– चंद्रकला गुप्ता
एक शाम, मैं अपने कमरे में बैठी थी कि, मेरी दो पोती जो कि एक 7 साल की है और दूसरी 14 साल की हैं। दोनों जिद करने लगी कि दादी मुझे एक अच्छी कहानी सुननी है। तभी मुझे अपनी दादी की एक कहानी याद आई। वही कहानी आप सभी को सुनाती हूं। मैं कोई लेखिका तो हूं नहीं, जो कहानी मेरी दादी ने मुझे सुनाई वहीं मैंने बच्चों को सुना दिया। एक राजा अपनी रानियों के साथ रोज अपने झरोखे से अपने नगर को देखा करता था। नगर के कुछ लोग उसे कुछ भेंट दिया करते थे।
भेंट देने के लिए एक फकीर भी आया करता था। वह फकीर रोज एक जंगली फल देता था। राजा सोचता था कि, फकीर के पास कुछ और देने के लिए नहीं हो सकता था। राजा उस फल को हर रोज स्वीकार कर, और पास बैठे अपने मंत्री को दें दिया करता था। यह क्रम बहुत दिनों तक चला।
एक दिन राजा का पालतू बंदर उसके पास बैठा था, राजा ने वह फल उस बंदर को दे दिया। बंदर ने फल को जैसे काटा, उसके मुंह से एक बड़ा हीरा गिर आया जो उस फल के अंदर छिपा हुआ था। राजा यह देख कर चौक उठा, उसने इतना बड़ा हीरा कभी देखा भी नहीं था। राजा ने उस मंत्री से पूछा ,”वह बाकी के फल कहां गए?”
मंत्री ने सोचा और तुरंत जवाब दिया “महाराज, वह सुरक्षित है।” तब मंत्री ने सोचा यह तो राजा की बात थी उसे संभाल कर रखना ही पड़ता है। मंत्री प्रायः उस पल को एक तहखाने में फेंकता जाता था, कई दिनों के बाद जब वह तहखाना खुला तो उससे बहुत बदबू आ रही थी।
सारे फल सड़ चुके थे, लेकिन उन सभी फलों के बीच हीरे चमक रहे थे। राजा ने फकीर को भरी सभा में बुलवाया, और पूछा “हे फकीर, इसके पीछे क्या राज़ है? आप मुझे यह जंगली पर हर रोज क्यों दिया करते थे?”
राजा ने फकीर से कहा,”झरोखे से रोज मैं अपने नगर सुंदर फूलों को देखा करता था।”
उस फकीर ने कहा, “हे राजन, होश ना हो तो जिंदगी ऐसे ही चुक जाती है।”
अब राजा सोचने लगा कि फकीर ने क्या बात कही? काफी देर सोचने के बाद वह यह सब घटनाओं का कारण समझ गया।
फिर अफसोस में उसने कहा,”मैंने तो अपनी जिंदगी यूं ही गवा दी! बस अब और नहीं।”
उसके बाद उसने निश्चय किया कि अब वह अपने जिंदगी में अच्छे काम करेगा। उसके बाद से वह अपने गुरु की शरण में जाकर, गुरु की सेवा और लोगों की भलाई में ध्यान देते हुए अपनी जिंदगी सुख और शांति से बिताने लगा। दोस्तों, कल हमारे पास हैं इस भ्रम में मत रहे। हर पल को जीएं। आशा करती हूं कि यह कहानी आप सबको पसंद आई होगा।