Friday, July 18, 2025
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गुमनाम रह गयीं भारत की पहली महिला पहलवान हमीदा बानू

कुश्ती को तो खासतौर पर मर्दों का खेल समझा जाता था. आज भी जहां कई जगहों पर महिलाओं को पुरुषों से कम आंका जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में करीब 1924 में जन्मीं हमीदा बानू ने 1940-50 के दशक में साबित कर था कि महिलाएं भी कुछ कर सकती हैं। हमीदा बानू को भारत की पहली महिला पहलवान माना जाता हैय़ हमीदा बानू एक ऐसी महिला पहलवान थीं, जो मैदान में उतरती तो अच्छे-अच्छे पहलवान हाथ खड़े कर देते। न सिर्फ महिला पहलवान, बल्कि पुरुष पहलवानों के भी हमीदा बानू के सामने पसीने छूट जाते थे। उनका नाम देखकर ही बड़े-बड़े पहलवान कुश्ती मुकाबले से अपना नाम वापस ले लेते थे.
जब दो पुरुष पहलवानों को हराकर हमीदा बानू गुजरात के बड़ौदा में मुकाबले के लिए पहुंचीं, तो उनके सामने लड़ने वाले पहलवान ने पहले ही अपना नाम कटवा दिया और मैदान छोड़कर भाग गया। वह भारत की ऐसी पहली महिला पहलवान थीं, जिनके सामने इंटरनेशनल लेवल पर खेलने वाले बाबा पहलवान तक भी 2 मिनट नहीं टिक पाए थे। इसके बाद उन्होंने पहलवानी से संन्यास ले लिया था और ऐलान कर दिया था कि अब वह कोई कुश्ती नहीं लड़ेंगे। हमीदा बानू की तुलना अमेरिका की एक बेहद मशहूर पहलवान अमेजन से की जाती थी इसलिए उनका नाम भी ‘अलीगढ़ की अमेजन’ पड़ गया था। हमीदा बानू ने न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी अपना लोहा मनवाया था। उन्होंने अपनी जिंदगी में 300 से भी ज्यादा मुकाबलों में जीत हासिल की। इसमें महिला और पुरुष दोनों पहलवानों के साथ खेले गए मुकाबले शामिल हैं। साल 2024 में हमीदा बानू की याद में उनका गूगल डूडल तक बना था।
डरकर मैदान छोड़ देते थे पहलवान
जब शुरुआत में हमीदा मैदान में उतरतीं तो पुरुष पहलवान उनका मजाक बनाते थे। कई बार तो पुरुष पहलवान ये कहकर कि वह उनके साथ लड़ने के योग्य नहीं हैं। उनके साथ लड़ने से भी इनकार कर देते थे लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, हमीदा ने अपने आप को साबित कर दिया। फिर वह वक्त आया जब पुरुष पहलवान हमीदा बानू से डरकर मैदान छोड़ जाते थे।


एक ऐलान से मच गई थी हलचल
कुछ ही सालों में हमीदा बानू ने प्रसिद्धि हासिल कर ली।अलीगढ़ से लेकर पंजाब तक उनके नाम की चर्चा होने लगी। वह न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी कुश्ती मुकाबलों में भाग लेने लगीं। हमीदा बानू सबसे ज्यादा तब सुर्खियों में आईं,जब 1954 में उन्होंने एक ऐलान किया कि ‘जो भी मुझे कुश्ती में हरा देगा, मैं उससे शादी कर लूंगी…’ उनके इस ऐलान के बाद हलचल मच गई।
हमीदा बानू के ऐलान के बाद कई पुरुष पहलवान उनसे मुकाबला करने पहुंचे. लेकिन उनके सामने सबने घुटने टेक दिए। इसमें उनका पहला मुकाबला पटियाला के एक कुश्ती चैंपियन से हुआ और दूसरा कोलकाता के चैंपियन के साथ हुआ था लेकिन दोनों को ही उन्होंने पराजित कर दिया था। इसके बाद तीसरे मुकाबले के लिए वह गुजरात पहुंचीं जहां के बड़ौदा में उनका तीसरा मुकाबला एक जाने माने गामा पहलवान से होने वाला था।
हमीदा बानू और गामा पहलवान
हमीदा बानू और गामा पहलवान के मुकाबले को लेकर लोग खूब उत्सुक थे। पहली बार एक पुरुष और एक महिला पहलवान का इतने बड़े स्तर पर मुकाबला होने जा रहा था। इस मुकाबले के लिए किसी फिल्म की तरह पोस्टर छपे और फिल्म की तरह ही मुकाबले का प्रचार हुआ। हालांकि उस समय लोगों को ये बात हजम नहीं हो रही थी कि एक महिला एक पुरुष पहलवान को हरा सकती है।
गामा पहलवान और हमीदा बानू के मुकाबले के लिए कुश्ती का मैदान तैयार हो गया। मुकाबला देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। स्टेडियम बुरी तरह से भर गया. मुकाबला शुरू होने वाला था लेकिन इससे कुछ देर पहले ही गामा पहलवान ने अपना नाम मुकाबले से वापस ले लिया। इसके बाद अगले दिन खबरों में छपा कि गामा पहलवान ने हमीदा बानू से डरकर अपना नाम वापस ले लिया.
बाबा पहलवान को भी हरा दिया
इसके बाद उनके सामने बाबा पहलवान उतरे, लेकिन वह भी उनके सामने नहीं टिक पाए। हमीदा बानू ने बाबा पहलवान को भी 2 मिनट से कम समय में हरा दिया था। हमीदा ने बाबा पहलवान को महज 1 मिनट 34 सेकंड में ही हरा दिया था। इसके बाद बाबा पहलवान ने हमेशा के लिए कुश्ती से संन्यास ले लिया था और कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर दिया था।
हमीदा इतनी मशहूर हो गई थीं कि उनका रहन-सहन भी सुर्खियों में आने लगा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक हमीदा बिल्कुल पुरुष पहलवानों की तरह ही कुश्ती करती थीं. उनका वजन भी 105 किलो था और खानपान भी बहुत जबरदस्त था. वह रोज 5 किलो से ज्यादा दूध और 2 किलो से ज्यादा सूप के साथ 2 लीटर से ज्यादा फलों का जूस पीती थीं। इसके अलावा खाने में वह एक मुर्गा, एक किलो मटन और आधा किलो मक्खन के साथ 6 अंडे, एक किलो बादाम, 2 बड़ी-बड़ी रोटियां और 2 प्लेट बिरयानी खाती थीं. ये उनकी एक दिन की खुराक हुआ करती थी। उनकी लंबाई 5 फुट से ज्यादा थी।
हमीदा बानू पर बरसाए पत्थर
हमीदा बानू अपनी नींद के साथ भी कभी समझौता नहीं करती थीं. वह 9 घंटे की नींद लेती थीं और 6 घंटे एक्सरसाइज किया करती थीं. वह बहुत ताकतवर थीं। इसलिए पुरुष पहलवान भी उनके सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो जाते थे लेकिन ये बात उस दौर के लोगों को पसंद नहीं आती थी, जिसका उन्हें कई बार सामना भी करना पड़ा। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक एक बार जब महाराष्ट्र के कोल्हापुर में उन्होंने एक पुरुष पहलवान को कुश्ती में हराया तो कुश्ती के शौकीन लोगों ने उन पर पत्थर बरसा दिए थे। उनसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि एक महिला ने पुरुष पहलवान को कैसे हरा दिया।
वेरा चिस्टिलिन भी नहीं टिक पाईं
हमीदा बानू ने एक ऐसी महिला पहलवान को भी हराया था, जिन्हें ‘फिमेल बियर’ कहा जाता था। उनका मुकाबला रूस की प्रसिद्ध पहलवान वेरा चिस्टिलिन से भी हुआ लेकिन उन्हें भी हमीदा ने एक मिनट से भी कम समय में ही हरा दिया था। उन्होंने वेरा चिस्टिलिन को बहुत प्रभावित किया। वह उन्हें अपने साथ यूरोप ले जाना चाहती थीं। लेकिन ये उनके कोच और पति सलाम पहलवान को पसंद नहीं आया था। दोनों ने शादी कर ली और फिर मुंबई के नजदीक कल्याण में डेरी बिज़नेस शुरू किया। हालांकि हमीदा ने यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने की जिद नहीं छोड़ी। बीबीसी, हमीदा बानो के पोते फिरोज शेख के हवाले से लिखता है कि सलाम पहलवान ने हमीदा बानो की इतनी पिटाई की कि उनका हाथ टूट गया। पैर में भी गंभीर चोट आई. इसके बाद कई सालों तक वह लाठी के सहारे चलती रहीं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक हमीदा बानू के पोते बताते हैं कि दादी को रोकने के लिए सलाम पहलवान ने उन्हें खूब पीटा था। उन्होंने दादी को इतना मारा था कि उनके हाथ-पैर टूट गए थे। इसके बाद वह कई महीनों तक चल नहीं पाई थीं। ठीक होने के बाद भी वह कई दिनों तक डंडे के सहारे से ही चलती थीं।
गुमनामी में मौत
कुछ साल बाद सलाम पहलवान अलीगढ़ लौट आए और हमीदा बानो कल्याण में ही रहीं और अपना दूध का व्यवसाय करती रहीं। बाद के दिनों उन्होंने सड़क किनारे खाने का सामान भी बेचा। साल 1986 में उनकी गुमनामी में मौत हो गई। कहा जाता है कि यहीं से उनके करियर पर ब्रेक लग गया था और उसके बाद अखबारों में उनकी उपलब्धियां सिर्फ एक इतिहास बन गयी।
(स्रोत – न्यूज 18)

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