खुद भुखमरी से जूझने के बावजूद, अपनी सारी फसल चिडियों के लिए छोड़ देता है ये किसान!

अशोक सोनुले और उनके परिवार को बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी नसीब होती है। उनके परिवार में कुल १२ सदस्य है। आसपास के सभी किसानो की ज़मीने सूखे की वजह से  बंजर पड़ी है। पर अशोक के खेत में ज्वार की फसल लहलहा रही है। पर अशोक इनसे पैसे कमाने के बजाय, ये सारी फसल पक्षियों के चुगने के लिये छोड़ देते है। उन्होंने खेत में बिजूका (पक्षियों को भगाने के लिए लगाया जाने वाला मानव रुपी पुतला) भी नहीं लगाया और पक्षियों के लिए पानी का घड़ा भी हमेशा भरा रखते है।

नॅशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्युरियो  (NCRB), गृह मंत्रालय, के सर्वेक्षण द्वारा ये पता चलता है कि २०१४ में ५६५० किसानो ने आत्महत्या की है। फसल का ख़राब होना इन सभी आत्महत्याओ के पीछे का एक सबसे बड़ा कारण है।

आत्महत्या करने वाले ५६५० किसानो में २६५८ किसान महाराष्ट्र राज्य के है। बेमौसम बारिश और सुखा इस आपदा की वजह है।

जहाँ आमतौर पर किसान चिडियों को अपनी फसल का दुश्मन मानते है वही अशोक अपने खेत में आनेवाले पक्षियों को दाना खिलाने के लिये हमेशा तैयार रहते है।

अशोक सोनुले महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिल्हे से १५ किमी दूर बसे गड्मुदशिंगी गाँव के रहने वाले है। उनके दोनों बेटे प्रकाश और विलास और उनका भाई बालू दुसरो के खेतो में मजदूरी करते है, ताकि वो परिवार के १२ सदस्यों का भरण पोषण कर सके।

इस परिवार के पास ०.२५ एकर बंजर जमीन है, जिससे उन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता है। आसपास के इलाके की जमीन भी बंजर है।

हर साल की तरह इस साल भी अशोक ने जून के महीने में ज्वार के बिज बोये थे। पर हर बार की तरह, इस साल भी सुखा पड़ा, इसलिए उन्होंने ज्यादा फसल की अपेक्षा नहीं रखी थी। पूरा इलाका सूखे की चपेट में था।

पर इसे कुदरत का करिश्मा कह लीजिये कि कुछ ही महीनो में अशोक के खेत में सूखे के बावजूद ज्वार की फसल लहलहा रही थी और कटाई के लिये तैयार थी। अशोक इस फसल को काटने ही लगे थे कि खेत के बीचोबीच लगे एक बबूल के  पेड़ की वजह से उन्हें काम करने में दिक्कत होने लगी।

उन्होंने बबूल के पेड़ को काटने की ठान ही ली थी, पर उन्होंने देखा कि आसपास की जमीन बंजर होने के कारण पंछी उनके खेत में लगे ज्वार पर ही निर्भर थे। इसलिये वो अपना घोसला उस बबूल के पेड़ पर बनाते थे। ये देख अशोक का मन बदल गया और उन्होंने  उस पेड़ को नहीं काटा।

उन्हें ये एहसास हुआ कि आसपास के खेत बंजर पड़े है पर शायद इन पक्षियों के लिये ही उनका खेत हराभरा है।

इन पक्षियो का चहचहाना अशोक के चेहरे पर मुस्कान ले आता है। वे मानते है कि उनके खेत की साड़ी फसल पर सिर्फ इन चिडियों का ही अधिकार है।

सूखे की वजह से आसपास कही पानी भी नहीं है, इसलिये उनका पुरा परिवार पानी के घड़े खेत में और पेड़ पर रख देता है ताकि चिड़ियों को पानी की भी कमी न हो।

अशोक कहते है

इन पक्षीयो को भी तो खाना, पानी और रहने के लिये जगह की जरुरत है। मैं उन्हें ऐसे कैसे छोड़ देता?”

कोल्हापुर के लोकमत टाइम्स में रिपोर्टर, बाबासाहेब निरले को जब अशोक के  इस नेक काम के बारे में पता चला तब उन्होंने उनके अखबार में अशोक के बारे में लिखा।

बाबासाहेब कहते है-

अशोक जी का काम अद्वितीय, अनोखा और बेहद महत्वपूर्ण है। जहाँ सुखा पड़ा होता है, वहाँ ज्वार की एक थैली भी बहोत मायने रखती है। खुद के परिवार के लिये खाने की किल्लत होने के बावजूद अशोक जी पक्षीयो के लिये पूरी फसल छोड़ देते है, इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ। उनका ये काम बहुत सराहनीय है।

जब बेटर इंडिया की टीम ने अशोक से संपर्क किया तब वे बहुत ख़ुश हुए। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी ये छोटीसी कोशिश, लोगो को इतना प्रभावित करेगी। पर इतनी लोकप्रियता के बावजूद एक किसान की कठिन ज़िन्दगी उनके लिए रोज़मर्रा के जीवन की सच्चाई है। वे मानते है कि अगर उनके पास साधन होता तो वे समाज और निसर्ग के लिये और बहुत कुछ करना चाहते थे।

हमारे संपर्क करते ही फोटो और विडियो भेजने के लिये छायाचित्रकार दीपक गुरव कोप के हम आभारी है। अशोक और उनके गाँव के सभी लोग इस खबर को इंटरनेट पर पढने के लिये बेहद उत्साहित है।

(साभार – द बेटर इंडिया, तस्वीर व आलेख)

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