Saturday, October 25, 2025
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जिन्दगी का स्वाद बता गये अबकी बार मोदी सरकार का नारा देने वाले पीयूष पांडे

मुम्बई । विज्ञापन जगत की सादगी भरी भाषा को आम जनमानस तक पहुंचाने वाले प्रसिद्ध एड गुरु पीयूष पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे। 24 अक्तूबर को 70 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली। चार दशकों से अधिक समय तक उन्होंने भारतीय विज्ञापन उद्योग को नई दिशा दी। उनके बनाए विज्ञापनों के साथ एक पूरी पीढ़ी बड़ी हुई। चाहे वह कैडबरी का भावनाओं से भरा विज्ञापन हो, फेविकोल का मजबूत जोड़ दिखाने वाला दृश्य या लूना मोपेड की यादें ताजा करने वाली झलक, हर एक रचना ने दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद पीयूष पांडे ने पेशेवर जीवन की शुरुआत एक चाय कंपनी में बतौर टी टेस्टर की थी, जहां उनके मित्र और क्रिकेटर अरुण लाल पहले से कार्यरत थे। वर्ष 1982 में उन्होंने ओगिल्वी नामक विज्ञापन एजेंसी में ग्राहक सेवा कार्यकारी के रूप में कदम रखा। रचनात्मकता और भाषा पर असाधारण पकड़ के दम पर वे धीरे-धीरे ऊंचाइयां छूते गए और अंततः कंपनी के मुख्य रचनात्मक अधिकारी और कार्यकारी अध्यक्ष बने। राजस्थान के जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे ऐसे परिवार से थे जहां साहित्य जीवन का हिस्सा था। उनके माता-पिता दोनों ही हिंदी साहित्य के शिक्षक थे। घर का यही साहित्यिक वातावरण और शुद्ध हिंदी का अभ्यास उनके भीतर भाषा के प्रति गहरी समझ लेकर आया। बाद के वर्षों में यही भाषा उनके विज्ञापनों की आत्मा बनी।  उनकी लेखनी जितनी प्रभावशाली थी, उनकी आवाज भी उतनी ही सशक्त थी। उनकी बहन, जानी-मानी गायिका इला अरुण, जयपुर में विविध भारती के लिए रेडियो जिंगल्स बनाया करती थीं, जिनमें पीयूष अपनी आवाज दिया करते थे और उस वक्त उन्हें इसके बदले मात्र 50 रुपये मिलते थे। जब भारतीय विज्ञापन पश्चिमी शैली की नकल में उलझे हुए थे, तब पीयूष पांडे ने स्थानीयता और आम आदमी की भाषा को केंद्र में रखा। उन्होंने छोटे शहरों की संवेदनाओं, आम जन के हास्य और सरलता को विज्ञापनों में पिरोया। उनके बनाए कई विज्ञापन लोगों की जबान पर चढ़ गए, जैसे-

  • “कुछ खास है” (कैडबरी)
  • “मजबूत जोड़” (फेविकोल)
  • “हर घर कुछ कहता है” (एशियन पेंट्स)
  • “दो बूंद जिंदगी की” (पोलियो जागरूकता अभियान)

सिर्फ विज्ञापन ही नहीं, फिल्मों में भी पीयूष पांडे ने अपनी छाप छोड़ी। वर्ष 2013 में रिलीज हुई सुजीत सरकार की फिल्म “मद्रास कैफे” में उन्होंने भारत सरकार के कैबिनेट सचिव की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म 80 के दशक के अंत में श्रीलंका के गृहयुद्ध और राजीव गांधी की हत्या की पृष्ठभूमि पर आधारित थी।  इसके अलावा, उन्होंने अपने भाई प्रसून पांडे के साथ मिलकर “भोपाल एक्सप्रेस” की पटकथा भी लिखी थी। महेश मथाई निर्देशित यह फिल्म 1984 की भोपाल गैस त्रासदी पर आधारित थी, जिसमें नसीरुद्दीन शाह, के.के. मेनन, जीनत अमान, विजय राज और नेत्रा रघुरामन जैसे कलाकारों ने यादगार अभिनय किया।

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