैयार । घरौंदे सजाने का भी काम था।छत पर कुर्सियां डालनी थी।बगीचे में झूला भी। बड़े भैया लोग एक से एक कंदील बनाकर कुछ दिन पहले ही टांग देते।बाजारों पर चीन का कब्जा नही था।पकवान भी घर मे ही बनते। घर के भी सारे समान धोकर तैयार। सब तो वैसा ही होगा। काहे को आये विदेश।मन वही कही छूट गया।
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दीवाली की साफ सफाई जोरों पर हैlपर्दे दरवाजे सब अपनी बाट देख रहे हैं जो चमक चुके इठला रहे हैं। एक बात जो बार बार याद आ रही है बचपन मे चिकनी मिट्टी का इंतजाम भी करना होता था। सुरुचि पूर्वक घरौंदे बनते थे।उसके बगल में मिट्टी डाल कर सरसो भी बो दिया करते बगीचा तैयार हो जाता।दूसरे तल्ले की छत पर कुर्सियां मेज भी बिछाए जाते।चुने से रंगाई होती।नील गेर से डिजाइन उकेरे जाते यह सब एक सप्ताह पहले से करना होता । देश की दीवाली बहुत याद आ रही हो।
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अपार्टमेंट के सारे बच्चे आज आज गंभीर मुद्रा मे बैठे थे.सवाल था दीवाली कैसे मनाइ जाए. सबके गुल्लक आज फुटने वाले थे.पिछले साल यह तय हुअा था कि सब अपने अपने गुल्लक के पैसो से पटाखे खरीदेंगे.पिछली बार पापा ने महंगाइ का नाम कहकर कम पटाखे दिलाए थे. तभी यह तय हुआ था कि सब अपनी जेब खर्च के पैसे बचाएंगे ताकि इस दीवाली कोइ कमी न रहे. कुल आठ हजार रुपये हुए थे सबकी गुल्लक के पैसे मिलाकर. तभी उनके मुखिया अक्षत ने कहा. आज आपसे एक विनती करना चाहता हू. “क्या” “क्यो न इस दीवाली को हम यादगार दीवाली बनाए.” मेरे पास एक आइडिया है” सब बच्चे ध्यान से सुनने लगे. हमारी सोसाइटी मे तीन कामवाली आती है.इन पैसो से हम उनके लिए दीए तेल और कुछ पटाखे खरीदे .ताकि उनके बच्चे भी खुशी खुशी दीवाली मना सके, कुछ देर तो बच्चे मायुस हुए .फिर सब मान गए. बाल पंचायत अब नइ तरह से दीवाली मनाने पर राजी हो गइ.





