जानें उन महिलाओं को जिन्होंने लड़ी बराबरी की लड़ाई

दुनिया में सबसे अधिक महिलाओं की आबादी वाला भारत दूसरा देश है
संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 15 महिलाएं थीं

भारत ने औपचारिक रूप से 26 नवंबर 1949 को ही संविधान को अपनाया था। हालांकि, इसे लागू 26 जनवरी, 1950 को किया गया था। देश के संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर को सभी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि संविधान को मूल रूप देने वाली समिति के 389 सदस्यों में 15 महिलाएं भी शामिल थीं, जिन्होंने दुनिया के सबसे लंबे लिखित संविधान और समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। महिलाओं के हक में मजबूती से आवाज उठाई। जानें उन महिलाओं और उनके योगदान के बारे में…
सुचेता कृपलानी: पहली महिला मुख्यमंत्री
आजादी के मतवालों में सुचेता कृपलानी का नाम भी शामिल है। 25 जून, 1908 को हरियाणा के अंबाला में जन्मीं सुचेता को विशेष रूप से 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के लिए याद किया जाता है। आजादी के बाद वे सक्रिय राजनीति में आ गईं। पहले लोकसभा और फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीते। साल 1963 में प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। सुचेता कृपलानी आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं।

राजकुमारी अमृत कौर: एम्स बनवाने वाली स्वास्थ्य मंत्री
आजाद भारत की पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री और महिला अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाली राजकुमारी अमृत कौर भी संविधान बनाने वाली सभा की सदस्य थीं। अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी, 1887 को मौजूदा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ था। वे ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई कर साल 1918 में स्वदेस लौटीं। स्वतंत्रा संग्राम में अहम योगदान देने वाली कौर ने महात्मा गांधी की सेक्रेटरी के तौर पर 16 साल तक काम किया। राजकुमारी अमृत कौर ने स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की नींव रखी। दिल्ली में लेडी इरविन कॉलेज बनवाया। इंडियन लेप्रसी एसोसिएशन, चाइल्ड वेलफेयर काउंसिल और इंटरनेशन रेडक्रास सोसायटी आदि संस्थाओं की भारत में शुरुआत करने के लिए भी कौर को याद किया जाता है।

विजय लक्ष्मी पंडित: यूएन जनरल असेंबली की पहली महिला अध्यक्ष
पं. जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित की बहन का जन्म 18 अगस्त, 1900 को प्रयागराज में हुआ था। उन्होंने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया। साल 1932-1933, 1940 और 1942-1943 में जेल गईं। संविधान सभा की सदस्य के तौर पर औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और अपनी बातें मनवाई भीं। विजय के राजनीतिक सफर की शुरुआत इलाहाबाद नगर निगम के चुनाव से हुई थी। आजादी के बाद वे रूस, अमेरिका और मैक्सिको में भारत की राजदूत रहीं। इसके बाद, साल 1953 में यूएन जनरल असेंबली की पहली महिला अध्यक्ष बनीं और आठवें सत्र की अध्यक्षता भी की।

अम्मू स्वामीनाथन: संविधान सभा में मद्रास की प्रतिनिधि
अम्मू स्वामीनाथन एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं, जिनका जन्म 22 अप्रैल, 1894 में केरल के पालघाट में हुआ था। वे 13 भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई। 14 साल की उम्र में उनकी शादी उनसे 20 साल बड़े डॉ. सुब्रमा स्वामीनाथन से हुआ था। पति ने घर में ट्यूटर रखकर उन्हें पढ़ाया। उसके बाद वे अंग्रेजी बोलने लगीं और सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगीं। कुछ वक्त बाद वे अम्मू आंदोलन में ​सक्रिय हुईं। साल 1946 में वे संविधान सभा में मद्रास की प्रतिनिधि थीं। 24 नवंबर, 1949 को डॉ. भीम राव अंबेडकर की ओर से तैयार किए संविधान प्रारुप पर चर्चा के दौरान अम्मू ने अपने भाषण में कहा था, ”भारत के बारे में दुनिया वालों का कहना है कि भारत ने महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिए हैं, लेकिन अब हम कह सकते हैं कि हम भारतीयों ने जब अपने संविधान का निर्माण किया, तब हर नागरिक के साथ महिलाओं को भी समान अधिकार दिए हैं।”

सरोजिनी नायडू: पहली महिला राज्यपाल
देश की पहली महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू का जन्म 23 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था। नायडू ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। सरोजिनी नायडू ने संविधान निर्माण में भी अहम योगदान दिया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाली थी।

कमला चौधरी: कहानियों में उठाई महिलाओं की आवाज
कमला चौधरी का जन्म 22 फरवरी, 1908 को लखनऊ के एक संपन्न परिवार में हुआ था। इसके बावजूद शिक्षा के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। कमला साल 1930 में गांधी से जुड़ी और नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रियता से हिस्सा लिया। 50वें सत्र में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष थी। 1970 के दशक में लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गई थी। कमला चौधरी लेखिका थीं, उन्होंने अपनी कहानियों के जरिये महिलाओं को समाज में आगे लाने का काम किया था।
बेगम एजाज रसूल: सभा की इकलौती मुस्लिम सदस्य
बेगम एजाज रसूल का जन्म 2 अप्रैल 1909 को पंजाब के संगरूर जिले के एक राजसी परिवार में हुआ था। उन्होंने जमींदार नवाब एजाज रसूल से शादी की थी। वह अपने पति के साथ अल्पसंख्यक समुदाय की महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ बनकर उभरीं और मुस्लिम लीग की सदस्य भी थीं। बेगम एजाज संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम सदस्य थीं। साल 1950 में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गईं। 1952 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं।

लीला रॉय: हिंदू कोड बिल की पैरवी की
संविधान सभा की सदस्य लीला रॉय का जन्म असम के गोलपाड़ा जिले में 2 अक्तूबर, 1900 को हुआ था। साल 1923 में दीपाली संघ और स्कूलों की स्थापना कर देश भर से चर्चा बटोरी। साल 1937 में वह कांग्रेस में शामिल हो गईं। खास बात यह रही कि लीला को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बनाई महिला समिति में सदस्य बनाया गया था। 1946 में लीला रॉय संविधान सभा में शामिल हुईं और बहस में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने हिंदू कोड बिल के तहत महिलाओं को संपत्ति का अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता जैसे मामलों की पैरवी की थी।

हंसा मेहता: यूएन के यूनिवर्सल डिक्लेरेशन में करवाया संशोधन
संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली हंसा जीवराज मेहता का जन्म 3 जुलाई, 1887 को बड़ौदा में हुआ था। वह बड़ौदा के दीवान नंदशंकर मेहता की बेटी थीं। साल 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं। बाद में उन्हें संविधान सभा का सदस्य बनाया गया था। हंसा को यूएन के यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट में ‘सभी पुरुष स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं’ को संशोधित करवाकर ‘सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं’ करवाने के लिए भी जाना जाता है।

रेणुका रे: बंगाल में बनीं महिलाओं की आवाज
संविधान सभा की सदस्य रेणुका रे आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सदस्य चारुलता मुखर्जी की बेटी थीं। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की। साल 1934 में ऑल इंडिया वुमन्स कांग्रेस की कानूनी सचिव के रूप में उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता’ नामक एक दस्तावेज प्रस्तुत किया। रेणुका रे परिश्चम बंगाल विधानसभा की सदस्य और मंत्री रहीं। उन्होंने ही बंगाल में अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद का गठन किया था।

दुर्गाबाई देशमुख: कानूनी पहलुओं में दिया विशेष योगदान
12 साल की उम्र से ही असहयोग आंदोलन से जुड़ने वाली दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई, 1909 को आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में हुआ था। दुर्गाबाई ने देश को आजाद कराने के साथ ही समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए भी लड़ाई लड़ी। दुर्गाबाई नमक सत्याग्रह का भी हिस्सा बनीं। वे वकील थीं। संविधान के कानूनी पहलुओं में उनका विशेष योगदान रहा। दक्षिणी भारत में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बालिका हिंदी पाठशालाएं शुरू कीं। आंध्र महिला सभा की स्थापना की। आजादी के बाद दुर्गाबाई चुनकर संसद पहुंचीं।

दक्षिणानी वेलायुधन: सभी की सबसे युवा सदस्य और इकलौती दलित महिला
संविधान सभा की सबसे युवा सदस्य दक्षिणानी वेलायुधन का जन्म 4 जुलाई, 1912 में कोच्चि में हुआ था। वे संविधान सभा की एकमात्र दलित महिला थीं। संविधान सभा की पहली बैठक में वेलायुधन ने कहा था, ‘संविधान का कार्य इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग भविष्य में किस तरह का जीवन जिएंगे। मैं आशा करती हूं कि समय के साथ ऐसा कोई समुदाय इस देश में न बचे जिसे अछूत कहकर बुलाया जाए।’

पूर्णिमा बनर्जी: उठाईं किसानों और ग्रामीणों की समस्याएं
संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की सचिव थी। पूर्णिमा यूपी में महिलाओं के उस समूह में शामिल थीं, जो आजादी की लड़ाई में सबसे आगे थीं। उन्हें सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भागीदारी के लिए गिरफ्तार किया गया था। वे किसान सभाओं, ट्रेड यूनियनों की व्यवस्था और ग्रामीणों की समस्या से जुड़े मुद्दे उठाती थीं।

एनी मस्कारीन: केरल की पहली महिला सांसद
संविधान सभा की सदस्य और स्वतंत्रता सेनानी एनी मस्कारीन का जन्म 6 जून, 1902 को ​केरल के तिरुवनंतपुरम के एक कैथोलिक परिवार में हुआ था। एनी त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल होने वाली पहली महिला थीं। राजनीतिज्ञ गति​विधियों के चलते उन्हें साल 1939 से 1947 के बीच कई बार जेल में डाला गया। साल 1951 के आम चुनावों में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गईं। वह केरल की पहली महिला सांसद थीं।

मालती चौधरी: नमक सत्याग्रह ​में लिया हिस्सा
संविधान सभा की सदस्य मालती चौधरी का जन्म 26 जुलाई, 1904 को पूर्वी बंगाल में हुआ था, जो अब बांग्लादेश है। वे ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नाबकृष्ण चौधरी की पत्नी थीं। 16 साल की उम्र में मालती को शांति​ निकेतन भेजा गया, जहां उन्होंने विश्व भारती में दाखिला लिया। मालती ने नमक सत्याग्रह में भाग लिया।
(साभार – दैनिक भास्कर)

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