‘ठुमरी की रानी’ के नाम से प्रख्यात शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी का जन्म आज ही के दिन वर्ष 1929 में वाराणसी (तत्कालीन बनारस) के निकट एक गांव में हुआ था। यह वह दौर था, जब समाज महिलाओं को गायन व मंच पर प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देता था। यही कारण था कि गिरिजा देवी की मां और दादी को कभी भी उनका संगीत पर समय गंवाना पसंद नहीं था। लेकिन उनके संगीत प्रेमी पिता रामदेव राय ने समाज की परवाह किए बगैर हमेशा गिरिजा देवी का साथ दिया। अप्पा जी के नाम से मशहूर, गिरिजा देवी ने पांच वर्ष की आयु में ही संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया। उन्होंने ठुमरी, टप्पा, ख्याल सहित बनारस के आस-पास के क्षेत्रीय गायन जैसे चैती, होरी, बारामासा आदि का अभ्यास करने के बाद उन्हें अलग रंग दिया।
15 साल की उम्र में हुई शादी
वर्ष 1944 में गिरिजा की शादी व्यवसायी मधुसूदन जैन से होई। मधुसूदन की पहले भी एक बार शादी हो चुकी थी और वे गिरिजा से उम्र में बड़े भी थे। किंतु उन्होंने गिरिजा के पिता से वादा किया था कि वे शादी के बाद भी गिरिजा को गायन से नहीं रोकेंगे। सिर्फ इस शर्त की वजह से पिता ने गिरिजा के लिए मधुसूदन को चुना। एक साक्षात्कार में गिरिजा देवी बताती हैं कि शादी के बाद उन्होंने (मधुसूदन जैन) ने मुझे किसी भी बड़े घर या निजी महफिल में गाने नहीं दिया। हालांकि अपने वादे के मुताबिक घर पर ही मुझे संगीत सीखने और गाने की अनुमति दे दी। मेरे पहले गुरु का निधन हो गया था इसलिए उन्होंने एक दुसरे गुरु श्रीचंद मिश्रा से मुझे संगीत की शिक्षा दिलवाई।
1951 में पहली बार मंच पर गाया गाना
शादी के पांच साल बाद, वर्ष 1949 में गिरिजा देवी ने रेडियो पर गाना शुरू किया। 1951 में गिरिजा, बिहार राज्य में आयोजित आरा कॉन्फ्रेंस में मशहूर गायक पंडित ओंकारनाथ का गायन सुनने गई। किंतु कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही यह खबर आई की पंडित ओंकारनाथ की गाड़ी खराब होने की वजह से वह तय समय पर कार्यक्रम स्थल पर नहीं पहुंच पाएंगे। जब आयोजकों ने गिरिजा देवी को उनके स्थान पर गाने के लिए मंच पर आमंत्रित किया।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के सामने पेश किया ठुमरी गायन
इसके बाद गिरिजा देवी ने बनारस कांफ्रेंस में भी अपने गायन की प्रस्तुति दी। यहां उन्हें रविशंकर, अली अकबर भैया और विलायत खान साहब जैसे गायक ने सुना। रविशंकर को गिरिजा देवी का गायन इस कदर पसंद आया कि उन्होंने गिरिजा देवी को गाने के लिए दिल्ली बुला लिया। 1952 में गिरिजा देवी ने दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों के सामने ठुमरी गायन पेश किया।
पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण की मिली उपाधि
इसके बाद गिरिजा ने रेडियाे कार्यक्रम, स्टेज शो आदि किए। संगीत में गिरिजा के योगदान के लिए उन्हें 1972 में पद्मश्री और 1989 में पद्म भूषण की उपाधि मिली। गिरिजा अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अपना ज्यादातर समय कोलकाता में स्थित संगीत रिसर्च अकादमी में बिताती थी। वर्ष 2016 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। दिल का दौरा पड़ने से 24 अक्टूबर, 2017 को उनका निधन हो गया।
(साभार – अमर उजाला)