कोलकाता पुस्तक मेला के प्रेस कॉर्नर में राष्ट्रीय संवाद

कोलकाता। भारतीय ज्ञानपीठ,वाणी प्रकाशन समूह और भारतीय भाषा परिषद की ओर से कोलकाता पुस्तक मेले के प्रेस कॉर्नर में आयोजित राष्ट्रीय संवाद में कहा गया कि पुस्तक संस्कृति की रक्षा एक राष्ट्रीय कर्तव्य है। पुस्तकें मनुष्यता की गंगोत्री हैं। इनका पांच सौ सालों का गौरवपूर्ण इतिहास है।
वाणी प्रकाशन की ओर से अदिति माहेश्वरी ने कहा कि कोरोना महामारी के बाद भारत में कोलकाता पुस्तक मेले ने पुस्तक संस्कृति की यात्रा फिर से शुरू की है। रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि पुस्तक संस्कृति एक नये संकट से गुजर रही है। उससे उबरने के लिए नयी परिकल्पनाओं की आवश्यकता है। पाठकों की रुचि के अनुसार उनको पुस्तकें सुलभ होनी चाहिए।
भोजपुरी और हिंदी के प्रख्यात कथाकार मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि नालंदा में पुस्तकें जलाईं गयी फिर भी पुस्तकों की परंपरा खत्म नहीं हुई। पुस्तकें पढ़ते समय हम ठहरकर कुछ सोच सकते हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया यह अवसर नहीं देता। परिषद के उपाध्यक्ष एवं आई.लीड के संस्थापक प्रदीप चोपड़ा ने कहा कि पुस्तक प्रेम संस्कार से मिलता है और इस संस्कार को विकसित करने की जरूरत है। रांची विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. रवि भूषण ने कहा कि इस समय शब्द पर आक्रमण हो रहे हैं। पुस्तक संस्कृति ही इससे रक्षा कर सकती है। परिषद के निदेशक डॉ शंभुनाथ ने कहा कि पुस्तकें पढ़ना स्वाधीन होना है। जब तक मनुष्यों के मन में प्रश्न है पुस्तक संस्कृति बची रहेगी। आज मनुष्य बौद्धिक प्राणी की जगह इलेक्ट्रॉनिक प्राणी बनता जा रहा है। राष्ट्रीय संवाद की अध्यक्षता करते हुए पटना से आए कवि अरुण कमल ने कहा कि पुस्तक संस्कृति की रक्षा का अर्थ है अच्छी किताबों को पढ़ना। यह दुश्मनी की नहीं प्रेम की संस्कृति है। अपने स्वागत वक्तव्य में भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने कहा कि पुस्तक संस्कृति ही मनुष्यता का मार्ग दिखाती हैं। कोलकाता पुस्तक मेले में हिंदी की उपस्थिति बढ़ाई जानी चाहिए। पुस्तक मेले में राष्ट्रीय संवाद के संयोजक डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि पुस्तक संस्कृति हमें ज्ञान,विवेक और आदमियत से जोड़ने का संस्कार देती है। धन्यवाद ज्ञापन अदिति माहेश्वरी ने दिया।

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