बेबाक होना आसान नहीं होता और उससे भी मुश्किल है बेबाकी के साथ लिखना। इस पर भी अगर आप महिला हैं तो मर्यादा, शालीनता न जाने कितने भारी – भरकम शब्दों को जीना पड़ता है। अपने ब्लॉग बकबक पर बकबक करने वाली माधवीश्री यूँ तो पत्रकार ही हैं मगर इन दिनों लेखन में हाथ आजमा रही हैं और तारीफें भी बटोर रही हैं। लाडली मीडिया अवार्ड की विजेता माधवी श्री का पहला उपन्यास वाह! ये औरतें इन दिनों काफी पसंद किया जा रहा है। अपराजिता की माधवीश्री से हुई बातचीत के कुछ अंश –
मेरा जन्म और परवरिश कोलकाता में ही हुई। मैंने कॉमर्स की पढ़ाई की है और मुझे सीए बनना था, पहला चरण पार भी कर गयी। दूसरे चरण की पढ़ाई के दौरान माँ की मृत्यु हो गयी। तब खबर नहीं थी कि यह घटना मेरे जीवन को कहाँ तक बदलेगी मगर उसके बाद ही जीवन के संघर्षों से सामना हुआ। तब पता चला कि इंसान को खुद अपना सहारा बनना पड़ता है और मैंने भी यही किया। माँ तो अब भी याद आती हैं मगर मेरा झुकाव लेखन की तरफ होने लगा। जनसत्ता में लिखना शुरु किया तो धीरे – धीरे पहचान भी बनने लगी मगर अंदरूनी राजनीति से भी सामना हुआ। तब पत्रकारिता की दुनिया में महिलाएं कम थीं और उस समय न तो मुझे घर से सहयेग मिला और न ही कार्यक्षेत्र से। पत्रकारिता में फायदे की बहुत अधिक कल्पना नहीं की जा सकती थी। सीए बनने का सपना अधूरा रह गया मगर लेखन जारी रहा। तब मैं लेखन के अतिरिक्त सेमिनार वगैरह भी करवाती थी मगर कोलकाता से बाहर जाकर कुछ करने की इच्छा जोर पकड़ने लगी और कुछ समय तक रहने के बाद लगा कि अब यह मेरी पहचान बनाने का समय है और मैं दिल्ली चली आई।
दिल्ली में आकर नौकरी की तलाश और स्वतंत्र पत्रकारिता करना आसान नहीं था मगर ईश्वर की कृपा से मेरी सहेली पत्रिका में मुझे नौकरी मिल गयी। हालात से मैंने हार नहीं मानी। इसके बाद कई संस्थानों में पढ़ाया जिसमें देश का प्रख्यात संस्थान इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मासकॉंम भी शामिल है। मेरे विद्यार्थी चुनाव आयोग से लेकर कई चैनलों में हैं।
घर, बाहर और समाज में महिलाओं के प्रति जो नजरिया मैंने देखा, उसे देखकर जेंडर इक्वेलिटी से संबंधित समस्याओं पर लिखा मगर उसका प्रकाशित होना इतना आसान नहीं था। दिल्ली का माहौल काफी अलग है मगर यहाँ रहकर मैंने काफी कुछ सीखा है।
समस्या यह है कि पिछले 10 सालों में लड़कियाँ जितनी तेजी से आगे बढ़ी हैं, समाज उस गति से आगे नहीं बढ़ा है। मुझे लगता है कि लड़कियों के लिए सिंगल रूम फ्लैट की व्यवस्था की जानी चाहिए जो कि सस्ते ब्याज दरों पर उपलब्ध हो। अपनी पहचान बनाने की कोशिश में जुटी लड़कियों को आर्थिक सहयोग मिले तो और भी लाभ होगा। पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत से पुरस्कार जीते औऱ भारत के एकमात्र महिला पत्रकारिता क्लब की कार्यकारिणी में तीन बार जीतना भी मेरे लिए उपलब्धि है। विद्यार्थियों से मिलने वाला आदर भी मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण है।
अपने सपने को जीएं और उसे अधूरा न छोड़ें। पैसों का पूरा ध्यान रखें क्योंकि इसकी जरूरत कभी भी पड़ सकती है। खुद पर और ईश्वर पर अपना विश्वास और उम्मीद हमेशा जिंदा रखें।