जलेबी प्राचीन समय से ही भारतीयों की सबसे पसंदीदा मिठाइयों में से एक रही है। यह भारत की मिठाई है और यहीं से पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुई। जलेबी को प्राचीन भारत में कर्णशष्कुलिका या शष्कुली कहा जाता था और कहते हैं कि यह मिष्ठान भगवान श्रीराम को भी बहुत पसंद है। शायद यही कारण है कि हर शुभ अवसर पर यह मिष्ठान बनाया जाता था। फिर वह वह श्रीराम का जन्मोत्सव हो या दशहरे का दिन या फिर दीपावली। जलेबी को कुण्डलिनी भी कहते हैं।
अगर बात भारतीय इतिहास की हो तो मराठा ब्राह्मण पंडित रघुनाथ सूरी ने 17वीं शताब्दी में भोजनकुतूहल नामक पुस्तक लिखी थी, जिसमें भोजन से संबंधित सभी जानकारियां दी गई है और यह किताब पाक कला और आयुर्वेद का एक आदर्श मिश्रण मानी जाती है। इस पुस्तक में भी श्रीरामजन्म के समय प्रजा में जलेबियां बंटवाने का जिक्र किया गया है. कई जगह जलेबी को शष्कुली’ ही लिखा गया है।
भावप्रकाश प्राचीन भारतीय औषधि शास्त्र के अंतिम आचार्य कहे जाने वाले भाव मिश्र द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश के कुछ श्लोकों में जलेबी को बनाने की विधि और उसके फायदों के बारे में बताया गया है। भावप्रकाश के अनुसार, “जलेबी कुण्डलिनी को जगाने वाली, पुष्टि, कांति और बत देने वाली धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक और इंद्रिय सुख और रसेंद्रिय को तृप्त करने वाली होती है।”
कुण्डलिनी
नूतनं घटमानीय तस्यान्तः कुशलो जनः प्रस्थार्थपरिमाणेन दघ्नाऽम्लेन प्रलेपयेत्॥१३०|| दिप्रस्थां समितां तत्र दध्याम्लं प्रस्थसम्मितम् पुतमराव घोलवित्वा घंटे क्षिपेत् ॥ १३८|| आतपे स्यापयेत्तावद् यावद्याति तदम्लताम्
परिभ्राम्य परिभ्राम्य सुसन्तप्ते घृते क्षिपेत्
पुनः पुनस्तदावृत्त्या विदध्यान्मण्डलाकृतिह९४०|| कर्पूरादिसुगन्धे च स्नापयित्वोद्धरेत्ततः॥११|| एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्सिबलप्रदा ततस्तत्प्रक्षिपेत्पात्रे सच्छिदे भाजने तु तत्३९३५|| धातुवृद्धिकरी वृष्या रुच्या चेन्द्रियतर्पणी॥९४२॥
तो सुपक्वां घृतान्त्रीत्वा सितापाके तनुद्रवे
नयापटाकर उसके भीतर ॥ १३२ ॥ आपसेर खट्टा दहीसे लेप करावे उसमें दोसेर मैदा ओर एकसेर सट्टा दही ॥ १२२ ॥ पावभर प्रत इनकों पोलकर हमें इसकों पूपमें रखे तस्तक जबतक सट्टापन इसमें न आये ॥ १२४ ॥ अ नन्तर छेकवाले बरतन में उसको दाल उसको प्रमारकर जलते वे पीयें
लेखक शरदचंद्र पेंढारकर ने भी जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम ‘कुण्डलिका बताया है। संस्कृत में लिखी ‘गुण्यगुणबोधिनी किताब में भी जलेबी बनाने की विधि बताई गई है। जैन धर्म के ग्रन्थ कर्णयकथा’ में जलेबी भगवान महावीर को नेवेद्य लगाने वाली मिठाई बताया गया है।
वहीं, तुर्की के मोहम्मद बिन हसन की तरफ से अरबी भाषा में लिखी गई ‘किताब-अल-तबिक में जलेबी को जलाबिया लिखा गया है। हिंदी में जलेबी को जलवल्लिका’ कहा जाता है।लगभग हर जगह के लोग दूध, दही या रबड़ी के साथ रसभरी, गोल गोल घुमावदार जलेबियां बड़े चाव से खाते हैं।
जलेबी खाने के फायदे
क्या मीठा खाने के भी फायदे हो सकते हैं? हाँ.. हो सकते हैं, लेकिन तभी जब गीठा संयम में और सही तरीके से खाया जाए, और फिर हर तरह की मिठाई तो रोहत के लिए फायदेमंद नहीं होती, लेकिन पुराने समय में जलेबियों को बनाने का जो तरीका बताया गया है, वह सेहत के लिए अच्छा माना गया है. कई प्राचीन किताबों में जलेबी को औषधीय मिठाई का दर्जा दिया गया है। इसे खाने के कई तरह के शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक फायदे बताए गए है । जलेबी खाने के अध्यात्मिक फायदे जलेबी (जल.एबी) शरीर में मौजूद जल के ऐब यानी दोष को दूर करती है। इसकी बनावट शरीर की कुण्डलिनी चक्र के जैसी होती है, अघोरी, संतों के अनुसार, जलेबी खाने से शरीर में अध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि और ऊर्जा का विकास होता है, जिससे स्वाधिष्ठान चक्र को जगाने में सहायता मिलती है। आज भी गाँवों में और शहरों में भी गरमागरम दूध-जलेबी का नाश्ता करना पसंद करते हैं। कहा जाता है कि शुद्ध घी में बनीं गरमागरम दूध-जलेबी का सेवन करने से जुकाम में आराम होता है। दूध या दही के साथ गर्म जलेबियां त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ को दूर करने में सहायक है।
जिन लोगों को सिरदर्द की समस्या रहती हो, वे सुबह गर्म जलेबियों का सेवन करें और तुरंत पानी न पीयें तो उनके सभी तरह के मानसिक दोष खत्म हो जाते हैं। सुबह जलेबियों का सेवन करने से पीलिया और पांडुरोगों में भी आराम होता है.गर्म जलेबियों को चर्म रोगों में भी फायदेमंद बताया गया है. पैरों की एड़ियां या बिवाई फटने की परेशानी में लगातार का दिनों तक जलेबियों का सेवन करने से आराम होता है।
हमारा परामर्श तो यह है कि मधुमेह या डायबिटीज के मरीज जलेबियों का सेवन न करें या डॉक्टर या सही जानकार की सलाह से ही करें। कई लोगों को लगता है कि जलेबी और इमरती एक ही मिठाई है, लेकिन ये सच नहीं है क्योंकि दोनों को बनाने की मूल सामग्री अलग है।
जलेबी बनाने में मैदे का प्रयोग होता है औए उसका स्वाद सिर्फ मीठा होता है। इमरती उड़द दाल के आटे से बनती है और ये भले ही मीठी लगती हो लेकिन इमरती का स्वाद जलेबी के स्वाद से कही ज्यादा अलग होता है। जलेबी करारी होती है और इमरती उरद दाल की वजह से उतनी करारी नही बनती है।
(साभार प्रिंसली डॉट कॉम और क्योरा डॉट कॉम)