नयी दिल्ली : इसरो में 1994 में कथित जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व वैज्ञानिक नम्बी नारायण को राहत दी। अदालत ने कहा कि नम्बी नारायण को गिरफ्तार किया जाना गैरजरूरी था, उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने नम्बी नारायण को बरी कर दिया था। कांग्रेस ने इस मामले में केरल के पूर्व मुख्यमंत्री के करुणाकरण को निशाना बनाया था। उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
नम्बी की गिरफ्तारी को सीबीआई ने गैरकानूनी करार दिया था : इस मामले में आरोप लगाए गए थे कि इसरो के दो वैज्ञानिकों समेत 6 लोगों ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के गोपनीय दस्तावेज विदेशों में भेजे थे। पहले पुलिस ने जांच की और फिर बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई जाँच में सामने आया था कि किसी तरह की जासूसी नहीं हुई थी। सीबीआई ने अपनी जाँच में केरल के पूर्व डीजीपी सीबी मैथ्यूज और दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को नम्बी की गैरकानूनी गिरफ्तारी का जिम्मेदार ठहराया था। नम्बी ने इन अधिकारियों के खिलाफ याचिका दायर की थी। लेकिन, केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद नम्बी ने सुप्रीम कोर्ट में गए।
केवल मुआवजा काफी नहीं – सुप्रीम कोर्ट: जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि 76 वर्षीय नम्बी नारायण का मामला मानसिक प्रताड़ना से जुड़ा है। केरल सरकार 8 हफ्तों के भीतर उन्हें 50 लाख रुपए मुआवजा दे। अदालत ने कहा कि केवल मुआवजा दिया जाना ही पूर्ण न्याय नहीं है। बेंच ने इस मामले में केरल पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया। इसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस डीके जैन करेंगे।