-खाने-पीने में बिहार वाले करते हैं ज्यादा खर्च, केरल पीछे
-दूध और इससे बनी चीजों पर खर्च में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी आगे
-सरकार ने जारी की हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे 2022-23 की विस्तृत रिपोर्ट
नयी दिल्ली । जीवनयापन के कुल खर्च में खाने-पीने की चीजों की हिस्सेदारी पूरे देश के स्तर पर पिछले 10 वर्षों में घटकर घटकर 50 प्रतिशत से नीचे आ गई है। हालांकि, बिहार और असम जैसे राज्यों में यह अब भी इससे अधिक है। बिहार और असम के लोगों के कुल खर्च में खाने-पीने की चीजों का हिस्सा सबसे अधिक है। तेलंगाना और केरल में यह सबसे कम है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी जैसे राज्यों के लोग खाने-पीने में दूध और इससे बनी चीजों पर सबसे अधिक खर्च कर रहे हैं। यह जानकारी हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे 2022-23 की विस्तृत रिपोर्ट में सामने आई है। इसे स्टैटिस्टिक्स ऐंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन मिनिस्ट्री ने जारी किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, टोटल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर में खाने-पीने की चीजों की हिस्सेदारी बिहार और असम में सबसे अधिक 54 प्रतिशत और केरल में सबसे कम 39 प्रतिशत है। शहरी इलाकों में भी यह आंकड़ा बिहार और असम में सबसे अधिक 47% रहा। सबसे कम 35 प्रतिशत हिस्सेदारी तेलंगाना में रही है। यूपी के ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति कुल खर्च में फूड आइटम्स का हिस्सा 47 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 41 प्रतिशत है। महाराष्ट्र में यह आंकड़ा क्रमश: 41 प्रतिशत और 37 प्रतिशत का है।
10 वर्षों में भोजन पर खर्च घटा – कुल मिलाकर पिछले 10 वर्षों में औसत मासिक स्तर पर कैपिटा कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (एमपीसीई) में भोजन पर खर्च घटा है। 2011-12 में ग्रामीण इलाकों में कुल मासिक खर्च में खाने-पीने की हिस्सेदारी 52.9 प्रतिशत थी। 2022-23 में यह 46.4 प्रतिशत पर आ गई। शहरों में भी आंकड़ा 42.6 प्रतिशत से घटकर 39.2 प्रतिशत पर आ गया। गांवों में खाने-पीने पर प्रति व्यक्ति एक महीने का खर्च औसतन 1750 रुपये और शहरों में 2530 रुपये रहा।
हरियाणा में दूध, केरल में मांस-मछली पर खर्च सबसे अधिक – टोटल फूड कंजम्पशन में बेवरेजेज और प्रोसेस्ड फूड की हिस्सेदारी बढ़ी है और राष्ट्रीय औसत 9.6 प्रतिशत का है। अधिकतर राज्यों में सबसे अधिक खर्च इसी पर है है। दूध और इससे बनी चीजी की हिस्सेदारी का राष्ट्रीय औसत 8.3 प्रतिशत है। हालांकि हरियाणा (41.7 प्रतिशत), राजस्थान (35.5 प्रतिशत), पंजाब (34.7 प्रतिशत), गुजरात (25.5 प्रतिशत), यूपी (22.6 प्रतिशत) और एमपी (21.5 प्रतिशत) में दूध और दूध से बने उत्पादों का हिस्सा फूड कंजम्पशन में सबसे अधिक है। राजस्थान (33.2 प्रतिशत), हरियाणा (33.1 प्रतिशत), पंजाब (32.3 प्रतिशत) और यूपी (25.2 प्रतिशत) के शहरी इलाकों में भी मिल्क एंड मिल्क प्रोडक्ट्स का हिस्सा सबसे अधिक है। वहीं, खाने-पीने पर कुल खर्च में अंडे, मछली और गोश्त की सबसे अधिक 23.5 प्रतिशत हिस्सेदारी केरल के ग्रामीण इलाकों में है। इसके बाद असम (20 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (18.9 प्रतिशत) का नंबर है। सबसे कम 2.1 प्रतिशत हिस्सेदारी हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में है। 2.6 प्रतिशत हिस्से के साथ इससे ऊपर गुजरात और राजस्थान हैं। शहरी इलाकों के खान-पान में अंडे, मछली और गोश्त की हिस्सेदारी के मामले में केरल 19.8 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल 18.9 प्रतिशत के साथ आगे हैं।
पश्चिम बंगाल में अनाज की खपत सबसे अधिक – अनाज के मामले में प्रति व्यक्ति हर महीने सबसे अधिक 11.23 किलो की खपत पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में है। इसके बाद ओडिशा (11.21 किलो), बिहार (11.14 किलो) और राजस्थान (10.55 किलो) का नंबर है। यूपी में 9.38 किलो और महाराष्ट्र में 8.31 किलो खपत है। सबसे कम 6.6 किलो खपत केरल में है। अनाज में भी चावल की सबसे अधिक 95.93 प्रतिशत हिस्सेदारी असम में है। इसके बाद छत्तीसगढ़ (92.24 प्रतिशत) और तेलंगाना (92.06 प्रतिशत) का नंबर है। यूपी में आंकड़ा 39.99 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 36.39 प्रतिशत है। चावल की सबसे कम 3.19 प्रतिशत हिस्सेदारी राजस्थान के लोगों के फूड एक्सपेंडिचर में है। हरियाणा (88.56 प्रतिशत), पंजाब (87.54 प्रतिशत) और राजस्थान (84.77 प्रतिशत) के लोगों के खाने-पीने में गेहूं पर खर्च का हिस्सा अधिक है। नॉन-फूड आइटम्स पर खर्च के मामले में सभी प्रमुख राज्यों के ग्रामीण और शहरी इलाकों में कन्वेंस की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। इसके बाद ड्यूरेबल गुड्स और एंटरटेनमेंट का नंबर है। नॉन-फूड आइटम्स में ड्यूरेबल गुड्स की सबसे अधिक हिस्सेदारी केरल में है।
शहरों और गांवों का अंतर घटा – सर्वे के मुताबिक, 2022-23 में ग्रामीण इलाकों में ऐवरेज मंथली पर कैपिटा कंजम्पशन एक्सपेंडिचर 3773 रुपये और शहरी इलाकों में 6459 रुपये रहा। 2010-11 में ये आंकड़े 1430 रुपये और 2630 रुपये पर थे। इस तरह रूरल एरिया में खर्च 2.6 गुना और अर्बन एरिया में 2.5 गुना बढ़ गया। इसके साथ ही रूरल-अर्बन गैप घटा है। 2010-11 में शहरों में औसत एमपीसीई गांवों से 84 प्रतिशत अधिक था। 2022-23 में फासला घटा और यह करीब 71% ही अधिक रह गया है।