जन औषधि स्टोर में दवाएं मिलती हैं 90 प्रतिशत तक सस्ती
नयी दिल्ली । सस्ता और महंगा का खेल दवाओं के बाजार में भी स्पष्ट दिखता है। आमतौर पर ब्रांडेड दवाएं (पेटेंटेड दवाएं) महंगी होती हैं जबकि जेनेरिक दवाएं सस्ती। कई मामलों में तो जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड के मुकाबले 90 फीसदी तक सस्ती होती हैं। प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में जेनेरिक दवाएं ही होती हैं। और, इनका दावा है कि जन औषधि स्टोर में दवाएं 90 फीसदी तक सस्ती हैं। जेनेरिक दवाएं सस्ती होने के कारण लोग उसकी क्वालिटी और उसके पावर पर शक करने लगते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को महंगी दवाएं लिख दीजिए तो वह खुशी-खुशी इसे ले लेगा। लेकिन यदि सस्ती दवाएं लिखिए तो फिर उन्हें लगता है कि डॉक्टर साहब ने ठीक से देखा नहीं। उनका कहना है कि लोगों को जेनेरिक दवाओं की सच्चाई पता नहीं होती है। हम आपको बता रहे हैं इस बारे में सब कुछ..
क्या होती है जेनेरिक दवा?
फार्मेसी बिजनस में जेनेरिक दवाएं (Generic Medicine) उन दवाओं को कहा जाता है जिनका कोई अपना ब्रांड नाम नहीं होता है। वह अपने सॉल्ट नेम से मार्केट में बेची और पहचानी जाती है। जेनेरिक दवा बनाने वाली कुछ कंपनियों ने अपना ब्रांड नाम भी डेवलप कर लिया हे। तब भी ये दवाएं काफी सस्ते होते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये जेनेरिक दवाओं की श्रेणी में आते हैं। सरकार भी जेनेरिक दवाओं को प्रोमोट कर रही है। प्रधानमंत्री जन औषधी परियोजना इसी की कड़ी है। इस परियोजना के तहत देश भर में जेनेरिक दवाओं के स्टोर खोले जा रहे हैं।
क्या जेनेरिक दवाओं का असर कम होता है?
जेनरिक दवाओं का असर भी ब्रांडेड दवाओं के समान ही होता है। क्योंकि इन दवाओं में भी वही सॉल्ट होता है, जो ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं में होता है। दरअसल जब ब्रांडेड दवाओं का सॉल्ट मिश्रण के फार्मूले और उसके प्रोडक्शन के लिए मिले एकाधिकार की अवधि समाप्त हो जाती है तब वह फार्मूला सार्वजनिक हो जाता है। उन्ही फार्मूले और सॉल्ट के उपयोग से जेनरिक दवाईयां बननी शुरू हो जाती है। यदि इसका निर्माण उसी स्टेंडर्ड से हुआ है तो क्वालिटी में यह कहीं भी ब्रांडेड दवाओं से कमतर नहीं होता है।
जेनेरिक दवाएं सस्ती क्यों होती हैं?
जानकारों का कहना है कि जेनेरिक दवाओं के सस्ती होने के कई कारण हैं। एक तो इसके रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कंपनी ने कोई खर्च नहीं किया है। किसी भी दवा को बनाने में सबसे बड़ा खर्च आरएंडडी का ही होता है। यह काम दवा को खोजने वाली कंपनी कर चुकी है। इसके प्रचार प्रसार के लिए भी कोई खर्च नहीं करना होता है। इन दवाओं की पैकेजिंग पर कोई खास खर्च नहीं किया जाता है। इसका प्रोडक्शन भी भारी पैमाने पर होता है। इसलिए मास प्रोडक्शन का लाभ मिलता है।
जेनेरिक और ब्रांडेड (पेटेंटेड दवाईयों) में क्या अंतर है?
जेनेरिक दवाएं, पेटेंटेड या ब्रांडेड दवाओं की तरह ही होती हैं। कई मामलों में देखा गया है कि ब्रांडेड कंपनियों का भी एपीआई या रॉ मैटेरियल वहीं से आया है जहां से जेनेरिक दवाओं का। जेनेरिक दवाओं को अगर मूल दवाओं की तरह ही एक समान खुराक में, उतनी ही मात्रा और समान तरीके से लिया जाए तो उनका असर भी पेटेंट या ब्रांडेड दवा की तरह ही होगा। जेनरिक दवाओं का जैसे मूल दवाओं की तरह सकारात्मक असर होता है वैसे ही समान रूप से नकारात्मक असर भी समान रूप से हो सकता है। जेनरिक और ब्रांड नेम वाली दवाईयों में मुख्य रूप से ब्रांडिंग, पैकेजिंग, स्वाद और रंगों का अंतर होता है। इनकी मार्केटिंग स्ट्रेटजी में भी अंतर है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दवाईयों की कीमतों में भी बहुत अंतर होता है। आखिर ब्रांड की तो कीमत चुकानी ही होगी।
जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं को कैसे पहचानेंगे?
जेनेरिक दवाओं का अक्सर मूल दवाओं (पेटेंटेड दवाओं) के जैसा या अलग नाम होता है। केमिस्ट जेनेरिक दवाओं में प्रयोग होने वाले सॉल्ट्स की पूरी जानकारी रखते हैं और वे ग्राहकों को इसके बारे में बता भी सकते हैं। दवाई का नाम इनकी पहचान के लिए महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक है। इसी तरह जेनेरिक दवाईयों की पहचान के लिए इंटरनेट पर सॉल्ट नेम के माध्यम से खोज की जा सकती है। इसके साथ ही जेनरिक दवाओं की कीमतें ब्रांडेड नाम वाली दवाओं की तुलना में बेहद कम होती हैं और उनका असर उतना ही होता है।
प्रधानमंत्री जन औषधि योजना की दवाएं सस्ती क्यों होती हैं?
प्रधानमंत्री जन औषधि योजना की दवाएं जेनेरिक ही होती हैं। उसकी पैकिंग साधारण होती है। इसके प्रचार प्रसार पर भी ज्यादा खर्च नहीं होता है। सबसे बड़ी बात कि इस योजना से जुड़े दुकानदारों को दवाओं की बिक्री पर मार्जिन भी कम होता है। इसलिए ग्राहकों के लिए जन औषधि स्टोर की दवाएं सस्ती पड़ती है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)