खूबसूरत देह…वक्ष…वजाइना….सर्जरी की चाह के बीच भटका सशक्तीकरण

अपराजिता फीचर्स डेस्क

औरतों को मजबूत बनाने और उनको आगे ले जाने की बात करना सच कहा जाये तो एक फैशन है। मार्च का महीना आते ही यह और भी तेज हो जाता है और अब जब महिला दिवस आ रहा है तो कई कम्पनियों के आकर्षक ऑफर और विज्ञापन उनका गुणगान करते दिखेंगे। सब कुछ होगा और एक बँधे दायरे के बीच जिसके बीच रहने की आदत औरतों को पड़ चुकी है और इस कदर पड़ चुकी हैं कि यही उनकी संजीवनी है और यही उनकी ताकत। एक खास बने – बनाये साँचे में फिट औरतों को उनकी देह के हिसाब से आँका जा रहा है और अब तो पुरुष भी कीर्तिमान तोड़ रहे हैं। सही है कि सजना – सँवरना औरतों को पसंद है और यह उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाता है मगर क्या यह उनका जीना – मरना भी तय करे…हमें यह होने देना चाहिए….क्या औरतों को उनकी सुन्दरता के बगैर स्वीकार नहीं किया जा सकता….।

पता है कि यह सवाल विचित्र है मगर इसका सीधा रिश्ता उस सशक्तीकरण से है जिसे आप औरतों तक पहुँचाना चाहते हैं। मैं ये पूछना चाहती हूँ कि किसी महिला को उसके मोटे होंठों और छोटे कद के साथ क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता है? दूसरा सवाल मेरा उससे भी विचित्र है क्योंकि जब शादी को आत्मा का बंधन कहा जाता है तो उसके लिए किसी औरत या किसी पुरुष को वह क्यों बन जाना पड़ता है जो वह है ही नहीं और न होना चाहता है। किसी लड़की को मंडप में जाने के लिए गहनों और कपड़ों का शोरूम बनना पड़े और किसी विमेन इम्पारमेंट की पार्टी में नकली मेकअप और कृत्रिम अँगों या सर्जरी के साथ जाना पड़े तो सशक्तीकरण की परिभाषा वहीं दम तोड़ देती है। औरतें खुद में एक बड़ा बाजार हैं या बाजार की जरूरत…और यह आज से नहीं हमेशा से हैं। आप कोई भी कहानी उठा लीजिए…किसी भी स्त्री की प्रशंसा का पहला वाक्य उसकी सुंदरता की तारीफ से ही शुरू होता है और उसी पर खत्म हो जाता है। अगर हिन्दी साहित्य की बात करें और इतिहास की बात करे तो औरतों की खूबसूरती के नाम पर कत्लेआम के तमाम किस्से मिल जायेंगे और इनमें से एक ने तो बवाल खड़ा कर दिया जब उस पर फिल्म बनी। औरतें कभी भी अपने लिए नहीं सजती दिखतीं थी….उसके पीछे हमेशा एक पुरुष जरूरी होता था और वह न रहे तो या तो स्त्री से जीने का अधिकार छीन लिया जाता था या फिर उसकी जिन्दगी से रंग छीन लिये जाते रहे..वह दौर कुछ और था…आप उसे सामंतवादी युग कह सकते हैं मगर आज जो खूबसूरती की अंधी दौड़ के नाम पर जो सनक चल रही है…उसे क्या कहेंगे।

शादी के बाजार में फिट होने के लिए लड़कियाँ ही नहीं लड़के भी खूब पापड़ बेलते हैं मगर लड़की की सुन्दरता में जरा भी कमी रह गयी तो उसका जीना उसके घरवाले हराम कर देते हैं। इसी बात का फायदा बाजार और सौंदर्य सामग्री बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियाँ उठा रही हैं। यहां तक कि प्लास्टिक सर्जरी कराने की प्रवृत्ति भी तेजी से पनप रही है। खतरनाक तरीके से क्रीम, दवाओं और सर्जरी का सहारा लिया जा रहा है और अब तो वजाइना की भी सर्जरी हो रही है और इन सबके बेतहाशा भागने वाली स्त्रियाँ ही हैं। वही स्त्रियाँ जो बड़ी – बड़ी जगहों पर महिलाओं को सशक्त बनाने की बातें करती हैं, वे दरअसल डरी हुई असुरक्षित स्त्रियाँ हैं। असुरक्षित और डरी हुई स्त्रियाँ कौन सा सशक्तीकरण लाने जा रही हैं…?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक चेतावनी में चेतावनी में कहा गया है कि क्रीम, लोशन, साबुन और आंख संबंधी सौंदर्य उत्पादों में मिला पारा उपयोगकर्ताओं के लिए हानिकारक है। ऐसे में स्वास्थ्य को लेकर कई परेशानियां पनप रही हैं। इन उत्पादों के इस्तेमाल से त्वचा पर चकत्ते, दाने पड़ना आम बात है। इनका असर आंखों सहित जिस्म के दूसरे कई हिस्सों पर भी पड़ रहा है और त्वचा कैंसर और एलर्जी जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। ज्यादातर साबुन और क्रीम में मौजूद हानिकारक तत्त्व त्वचा की प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर करते हैं। ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चेहरे पर निखार का दावा करने वाली कई बहुराष्ट्रीय और बड़े ब्रांडों की क्रीमों में पारा और लिपिस्टिक में क्रोमियम और निकिल जैसी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक धातुएं होती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आज गोरा करने के नाम पर बेचे जाने वाले ज्यादातर उत्पादों के दावे खोखले हैं। त्वचा पर ज्यादा प्रभाव खान-पान और सकारात्मक सोच से ही पड़ता है। इन उत्पादों में पारा के अलावा स्टेरॉयड, हाइड्रॉक्यूनोन जैसे हानिकारक रसायन मिले होते हैं। इनके प्रभाव से त्वचा कमजोर, ढीली और खुरदुरी हो जाती है।

अगर आप अपनी देह के साथ खुश नहीं हो सकते तो आपको खुद को सशक्त मानना छोड़ देना चाहिए। साँवला होना आपके व्यक्तित्व का मापदंड नहीं हो सकता। मोटा होना सेहत का मामला है मगर इसे सामाजिक, आर्थिक और बाजार का मामला बना दिया गया है। आज स्लिम-ट्रिम बनाने के दावे पेश करती कई दवाएं, लोशन, क्रीम आदि से बाजार पटे पड़े हैं। अगर इनका प्रभाव होता तो आज अमेरिका जैसा विकसित देश मोटापे से न जूझ रहा होता। लोगों की बढ़ती महत्त्वाकांक्षा और खुद को सबसे अलग दिखाने की मानसिकता को भुनाने के लिए कंपनियां कई तरह के उत्पादों को बाजार में उतार रही हैं। यही वजह है कि अब हर्बल उत्पाद के नाम से भी सौंदर्य सामग्रियों का बाजार खड़ा किया जा रहा है। नकली उत्पादों की तो खैर बाढ़ ही आ गई है। उपभोक्ताओं के लिए भी समझना मुश्किल है कि क्या असली है और क्या नकली?

बॉलीवुड की अभिनेत्रियों की बड़ी जमात गोरे रंग, रेशमी बालों के नाम पर क्रीम, साबुन, तेल, शैंपू का विज्ञापन कर लोगों को फुसलाने में सहायक बन रही है। मगर तारीफ की जानी चाहिए अभिनेत्री नंदिता दास की, जिन्होंने इस तरह के उत्पादों और सांवले रंग को हीन दर्शाने वाले विज्ञापनों के खिलाफ एक मुहिम छेड़ रखी है। कुछ शोधों में यह बात भी सामने आई है कि सांवले रंग पर सूरज की किरणों का प्रभाव गोरे रंग के मुकाबले कम ही पड़ता है। इसकी वजह है सांवली त्वचा में पाया जाने वाला तत्व मेलनिन। इस तरह की त्वचा में सनटैन की समस्या कम होती है। वहीं गोरी त्वचा में कैंसर का खतरा बना रहता है। पशुओं के हित में काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘पेटा’ ने कई बार इस ओर ध्यान दिलाया है कि सौंदर्य उत्पादों का परीक्षण खरगोश, बिल्ली,चूहे, चिड़िया और बंदरों पर किया जाता है। लिपस्टिक से लेकर क्रीम, शेंपू, टूथपेस्ट आदि सभी उत्पाद इन्हीं बेजुबानों पर परखे जाते हैं। परीक्षण की प्रक्रिया में कई बार जीव-जंतु अपनी जान गंवा बैठते हैं या फिर उनकी त्वचा इन उत्पादों के प्रभाव से जख्मी हो जाती हैं।

फिल्मों में तो हीरोइन होने की पहली शर्त ही सुंदरता है। कहने को तो ये काल्पनिक पात्र हैं मगर इस बात का महिलाओं पर इतना दबाव रहा है कि सुंदर दिखने के लिए वे कोई भी उपाय, उपचार अपनाने को तैयार रहती हैं। यह सिर्फ किसी आम महिला की ही बात नहीं है बल्कि आज कई व्यावसायिक घरानों की महिलाओं सहित नामी अभिनेत्रियों तक ने गोरे रंग और जवां दिखने के लिए व्हाइटनिंग ट्रीटमेंट, बोटोक्स इंजेक्शन से लेकर सर्जरी तक के विकल्प को चुना है। इनमें काजोल, रेखा, श्रीदेवी, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन जैसी अभिनेत्रियां तक शामिल हैं। हालांकि, दर्शकों ने इन्हें इनके वास्तविक रूप में भी काफी पसंद किया है। दरअसल, सर्जरी उन लोगों के लिए वरदान रही है जिनका पैदाइशी या किसी दुर्घटना के तहत कोई अंग नष्ट हो जाता है या जिनका चेहरा खराब हो जाता है। पहले इसी तरह के लोग सर्जरी कराते थे पर आज किसी को किसी अभिनेत्री की तरह दिखना है या और सुंदर होना है। इस कारण सर्जरी कराने वाले ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा बढ़ गई है। इसका मतलब यही है कि आज भी महिलाएं सबसे सुंदर दिखने के दबाव के साथ न सिर्फ जी रही हैं बल्कि इस ओर नए-नए विकल्प भी अपना रही है। सौंदर्य उत्पादों का बाजार किसी दूसरे बाजार से कहीं ज्यादा तरक्की पर है। यह लोगों में अपने रूप सौंदर्य को लेकर बढ़ती समझ है या सनक कि आज कोई भी कंपनी गोरे होने के दावे के साथ कुछ भी बाजार में परोसती है तो लोग उसके पीछे भागने लगते हैं।

पिछले साल एक सर्वेक्षण आया था जिसके मुताबिक सौंदर्य उत्पादों का बाजार करीब छह अरब डॉलर से ज्यादा का था और इसके 2025 तक 20 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। 2005 से 2015 तक के दरमियान किशोर वर्ग ने बड़ी संख्या में इन उत्पादों को अपनाया। ऐसे में इन उत्पादों को ऑनलाइन खरीदने का भी चलन बढ़ा है। करीब 62 फीसद लोग इन उत्पाद की खरीदारी ऑलाइन शॉपिंग साइट से ही करते हैं। इस बाजार के बढ़ने का एक कारण यह भी है कि अब कई कंपनियां हर्बल और स्वदेशी सौंदर्य उत्पाद के नाम पर उपभोक्ताओं को रासायनिक उत्पाद से भरपूर उत्पाद परोस रही हैं।

ब्रेस्ट इम्प्लांट, नाक, होंठ और आँखों के बाद अब तो वजाइना को लेकर भी सनक है। वैजिनोप्लास्टी एक जैनिटल रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी है लेकिन जैनिटल रिकंस्ट्रक्शन में लिंग परिवर्तन भी शामिल है, पर वैजिनोप्लास्टी से योनि में मनचाहा बदलाव पाया जा सकता है। कोलकाता के कौस्मैटिक सर्जन डा. सप्तऋषि भट्टाचार्य का कहना है कि यह एक तरह की रिकंस्ट्रक्टिव प्लास्टिक सर्जरी है। इस का उद्देश्य मनमाफिक वैजाइना को डिजाइन करना या कह लीजिए रिकंस्ट्रक्ट करना यानी योनि का पुनर्निर्माण और वह भी जैसा चाहें वैसा. इस रिकंस्ट्रक्शन थ्यौरी के अंतर्गत भी बहुत तरह की सर्जरी शामिल हैं। हाइमेनोप्लास्टी, लाबियाप्लास्टी वगैरह. वैजिनोप्लास्टी लंबे विवाहित जीवन और बच्चे पैदा करने से ढीली पड़ी योनि की दीवार को टाइट करती है। यह सर्जरी दरअसल कमजोर मांसपेशियों को दुरुस्त भी कर देती है। इस के अलावा रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी के अंतर्गत हिप की मांसपेशियों को टाइट कर बढ़ती उम्र का प्रभाव भी कम किया जाता है। अब जहां तक हाइमेनोप्लास्टी का सवाल है, तो समाज में इन दिनों एक नया बदलाव भी देखा जा रहा है। कहा जाता था कि पुराने जमाने में शादीब्याह के समय लड़कियों के कौमार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था लेकिन बाद में खेलकूद में भाग लेने या साइकिल आदि चलाने जैसे विभिन्न कारणों की वजह से लड़कियों में कौमार्य की शर्त कम हुई लेकिन आजकल फिर से समाज में कौमार्य को महत्त्व दिया जाने लगा है।

लड़कियों ने खुद को अब कैद करना शुरू कर दिया है…अब वो खुद कौमार्य और वजाइना या वक्ष के दायरे में कैद हो रही हैं। लड़कियां शादी से पहले हाइमेनोप्लास्टी के लिए जा रही हैं। एक विशेषज्ञ सर्जन का दावा है कि उन के पास हाइमेनोप्लास्टी के बहुत सारे मामले आ रहे हैं। इस में कौमार्य झिल्ली का फिर से निर्माण किया जाता है. दावा यह है कि इस सर्जरी में ऊपरी तौर पर किसी तरह की सर्जरी का कोई निशान नहीं होता है इसीलिए सैक्स पार्टनर को इस का पता नहीं चल पाता है दावा यह भी है कि झिल्ली निर्माण के बाद संबंध बनाने पर शीलभंग का प्रमाण भी मिलता है। ऐसे मामले के लिए शादी की तारीख से 4 हफ्ते पहले सर्जरी का सुझाव दिया जाता है।  2007 में योनि संबंधित किसी भी तरह की सर्जरी का नाम डिजाइनर वैजाइना दिया गया. उस समय अमेरिकन कालेज ऑफ ऑबस्टेट्रिशियन ऐंड गाइनोकोलौजिस्ट ने इस बढ़ते ट्रैंड के खिलाफ चेतावनी दी थी। रॉयल आस्ट्रेलियन कालेज औफ गाइनोकोलौजिस्ट भी इस ट्रेंड के खिलाफ रहा है। 2009 में ब्रिटिश मैडिकल जर्नल और 2013 में सोसाइटी औफ ऑबस्टेट्रिशियन ऐंड गाइनोकोलौजिस्ट औफ कनाडा ने इसे गैरजरूरी कॉस्मैटिक सर्जरी बताते हुए इस ट्रैंड को रोके जाने पर जोर दिया था. बावजूद इस के 2015 में हुए सर्वे से साफ हो गया कि कोई भी चेतावनी काम न आई।

अब जहां तक जोखिम का सवाल है, तो विशेषज्ञों का मानना है कि इस सर्जरी के बहुत सारे जोखिम भी हैं। सब से पहले तो कुछ साइड इफैक्ट देखने को मिलते हैं। बहुत सारे मामलों में पाया गया कि खून का बहाव रोक पाना डाक्टर के लिए कठिन हो जाता है. वहीं संक्रमण भी एक समस्या है. इस तरह की सर्जरी में 1 से ले कर 3 घंटे तक का समय लग सकता है। यह पूरी तरह से निर्भर करता है योनिद्वार और उस के आसपास की मांसपेशियों पर। सर्जरी के 2 से 5 दिनों के भीतर कामकाज पर लौटा जा सकता है. वैसे 6 सप्ताह का समय लग सकता है।

कभी दर्शकों की नजर में तो कभी दौड़ में बने रहने के लिए लड़कियाँ जान को दाँव पर लगाकर खूबसूरत बन रही हैं। पति दूसरी स्त्री तक न जाए इसलिए तमाम तरह की तकलीफें उठा रही हैं मगर सवाल यह है कि सुन्दरता के आधार पर सशक्त होना क्या स्थायी है? शो बिजनेस में तो स्थिति और भी खतरनाक है और जानलेवा भी। श्रीदेवी की मौत के पीछे जिन कारणों को जिम्मेदार माना जा रहा है, उनमें एक कारण यह भी है। खूबसूरत दिखने और बने रहने का तनाव, उम्र को मात देने का तनाव और सामाजिक मापदंडों के हिसाब से खुद को फिट करने का तनाव जब तक है, तब तक कोई सशक्त नहीं हो सकता, न तो महिला और न पुरुष। आप चाहे जितने भी महिला या पुरुष दिवस मनाइए…जब तक आप बूब्स…वजाइना…सर्जरी के मकड़जाल से नहीं निकलते….आपके सारे ताम – झाम व्यर्थ हैं।

(इनपुट – कई पत्रिकायें तथा वेबसाइट्स)

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