कोलकाता : 11 और 12 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। 11 को शैव और 12 को वैष्णव जन्माष्टमी मनाएंगे। भगवान कृष्ण के कई नाम हैं। लेकिन, कुछ नाम ऐसे हैं, जिनके पीछे कुछ कहानी, किस्से या कोई अलग ही महत्व है। ऐसे नामों के अलग से जाप का भी विधान शास्त्रों में बताया गया है। श्रीमद् भागवत, पद्मपुराण, कूर्म पुराण, गर्ग संहिता और ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान कृष्ण के नामों की महिमा बताई गई है।
अलग-अलग ग्रंथों में नामों की अलग व्याख्या भी है। जैसे, भागवत में कृष्ण शब्द की व्याख्या काले रंग से है, लेकिन साथ ही कृष्ण शब्द को मोक्ष देने वाला भी कहा गया है। महाभारत में दो कृष्ण हैं, एक भगवान कृष्ण, दूसरे महाभारत के रचनाकार कृष्ण द्वैपायन व्यास यानी वेद व्यास। वेद व्यास काले थे और द्वीप पर जन्मे थे। सो, उनका नाम कृष्ण द्वैपायन पड़ा, एक वेद को चार भागों में बांटने के कारण उनका नाम वेद व्यास पड़ा।ऐसे ही भगवान कृष्ण के कई नाम उपलब्धियों और उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं के कारण पड़े।
मुरारी
महर्षि कश्यप और दिति का एक राक्षस पुत्र था। उसका नाम था मुरा। मुरा ने अपने बल से स्वर्ग पर विजय पा ली। देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया। तब इंद्र ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की। भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने युद्ध में मुरा का वध कर दिया। मुरा दैत्य के अरि यानी शत्रु होने के कारण भगवान का एक नाम मुरारी पड़ गया।
मधुसूदन
मधु नाम के दैत्य का वध करने से भगवान का एक नाम मधुसूदन पड़ा। इस राक्षस के कारण भी देवता और मनुष्य काफी परेशान थे। भागवत में मधु नाम के दो से तीन राक्षसों का जिक्र मिलता है, जो अलग-अलग काल में हुए हैं। इनमें से एक का वध कृष्ण ने किया था।
केशव
ये नाम भगवान के सुंदर केशों के कारण है। भागवत और गर्ग संहिता में भगवान के रूप का वर्णन मिलता है। गोपियां, सखियां और बृजवासी कई जगह भगवान कृष्ण को केशव के नाम से संबोधित करते हैं।
गोवर्धनधारी-गिरधारी
इंद्र की पूजा रोककर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने और फिर इंद्र के बृज मंडल पर भारी बारिश करने पर लोगों को बचाने के लिए अपने सीधे हाथ की सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाने के कारण पड़ गया। भगवान को दोनों नाम प्रिय है। वृंदावन में गिरधारी, गिरिराजधारी नाम भगवान के लिए काफी प्रयोग किया जाता है।
माधव
इस नाम के पीछे दो कहानियां हैं। एक तो वसंत ऋतु के देवता या ऋतुओं में वसंत के समान श्रेष्ठ होने के कारण कृष्ण का नाम माधव पड़ा है, क्योंकि वसंत का एक नाम मधु भी है। दूसरी कहानी, त्रेतायुग के राक्षस मधु से जुड़ी है, जो मथुरा का राजा था। इसी मधु का बड़ा पुत्र यादवराज था, जिसके वंश में बाद में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ। मधु के वंश में जन्म लेने के कारण भी इन्हें माधव कहते हैं।
मुरलीधर-वंशीधर
बांसुरी धारण करने के कारण नंदबाबा ने कृष्ण को ये नाम दिया था। नंदबाबा ने नन्हें कृष्ण को उपहार में बांसुरी दी थी। जो हमेशा उनकी पहचान रही। कृष्ण के व्यक्तित्व से बांसुरी इस तरह जुड़ी है कि उसके बिना कृष्ण की छवि की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
अच्युत
कृष्ण अपने व्यक्तित्व में अटल और अडिग हैं। उनकी छवि एक ऐसे देवता की है जो अविचल भक्ति प्रदान करते हैं। वे ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो कई रूपों में एक साथ पूजे जाते हैं। पुत्र, मित्र, भाई, भगवान, पति, पुरूष, योद्धा, सलाहकार और गुरु सहित कई तरह से लोग कृष्ण की पूजा करते हैं। अपने हर रूप में वे अटल-अडिग हैं। इसीलिए उन्हें अच्युत कहा गया है।
(साभार – दैनिक भास्कर)