नयी दिल्ली : प्राचीन भारतीय में नाक और प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति के बारे में सोचिए। मौजूदा समय में प्लास्टिक सर्जरी एक आधुनिक विलासिता है। यह पता चला है कि कॉस्मेटिक और शरीर की पुनर्संरचना की जड़ें 2500 से अधिक वर्षों तक वापस चली जाती हैं। यह सामान्य धारणा है कि प्लास्टिक सर्जरी में “प्लास्टिक” एक कृत्रिम सामग्री को संदर्भित करता है, जब कि यह वास्तव में ग्रीक शब्द प्लास्टिकोस से निकलता है, जिसका अर्थ है ढालना या रूप देना। 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में पैदा हुए सुश्रुत नाम के एक भारतीय चिकित्सक को व्यापक रूप से ‘सर्जरी का जनक’ माना जाता है। उन्होंने चिकित्सा और सर्जरी पर दुनिया के शुरुआती कार्यों में पहली बार विस्तार से लिखा। यही कारण है कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने माना है कि सुश्रुत सर्जनी के जनक थे। सुश्रुत संहिता में 1,100 से अधिक रोगों के बारे में जानकारी दी गई है। रोग प्रजनन में सैकड़ों औषधीय पौधों के उपयोग और सर्जिकल प्रक्रियाओं बारे में निर्देश दिए गए थे जिसमें तीन प्रकार के त्वचा की कलम और नाक के पुनर्निर्माण शामिल है। त्वचा कलम में त्वचा के टुकड़ों को शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में लगाया जाता है। सुश्रुत का ग्रंथ माथे की की लटकती हुर्इ त्वचा के टुकड़े का प्रयोग नाक का संधान करने के लिए पहला लिखित रिकॉर्ड मिलता है। जिसमें एक तकनीक जो आज भी उपयोग की जाती है, जिसे माथे से त्वचा की पूरी मोटाई का टुकड़ा नाक को फिर से बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। उस समय उस प्रक्रिया की जरूरत वाले रोगियों में आम तौर पर वे लोग शामिल होते थे जो चोरी या व्यभिचार के लिए सजा के रूप में अपनी नाक खो चुके थे।
मौजूदा दौर में सर्जन आघात, संक्रमण, जलने के साथ-साथ ऊतकों की सुरक्षात्मक परतों को खोने वाले क्षेत्रों को बहाल करने के लिए त्वचा के कलम का उपयोग करते हैं साथ ही उन क्षेत्रों को पुनर्स्थापित करने के लिए जहां सर्जिकल हस्तक्षेप ने त्वचा को नुकसान हुआ है, जैसा कि मेलेनोमा (त्वचा संबंधी ट्यूमर) हटाने से हो सकता है। आश्चर्यजनक रूप से इन तकनीकों को सुश्रुत संहिता में विस्तार से समझाया गया है और दुनिया इससे प्रेरणा लेती है। सुश्रुत संहिता में सर्जरी से जुड़े विभिन्न पहलुओं को विस्तार से बताया गया है। इस किताब के अनुसार सुश्रुत शल्य चिकित्सा के किये 125 से अधिक स्वनिर्मित उपकरणों का उपयोग किया करते थे, जिनमे चाकू, सुइयां, चिमटियां की तरह ही थे, जो इनके द्वारा स्वयं खोजे गये थे। ऑपरेशन करने के 300 से अधिक तरीकें व प्रक्रियाएँ इस किताब में वर्णित है। सुश्रुत संहिता में cosmetic surgery, नेत्र चिकित्सा में मोतियाबिंद का ओपरेशन करने में ये पूर्ण दक्ष थे. तथा अपनी इस रचना में पूर्ण प्रयोग विधि भी लिखी है। इसके अतिरिक्त ऑपरेशन द्वारा प्रसव करवाना, टूटी हड्डियों का पता लगाकर उन्हें जोड़ना वे भली-भांति जानते थे। ये अपने समय के महान शरीर सरंचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग चिकित्सक थे।