चंदौली की कोठी पहाड़ी में मिला सम्राट अशोक काल का स्तूप

 पुरापाषाणिक औजार भी मिले

वाराणसी । बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल के मुताबिक सर्वेक्षण में चंदौली जिले में कई पुरास्थल मिल रहे हैं। कोठी पहाड़ी में सम्राट अशोक के काल का पाषाण स्तूप, भीखमपुर में बुद्ध व बोधिसत्व और दाउदपुर में पुरापाषाणिक औजार व शैलाश्रय मिले हैं।
यूपी के चंदौली जिले के तीन स्थानों पर पांच हजार से 50 हजार साल पुराने आदम जाति के साक्ष्य मिले हैं। खोदाई व खोज के दौरान कोठी पहाड़ी में सम्राट अशोक के काल का पाषाण स्तूप, भीखमपुर में बुद्ध व बोधिसत्व और दाउदपुर में पुरापाषाणिक औजार व शैलाश्रय मिले हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल के मुताबिक सर्वेक्षण में चंदौली जिले में कई पुरास्थल मिल रहे हैं। सर्वेक्षण में चंदौली जिले की चकिया तहसील के फिरोजपुर, भीखमपुर और दाउदपुर गांवों में पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से अनेक पुरास्थल मिले हैं।
उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप
इनमें फिरोजपुर ग्राम की कोठी पहाड़ी में मिला पाषाण स्तूप बेहद महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही यहां से बड़ी संख्या में पुरापाषाणिक औजार, मध्यपाषाण काल के उपकरण, मेगालिथिक समाधियां और चित्रित शैलाश्रय मिले हैं। इनका अनुमानित काल क्रम पांच हजार से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना जा रहा है।
शोध निर्देशक प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने बताया कि फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी पर मिला स्तूप उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप है। यह मौर्य सम्राट अशोक के समय का बना एक विलक्षण स्तूप है। इस प्रकार के पत्थर के स्तूप सांची और उसके आसपास के क्षेत्र में बहुतायत में मिलते हैं जो अपनी निर्माण शैली और कला सौंदर्य के लिए विख्यात हैं। प्रो. अहिरवार के मुताबिक उत्तर भारत में नये पाषाण स्तूप की खोज ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तर भारत में अब तक जितने भी स्तूप मिले हैं, वे सभी ईंट या मिट्टी के बने हैं।
शैलाश्रय में लाल रंग से बनाए आदि मानव
सर्वेक्षण के दौरान भीखमपुर गांव की पहाड़ी में भी प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिले हैं। इनमें आदि मानव द्वारा लाल रंग से बनाए गए कई चित्र और पूरी पहाड़ी के विभिन्न भागों में मगध शैली के उत्कीर्ण विशेष चिह्न मिहे हैं। ऐसे चिह्न मगध शैली के आहत सिक्कों में देखे जाते हैं। इस पहाड़ी की एक प्राकृतिक गुफा से बुद्ध मूर्ति और पहाड़ी की चोटी पर बने आधुनिक मंदिर में बोधिसत्व की प्रतिमा इस क्षेत्र के दीर्घकालीन इतिहास को बताती है। पहाड़ी पर स्थित पुराने भवनों के जमींदोज खंडहरों की बिखरी ईंटों से इसकी पुष्टि हो रही है कि ये प्रतिमाएं कुषाण काली की हैं।
पहाड़ी की तलहटी के ठीक नीचे एक विशाल टीला भी मिला है जहां पर कई तरह की पुरावस्तुएं बिखरी हैं। इसमें छठीं शताब्दी से लेकर पूर्व मध्यकालीन मृदभांड के टुकड़े, कृष्ण लोहित मृदभांड, कृष्ण लेपित मृदभांड, मोटे व पतले गढ़न के लाल मृदभांड और पत्थर के सिल-लोढ़े, चक्कियां, पत्थर के बटखरे मिले हैं। भीखमपुर की तरह फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी समीपवर्ती दाउदपुर की पहाड़ी में भी आदि मानव के निवास के लिए उपयुक्त दो चित्रित शैलाश्रय मिले हैं और मध्य पाषाण कालीन पत्थर के उपकरण मिले हैं।

 

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